Wednesday, 29 July 2015

भारत मे खेती और किसानों की बर्बादी के विभिन्न कारण

भारत मे खेती और किसानों की बर्बादी के विभिन्न कारण


खेतीउसके पीछे एक गंभीर कारण है। अंग्रेजों का भारत में आना और अंग्रेजों द्वारा भारत में अपनी सरकार का चलाना। अंग्रेजों की सरकार जब भारत में चलना शुरु हुर्इ है तो अंग्रेजों की सरकार ने बहुत ही व्यवस्थित तरीके से भारतीय समाज को तोड़ने का काम किया। मैंने कल के व्याख्यान में आपको बताया था कि अंग्रेजों की सरकार ने भारत को व्यवस्थित तरीके से तोड़ने का जो काम किया उसके लिए उन्होंने जो नीतियां बनायी थी उसमें सबसे पहली नीति यह थी कि भारतीय समाज को आर्थिक रुप से पूरी तरह से तोड़ दिया जाए और जब भारतीय समाज आर्थिक रुप से बर्बाद हो जाएगा तो फिर भारतीय समाज को राजनैतिक रुप से तोड़ दिया जाए और जब भारतीय समाज राजनैतिक रुप से टूट जायेगा। तो फिर भारतीय समाज को सान्स्क्रतिक और सामाजिक रुप से तोड़ दिया जाए।
   
अब अंग्रेजों ने अपनी पहली नीति का पालन करते हुए भारतीय समाज को आर्थिक रुप से जो तोड़ा। उसमें कल के व्याख्यान में मैंने आपको विस्तार से बताया था कि उधोगों को किस तरह से तोड़ा गया। व्यापार को किस तरह से तोड़ा गया और आज के व्याख्यान में मैं बताऊँगा कि क्रषि को किस तरह से तोड़ा गया। किसानों को कैसे बर्बाद किया गया। क्योंकि क्रषि हमारे समाज का मुख्य केन्द्र थी और क्रषि हमारे देश के व्यवसाय का मुख्य आधार होती थी। तो अंग्रेजों ने भारतीय क्रषि को बर्बाद करने के लिए तीन-चार तरह के कानून बनाये।
   
सबसे पहला कानून जो अंग्रेजों ने भारत की क्रषि को बर्बाद करने के लिए बनाया वो किसानों के ऊपर लगान लगाने का कानून था। किसानों के ऊपर टक्स लगाने का कानून था। 1760 के पहले इस देश में एक बड़े इलाके में किसानों के ऊपर कभी-भी लगान नहीं लिया गया। अंग्रेजों के पहले इस देश में कुछ ही राज्यों को छोड़ दिया जाए तो बाकी किसी भी राज्य में किसानों पर लगान नहीं लिया जाता था। जैसे मालाबार का एक बहुत बड़ा इलाका होता था। जिसको आज हम दक्षिण भारत के रुप में जानते है। उस मालाबार के इलाके में 1760 के पहले कभी-भी किसानों पर लगान नहीं लिया गया।  मैसूर राज्य के इलाके में 1760 के पहले किसानों पर कभी लगान नहीं लगाया गया। इसी तरह से भारत के और दूसरे इलाके भी थे। जिन इलाकों में अंग्रेजों के आने के पहले तक कभी-भी लगान की वसूली की बात ही नहीं हुर्इ। लेकिन अंग्रेजों की सरकार ने क्या किया भारत में जब उनका साम्राज्य स्थापित हुआ और उनकी सरकार चलना शुरु हुर्इ उसी समय उन्होंने भारत के किसानों पर लगान लगाना शुरु किया और आप कल्पना कर सकते हैं के कितना लगान वसुलती थी अंग्रेजों की सरकार, कितना टक्स वसूलती थी भारत के किसानों से। भारत के किसानों पर अंगे्रजों की सरकार ने किसानों के कुल उत्पादन का पचास प्रतिशत तक टक्स लगा दिया था। मैंने जैसे कल आपको बताया था कि भारत के उधोगों को बर्बाद करने के लिए अंग्रेजों ने भारत के उधोगों पर 10-12 तरह के टक्स लगाए थे। इसी तरह से भारत के किसानों को बर्बाद करने के लिए अंगे्रजों ने भारत के किसानों पर टक्स लगाए थे और जो सबसे पहला टक्स भारत के किसानों पर लगाया गया। जिसको लगान के रुप में आप जानते हैं वो पचास प्रतिशत होता था। माने किसान जितना कुल उत्पादन करता था अपनी खेती में, उसका पचास प्रतिशत उत्पादन अंग्रेजों की सरकार छीन लेती थी। जो किसान अंग्रेजों की सरकार को अपने उत्पादन का पचास प्रतिशत हिस्सा नहीं देता था। उस किसान की हत्या करवा देना, उस किसान की झोपड़ी जला देना। उस किसान की संपत्ति को नीलाम करवा देना, उस किसान के गाय, बैल खोल के ले जाना, उस किसान को कोडे से मारना, उस किसान को गाँव की जाति से बहिष्Ïत करवा देना। यह सब अंग्रेजों की सरकार उनको दंड के स्वरुप में दिया करती थी। तो किसान को मजबूरी में अपने उत्पादन का पचास प्रतिशत हिस्सा अंग्रेजों की सरकार को देना पडता था। और मैंने आपको यह बताया कि जो किसान नहीं देते थे उनको गोली मार दी जाती थी। जो किसान नहीं देते थे उनको कोडे मारे जाते थे। जो किसान नहीं देते थे उनके घर जला दिये जाते थे। जो किसान इस तरह से लगान नहीं देते थे अंग्रेजों को, उनको गाँव से बहिष्Ïत करवाया जाता था। इस तरह के अत्याचार अंग्रेजों की सरकार किसानों पर करती थी।

   
तो, एक तो अंग्रेजों की सरकार ने भारत के किसानों को जो बर्बाद किया उसमें सबसे पहला जो कारण था वह यह कि उन्होंने भारत के किसानों पर टक्स लगा दिया। लगान वसुलना शुरु कर दिया।  1760 से लेकर लगातार 1890 तक, 1900 तक इस तरह का लगान किसानों से वसूला जाता था। तो आप सोच सकते हैं कि लगातार 100-150 वर्षों तक अगर किसानों से पचास प्रतिशत उत्पादन छीन लिया जाए हर साल उनकी खेती का, तो किसान तो बर्बाद होते ही चले जायेंगे। दूसरा क्या काम किया अंग्रेजों की सरकार ने - किसानों को बर्बाद करने के लिए दुसरा काम अंग्रेजों की सरकार ने यह किया कि किसानों की जो जमीनें होती थी। खेत होते थे। उनको बेचने का एक सिलसिला शुरु करवा दिया इस देश में। आप जानते हैं  कि अंग्रेजों के आने के पहले तक भारत में जमीन बेची नहीं जाती थी। खेत इस देश में कभी बेचने की वस्तु नहीं रहा। किसान की जमीन - उसको अपनी माँ की तरह से मानता है किसान। और किसान इस देश में कहते रहे हैं  कि जिस तरह से माँ का सौदा नहीं हो सकता। उसी तरह से जमीन कभी खरीदी-बेची नहीं जाती और भारत का किसान जो खेती करता रहा है। उस खेती को करने के पीछे उसके मन में जो धारणा रही है। वो यह कि यह खेती तो र्इश्वर की दी हुर्इ है। यह जमीन तो र्इश्वर की दी हुर्इ है। र्इश्वर की बनार्इ हुर्इ प्रÏति से यह जमीन मुझको मिली है। इसलिए इस जमीन को बेचने का अधिकार मुझको नहीं है। तो किसान कभी जमीन को बेचता नहीं था इस देश में। इस देश में जमीन नहीं बेची जाती थी। कभी-भी इस देश में दूध नहीं बेचा जाता था। कभी-भी इस देश में दुध से उत्पन्न होने वाली तमाम दूसरी चीजें नहीं बेची जाती थी। उसको पाप माना जाता था भारतीय समाज में भारतीय सभ्यता में। तो अंग्रेजों ने क्या किया कि कानून बनाया एक ऐसा जिससे जमीनों को खरीदा और बेचा जा सके। और अंग्रेजों ने पहली बार इस देश में जमीन को खरीदने और बेचने की परम्परा शुरु करवा दी और बाद में जब जमीने बिकने लगीं तो अंग्रेजों की सरकार ने किसानों से जमीनें जबरदस्ती खरीदना शुरु कर दिया।

   
हमारे देश में अंग्रेजों की सरकार ने भारत के किसानों की जमीन छीनने के लिए जो सबसे पहला कानून बनाया उस कानून का नाम है 'लेण्ड एक्यूजीशनस एक्ट। उसको अगर हिन्दी में कहा जाए तो 'जमीन हड़पने का कानून जो आज भी चलता है इस देश में। यह कानून अंग्रेजों ने बनाया था। करीब 150-200 साल पहले। यह जो लेण्ड एक्यूजीशनस एक्ट था। वो अंग्रेजों की सरकार ने क्यूँ बनाया ताकि भारत के किसानों से जमीन छीन ली जाए और भारत के किसानों को बर्बाद कर दिया जाए।
   
अंग्रेजों की एक पध्दति थी काम करने की। वो जिसको भी बर्बाद करते थे उसके लिए पहले कानून बनाते थे। जैसे मान लीजिए अगर अंग्रेजों को आपकी जेब काटनी है तो वो जेब नहीं काटेंगे। पहले जेब काटने का कानून बनायेंगे और उस कानून के बाद जब आपकी जेब कटना शुरु हो जाएगी तो अंग्रेज कहेगें कि हम तो कानून का पालन कर रहे है। अब आपकी जेब कटती है। तो कट जाये। माने - सीधे जेब नहीं काटेंगे। लेकिन जेब काटने का कानून बनायेंगे और फिर कहेगें हम कानून का पालन कर रहे हैं। इसमें आपकी जेब कटती है तो कट जाए। तो उन्होंने किसानों को बर्बाद करने के लिए सीधे कुछ नहीं कहा। उन्होंने यह नहीं कहा कि हम किसानो को बर्बाद करेंगे बलिक किसानों को बर्बाद करने के लिए कानून बना दिया। फिर उन कानूनों का पालन करवाना शुरु किया उन्होंने और किसान उसमें बर्बाद होना शुरु हो गए। तो पहला कानून लगा दिया टक्स के रुप में। लगान के रुप में। और दूसरा कानून लगा दिया अंग्रेजों ने भारत में किसानों की जमीन हडपने के लिए जिसका नाम रखा गया 'लेण्ड एक्यूजीशन एक्ट।

   
अंग्रेजों के बड़े-बड़े बेर्इमान और भ्रष्ट अधिकारी इस देश में हुए। एक अंग्रेज आफीसर था। जिसका नाम था डलहौजी। बहुत ही बेर्इमान और भ्रष्टाचारी आफीसर था उस जमाने का। डलहौजी क्या करता था कि जिस गाँव में जाता था। उस गाँव के किसानों की जमीनें छीनता था। गाँव-गाँव के किसानों की जमीनें छीन-छीन कर उन जमीनों को 'लेण्ड एक्यूजीशन एक्ट के नाम पर अंग्रेजों की सम्पत्ति के रुप में घोषित किया जाता था। डलहौजी ने किस तरह से इस देश के किसानों की जमीनें छिनी हैं और किस तरह से वो अंगे्रजी सम्पत्ति बनायी गयी है!


इस तरह से भारत के किसानों को अंग्रेजों ने बर्बाद किया। जमीन हडपकर और जमीन हडपने का कानून बनाकर।   एक तीसरा तरीका और अपनाया भारत के किसानों को अंग्रेजों ने बर्बाद करने के लिए। अंग्रेजों ने भारत के समाज का सर्वे कराया था। सर्वेक्षण कराया था। और भारतीय समाज का सर्वेक्षण कराके अंग्रेजों की सरकार ने इस बात का अंदाजा लगवाया कि यहाँ की खेती मूलत: किस आधार पर टिकी हुर्इ है। अगर भारत की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह से चौपट करना है, बर्बाद करना है। तो भारत की खेती को बर्बाद करना ही पडेगा। भारत के उधोगों को भी बर्बाद करना पडेगा।
   

तो भारत की खेती को बर्बाद करने के लिए अंग्रेजों ने पहले सर्वे कराया कि भारत की खेती को कैसे बर्बाद किया जाए।  अंग्रेजों ने जब सर्वेक्षण करा लिया तो उनको एक बात यह पता चली कि भारत का किसान जो खेती करता है। उसका केन्द्र बिंदू है गाय। और उसका केन्द्र बिंदु है बैल। बैल गाय के बछडे़ होते है। बछड़े बैल बनते है। बैलों से खेत जोता जाता है। फिर गाय दूध देती है। किसान दूध पीता है। उसमें से शकित आती है तो खेत में मेहनत करता है। गाय गोबर देती है। उस गोबर का खाद बनाता है। खाद को खेत में डालता है और खेत की शकित बढ़ाता है। गाय मूत्र देती है। मूत्र को किसान कीटनाशक  के रुप में प्रयोग में लाता है। तो गाय जो है वो भारतीय क्रषि व्यवस्था के केन्द्र में है। यह अंग्रेजों की सरकार को पता चल गया सर्वेक्षण करा के। तो अंग्रेजों ने एक कानून और बना दिया कि भारत में गाय का कत्ल करवाओ। तो 1760 में इस देश में अंग्रेजों के आदेश पर गाय का कत्ल होना शुरु हो गया। कुछ लोगों को ऐसा लगता है  और वो लोग कहते भी हैं कि राजीव भार्इ अंग्रेजों से पहले भी तो जो मुसलमान राजा थे। वो भी तो गाय का कत्ल करवाते थे। मैं आपको जानकारी देना चाहता हूँ कि एक-दो मुसलमान राजाओ को छोडकर, भारत में किसी भी राजा ने गाय का कत्ल नहीं करवाया। मुसलमानों के राजाओं के जमाने में तो भारत में ऐसा कानून रहा है कि जो गाय का कत्ल करे उसको फाँसी की सजा दी जाए। यह अंग्रेज थे जिन्होने गाय का कत्ल करवाने के लिए व्यवस्थित रुप से एक कानून बनवा दिया और सन 1760 से भारत में गाय का कत्ल करवाना अंग्रेजों ने शुरु किया।

   
गाय का कत्ल करवाते तो अंग्रेजों को दो फायदे होते थे। एक तो भारत के किसान का जो सबसे बड़ा पशुधन था गाय। वो खत्म होता था। गाय मरती थी तो दूध कम होता था। गाय मरती थी तो गोबर कम होता था। गोबर कम होता था तो खाद कम होती थी। गाय मरती थी तो मूत्र नहीं मिलता था। किसानों के लिए जो किटनाशक दवायें बनती थीं उसमें कमी आती थी। गाय का दूध नहीं मिलता था तो किसानों की शकित कम होती थी। तो लगातार गाय के कत्ल होते चले जाने के कारण भारत की खेती का भी नाश होना शुरु हो गया और अंग्रेजों ने बहुत ही व्यवस्थित तरीके से इस देश में कत्ल कारखाने खुलवा दिए। अंग्रेजों की सरकार ने पूरे देश में लगभग 300 से ज्यादा कत्ल कारखाने खुलवाये। जिनमें गाय और गौवंश का कत्ल किया जाता था। हजारों की संख्या में लाखों की संख्या में गाय और गौवंश का कत्ल होता था। गाय का मांस यहाँ से भेज दिया जाता था, इंग्लैंड में जाता था। अंग्रेजों की सरकार के जो सिपार्इ होते थे वो जो गाय का मांस खाते थे। आप जानते हैं युरोप के देश की जो प्रजा है यह जो गोरी प्रजा है। यह गाय का मांस सबसे ज्यादा खाती है। जितनी गोरी प्रजा है पूरी दुनिया में इसको गाय का मांस सबसे अच्छा लगता है। तो गाय कत्ल होता था भारत में। उसका मांस इंग्लैंड जाता था। और गाय का कत्ल कर के अंग्रेजों की फौज जो भारत में रहती थी। उसको मांस बेचा जाता था। उसको मांस दिया जाता था।

   
तो भारत के किसानों को बर्बाद करने के लिए जो तीसरा काम अंग्रेजों ने किया वो गाय के कत्ल करवाने के बाद में अंग्रेजों को ऐसा लगा कि सिर्फ गाय के कत्ल करवाने से बात नहीं बनेगी। गाय जहाँ से पैदा होती है। उस नंदी का कत्ल पहले करो, तो अंग्रेजों ने पहले नंदी का कत्ल करवाना शुरु किया और बहुत ही व्यवस्थित पैमाने पर गाय और नंदी का कत्ल अंग्रेजों ने करवाया। हम लोगों ने जो दस्तावेज इकठठे किये हैं उनसे पता चलता है कि 1760 से लेकर 1947 के साल तक अंग्रेजों ने करीब 48 करोड़ से ज्यादा गाय और बैल का कत्ल करवाया। और यह जो 48 करोड़ गाय और नंदियो के कत्ल करवा दिये। मैं कभी-कभी कल्पना करता हूँ कि वो गाय नहीं काटी गर्इ होती। वो नंदी नहीं काटे गए होते तो आज हिन्दुस्तान में गाय की संख्या हमारी आबादी से तीन गुनी ज्यादा होती। कम से कम इस देश में देड़ सौ करोड़ से ज्यादा गाय और बैल होते लेकिन अंगे्रजों ने बहुत ही व्यवस्थित तरीके से यह कत्ल करवा कर हिन्दुस्तान के किसानों का सत्यानाश करवाया।

   
फिर उसके बाद अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान के किसानों का सत्यानाश करने के लिए एक चौथा काम किया और चौथा काम उन्होंने क्या किया कि इस देश के किसानों की जो क्रय शकित थी। उसको कम करवाओ - माने किसान जो खेती करता है। खेती के साथ-साथ कुछ और भी उधोग कर सकता है। पशुपालन का काम कर सकता है। दूसरे कर्इ काम कर सकता है और उससे जो उसकी क्रय शकित बढ़़ती है, उसकी समृध्दहि बढ़़ती है, उसकी संपतित बढ़़ती है। उसको कम करवाओ। तो अंग्रेजों ने क्रषि और पशुपालन दोनों को अलग-अलग करवा दिया। पहले खेती के साथ पशुपालन बिलकुल जुड़ा हुआ था। लेकिन फिर अंग्रेजों ने नीति ऐसी बनार्इ कि क्रषि अलग हो गर्इ और पशुपालन बिलकुल एक अलग तरह के बात हो गर्इ। अंग्रेजो ने फिर भारतीय समाज में एक-एक करके उन जातियों पर अत्याचार करने शुरु किये जो जातियां सबसे ज्यादा पशुपालन करती थी। हमारे समाज में जिन जातियों को हम पिछडी जातियां कहते हैं। नीचे दर्जे के जातियां कहते है। वास्तव में यह भारत के समाज की रीड़ की हडडी रही है। यहीं जातियां रही है जिनके पास सबसे ज्यादा हुनर रहा है। सबसे ज्यादा कौशल रहा है। यही जातियां रही हैं जिनके पास सबसे बड़ी टेक्नोलाजी रही है। और यहीं जातियां रही है जिनके पास सबसे ज्यादा हुनर और कौशल इस बात का रहा है कि पशुओं की समृध्दहि कैसे करायी जाए और पशुओं की संख्या कैसे बढ़़ायी जाए।
   

तो अंग्रेजों ने हमारे देश की ऐसी जातियों पर अत्याचार करने शुरु किये जो जातियां हमारे देश में पशुपालन के काम में लगी हुर्इ थी और धीरे-धीरे पशुओं की संख्या - एक तरफ तो गाय का कत्ल करवा के कम कर दी। दूसरी तरफ हमारे देश में जो पशुपालन करने वाली जातियां थीं उनको अंग्रेजों ने इतना बुरी तरह से प्रताडित किया, अत्याचार किये उन सबके ऊपर कानून बनाकर कि धीरे-धीरे पशुपालन का काम वो लोग छोड़ते चले गए और विस्थापित होते चले गए।
   

इस तरह से अंग्रेजों ने भारत के किसानों को व्यवस्थित रुप से बर्बाद करने का काम शुरु किया। और यह बर्बादी कितनी आयी। 1760 से लेकर 1850 के साल तक या 1860 के साल तक हिन्दुस्तान की खेती बुरी तरह से चौपट हो गयी। किसान बुरी तरह से बर्बाद हो गए और मात्र सौ साल के अंदर में हिन्दुस्तान के किसानों की गरीबी दिखार्इ देने लगी। दारिæय इस देश में दिखार्इ देने लगा और जिस तरह से किसानों की बर्बादी की अंग्रेजों ने, उसी बर्बादी के कारण फिर इस देश में भुखमरी आयी और अकाल पड़ना शुरु हुए। हमारे देश में अंग्रेजों के जमाने में जितने अकाल पडे़ हैं उनमें से एक या दो अकाल को छोड़ दिया जाए तो बाकी सब अकाल अंग्रेजों की नीतियो के कारण पड़े। मौसम के कारण नहीं पडे़। हम लोगों को कर्इ बार यह गलत फहमी हो जाती है कि बारिश नहीं हुर्इ होगी। सुखा पड़ गया होगा इसलिए अकाल पड़ गया होगा। हम लोगों को कर्इ बार यह गलत फहमी हो जाती है कि मौसम का दुष्चक्र होगा। कुछ मौसम में परिवर्तन आया होगा भयंकर तरीके से। इसलिए भारत में अकाल पडे़ होगे। भारत में अकाल मौसम की मार से नहीं पडे़। भारत में जितने भी अकाल पड़े वो अंग्रेजों की गलत नीतियों के कारण पड़े।
   

मैंने बताया खेती को बर्बाद करना। किसानों को बर्बाद करना। किसानों से लगान वसूलना। पचास प्रतिशत किसानों से उत्पादन टक्स के रुप में ले लेना। किसान जो पशुपालन कर रहे है। उन पशुपालन करने वाले किसानों पर अत्याचार करना। किसान जो अपने गाँव के बावड़ी और कुओं की व्यवस्था बना सकते हैं। उन सब व्यवस्थाओं को किसानों के हाथ से छीन लेना और अंग्रेजों की सरकार के हाथ में चला जाना। जो जंगल किसानों की संपत्ति माने जाते थे, जो जंगल गाँव की संपत्ति माने जाते थे और जिन जंगलों से किसानों को अपनी खेती करने के लिए मदद में आने वाली तमाम तरह की चीजें मिलती थी। उन जंगलों का अंग्रेजों की सरकार ने सत्यानाश करवाया।
    

एक और तरीका अंग्रेजों ने अपनाया इस देश के किसानों को - खेती को बर्बाद करने के लिए। 1865 के साल में अंग्रेजों ने एक कानून बनाया इस देश में।  उस कानून का नाम था 'इंनिडयन फारेस्ट एक्ट और यह कानून लागू हुआ 1872 में और आज भी यह कानून सारे देश में चलता है। इंनिडयन फारेस्ट एक्ट का कानून अंग्रेजों की सरकार ने इसलिए बनाया था कि इस कानून के बनने से पहले जो जंगल होते थे वो गाँव की संपत्ति माने जाते थे। तो गाँव के किसानों की सामुदायिक हिस्सेदारी जंगलो पर होती थी। अंग्रेजों ने क्या किया कि जो जंगल गाँव समाज की संपत्ति होते थे। जो जंगल गाँव के किसानों की संपत्ति होते थे। उन जंगलों को अंग्रेजी सरकार की संपत्ति घोषित करवा दिया। कानून बना के और उसी कानून का नाम है 'इंनिडयन फारेस्ट अक्ट। फिर अंग्रेजों ने उस कानून को कितनी सख्ती से लागू करवाया कि अंग्रेजों की सरकार के जो ठेकेदार होते थे वो जंगल कटवाते थे। जंगल से लकडि़या लेके जाते थे। और भारत का कोर्इ भी किसान अगर जंगल में जाकर लकड़ी काट लाए तो उसको सजा दी जाती थी। तो भारत का किसान, भारत का आदमी जंगल से लकड़ी काट नहीं सकता। अंग्रेजों ने कानून बना दिया और अंग्रेजों की सरकार जो थी उनके जो ठेकेदार होते थे वो जंगल से लकड़ी कटवाते थे।
    

तो जंगल के जंगल साफ करवाना शुरु किया अंग्रेजों की सरकार ने इस कानून के आधार पर और जंगल खत्म होते गए तो फिर किसानों का क्या नुकसान हुआ। आप जानते है जंगल खत्म होते चले जाने के कारण जो मिट्टी का जमाव होता है पेड़ों के आस-पास वो मिट्टी का जमाव छूटने लगता है। अब मिट्टी का जमाव जब छुटने लगता है तो वो मिट्टी बहने लगती है। और मिट्टी बहने लगती है तो नदियों में जाती है। नालों में जाती है। लहरो में चली जाती है। और मिट्टी बह-बहकर जब नदियों में बढ़़ती चली जाती है तो नदियों का स्थर ऊँचा होता चला जाता है। नदियों की गहरार्इ कम होती चली जाती है। लगातार मिट्टी बह-बहकर अगर पानी के साथ आयेगी। पहले जंगल होते थे। पेड़ होते थे। तो पेड़ मिट्टी को बांध के रखता तो बारीश के समय मिट्टी बह नहीं सकती जंगल से। लेकिन पेड़ काट लिए जायेंगे। तो पेड़ों के आस-पास जो जमा की गयी जो मिट्टी है। वो बहना शुरु हो जायेगी और वो मिट्टी पानी के साथ बहकर नदी में जायेगी। और नदियों में जायेगी तो नदियो का जो स्तर है। नदियों की गहरार्इ है वो कम होती चली जाएगी। नदियों में मिट्टी बढ़़ती चली जाएगी तो पानी कम आयेगा नदियों में। और पानी कम आयेगा तो बाढ़ आयेगी और बाढ़ आयेगी तो किसानों की फसल चौपट हो जायेगी। अंग्रेजों ने इस तरह से कानून बना दिया 'इंनिडयन फारेस्ट एक्ट  का और फिर उसका सत्यानाश किसानों को झेलना पड़ा। एक तो जंगलों से मिलने वाली संपत्ति किसानों के लिए बंद हो गर्इ। दूसरा जंगल जो किसानों की सुरक्षा व्यवस्था कर सकते थे वो जंगल फिर धीरे-धीरे खत्म होते चले गए।

    एक काम और किया अंग्रेजों ने, उनकी सरकार ने कि किसान जो कुछ भी अनाज पैदा करता था अपने खेत में उसका मूल्य अंग्रेजों की सरकार तय करती थी। माने पैदा करता था किसान और मूल्य तय करती थी अंग्रेजों की सरकार। तो बड़ी मंड़ीया होती थी, बड़े हाट लगते थे, बड़ी पेठ लगती थी, जिसमें किसान अपना अनाज बेचने के लिए इकठठे होते थे तो अंग्रेजों का बड़ा आफीसर जाता था और उस मंड़ी में जाकर अनाज का दाम तय कर आता था। यह अनाज इस दाम पर बिकेगा। यह अनाज इस दाम पर बिकेगा। माने मेहनत किसान करता था और अनाज का दाम अंग्रेज तय करते थे और जानबुझकर अंग्रेजों की सरकार किसानों की मेहनत से पैदा किए गये अनाज का दाम इस तरीके से तय करती थीं कि किसानों को ज्यादा कुछ मिलने ना पाए। उनको लगातार नुकसान होता चला जाये। उनको लगातार घाटा होता चला जाये। इस तरह का कानून अंग्रेजों ने बना रखा था इस देश में।
   

बाद में अंग्रेजों ने क्या किया कि किसान अपने अनाज को एक गाँव से लेकर दूसरे गाँव में जाये बेचने के लिए तो उसपर भी बंदी लगा दी। एक गाँव का किसान अपने अनाज को लेकर दूसरी जगह जाकर बेच नहीं सकता। एक जिले का किसान अपने अनाज को लेकर दूसरे जिले में जाकर बेच नहीं सकता। इस तरह की सक्त पांबदी अंग्रेजों ने, उसकी सरकार ने लगा दी और इस तरह से किसानों को बिलकुल घेर के रख दिया। अंग्रेजों की सरकार ने कानून बना-बनाकर और यह हर तरह का कानून बनता था और जो किसान उनका पालन नहीं करते थे तो उनको फाँसी दी जाती थी। उनको कोडे लगाये जाते थे।
   

कर्इ बार अंग्रेजों की सरकार किसानों को बर्बाद करने के लिए कुछ इस तरह के भी काम करती थी। जैसे जबरदस्ती किसानों से कुछ खास तरह की फसल पैदा करवायी जाती थी। आप जानते है बिहार के किसानों को अंग्रेज जबरदस्ती नील की खेती करवाते थे। जिस जमीन पर सबसे ज्यादा धान पैदा हो सकता है बिहार में और होता था। उस जमीन पर अंग्रेजों की सरकार जबरदस्ती नील की खेती करवाती थी और किसान जब नील की खेती करने से मना करते थे तो उनके ऊपर अत्याचार किया जाता था। अंग्रेजों की सरकार को क्या रस था नील की खेती करवाने में। अंग्रेजों को नील की जरुरत थी। युरोप में नील बहुत बिकता था। अंग्रेजों के अपने बाजार में नील बहुत बिकता था। और दूसरी मुशिकल यह थी कि नील की खेती करने से खेती बहुत बर्बाद होती थी। तो अंग्रेजों को नील चाहिए युरोप के बाजारों में बेचने के लिए और उस नील को पैदा करने के लिए भारत के किसान को मजबूर करते थे।        
    

गांधीजी ने जो सबसे पहला सत्याग्रह किया था अपने चंपारण्य के प्रवास में, वो सत्याग्रह इसी सवाल को लेकर था कि अंग्रेजों की सरकार जबरदस्ती किसानों से नील की खेती करवाती थी और गांधीजी कहा करते थे कि यह सबसे बड़ी हिंसा है। किसानों की मर्जी के खिलाफ जबरदस्ती उनसे किसी फसल का पैदा करवाया जाना गांधीजी कहा करते थे कि हिंसा है। तो इसलिए चंपारन का सत्याग्रह करना पड़ा था महात्मा गांधी को। ऐसे ही अंग्रेजों की सरकार ने मालवा के इलाके में किसानों को मारकर पीटकर जबरदस्ती उनसे अफीम की खेती करवाना शुरु किया। यह जो आज हमारे देश में बहुत बदनाम है मालवा का क्षेत्र। और हम लोग अकसर यह कहा करते है कि मालवा के किसान सबसे ज्यादा अफीम पैदा करते हैं। यह जो अफीम पैदा करवाने का किस्सा है यह अंग्रेजों का शुरु करवाया हुआ किस्सा है। हमारे देश में अंग्रेजों के आने के पहले अफीम की खेती नहीं थी। और होगी तो कहीं छुट-पूट, थी बड़े पैमाने पर नहीं थी। लेकिन अंगे्रजों की सरकार ने मालवा के किसानों को मार-पीट कर जबरदस्ती उनपर अत्याचार करके अफीम की खेती करवायी।


बाद में अंगे्रजों की सरकार ने एक कानून और बनाया। जब यहाँ अकाल पडना शुरु हो गया। तो अनाज के उत्पादन में और ज्यादा कमी आ गयी तो अंगे्रजों की सरकार जो लगान वसुलती थी वो लगान में भी कमी आने लगी।   क्योंकि अनाज का उत्पादन कम हुआ तो लगान मिलना कम हो गया तो अंग्रेजों की सरकार ने फिर और ज्यादा अत्याचार करना किसानों के ऊपर शुरु कर दिया और एक बार तो अंग्रेजों की सरकार ने इस कदर अत्याचार किया भारत के किसानों पर आपको याद होगा 1939 में दुसरा विश्व युध्द जब शुरु हुआ और इस दूसरे विश्व युध्द में जब अंग्रेजों की सरकार फंसी युध्द करने के लिए तो अंग्रेजों की सेना दूसरा विश्व युध्द लढ़ रही थी। लेकिन अंग्रेजों की सेना जो युध्द लढ़ रही थी अपने स्वार्थ की पूर्ती के लिए। उस अंग्रेजी सेना के लिए भोजन भारत से भेजा जाता था। अनाज भारत से भेजा जाता था। गो-मांस भारत से भेजा जाता था। अंग्रेजों की फौज लढ़ रही थी दूसरे विश्व युध्द में और दुसरे विश्व युध्द का काफी खर्चा भारत के किसानों को बर्दाश्त करना पड़ता था। दूसरे विश्व युध्द के समय में अंग्रेजों की सरकार ने एक तो किसानों पर टक्स और बढ़़ा दिया था। लगान और ज्यादा बढ़़ा दिया था। भारत के उधोगों पर टक्स बढ़़ा दिया था। भारत के उधोगों पर ज्यादा से ज्यादा भारत के उधोगों से रेवेन्यू कलेक्शन हो सके। युध्द के लिए ऐसी व्यवस्थायें बनायी थी और दूसरी तरफ भारत का भोजन। भारत का अनाज। भारत के गाय का कत्ल करने के बाद मांस अंग्रेजों की फौज को मिल सके लगातार उसकी भी व्यवस्था की थी!

आप जानते है कि जब भारत के अन्न, भारत का अनाज अंग्रेजों की फौज को जाने लगा तो पहले से ही इस देश में अन्न उत्पादन में काफी कमी आ चूकी थी। फिर जो कुछ बचा हुआ अन्न था वो अंग्रेजों ने यहाँ से बाहर भेजना शुरु कर दिया। अपने देश में बेचना शुरु कर दिया था। तो फिर अनाज की कमी और ज्यादा हो गर्इ तो अंगे्रजों ने और एक कानून बना दिया। और वो कानून है 'राशन कार्ड का कानून जो आज भी इस देश में चल रहा है। आप में से बहुत सारे लोग नहीं जानते कि यह राशन कार्ड क्यूँ चलाया गया इस देश में। हम सब के घर में राशन कार्ड तो है। लेकिन वो राशन कार्ड क्यूँ चलाया था। अंग्रेजों ने क्यूँ शुरु किया था यह कानून यह बहुत कम लोग जानते हैं। 1939 के साल में अंग्रेजों ने राशन कार्ड का कानून बनवाया और भोजन और अनाज पर उन्होंने राशनिंग की व्यवस्था शुरु करवायी और यह राशन कार्ड का कानून अंग्रेजों ने क्यूँ बनवाया। क्योंकि यहाँ का अनाज यहाँ का भोजन इंग्लैंड चला जाता था। यहाँ के लोगों को भुखमरी की हालत का सामना करना पड़ता था। तो भारत के लोगों को भुखमरी की हालत का सामना करते हुए लोग जब मरते थे तो अंग्रेजों की सरकार ने लोगों को थोड़ा तसल्ली देने के लिए कानून बना दिया की राशन कार्ड आप ले लो। अंगे्रजों की सरकार से और जिस व्यक्ति के पास राशन कार्ड होगा उसको सस्ते दाम पर अनाज मिल सकेगा। तो जिन लोगों ने राशन कार्ड बनवाये। अंग्रेजों की सरकार के आफिस में जाकर घूस देकर, रिश्वत देकर भ्रष्टाचार करके उन लोगों को ही सिर्फ अनाज मिलता था। बाकी लोगों को अनाज मिल नहीं पाता था। तो इस तरह के अत्याचारी कानून और इस तरह की व्यवस्था अंग्रेजों ने शुरु की थी। 

किसानो कि स्थिति अंग्रेजों के समय और आज के समय मे तुलना

 किसानो कि स्थिति अंग्रेजों के समय और आज के समय मे तुलना




खेतिइस देश में हिंसक व्यवस्थाओं के कारण भारत का किसान बर्बाद हुआ और भारत की खेती बर्बाद होती चली गर्इ और तकलीफ हमारी यह है कि जिस तरह से अंग्रेजों की सरकार ने भारत की खेती को बर्बाद किया था। जिन नीतियों के कारण भारत के किसान को बर्बाद किया गया था। जिन नीतियों और जिन कानूनों के चलते भारत के किसान की बर्बादी आयी थी। भारत की खेती बर्बाद हुर्इ थी। वो सारी की सारी नीतियां वो सारे के सारे कानून आज भी चल रहे हैं। उदाहरण के लिए जो 'लेण्ड एक्यूजीशनस एक्ट अंग्रेजों ने बनाया वो आज आजादी के पचास साल के बाद भी चलता। जो 'इंडियन फारेस्ट एक्ट अंग्रेजों ने बनाया था वो आज आजादी के पचास साल के बाद भी चलता है। जो कानून अंगे्रजों ने बनाया किसानों के पैदा किये हुए अनाज का दाम तय करने के लिए वो कानून इस देश में आज भी चलता है। बस फरक इतना है कि पहले गोरे अंग्रेज उस कानून को चलाते थे। अब काले अंग्रेज उस कानून को चलाते है और आज भी इस देश में ठीक उसी तरह से किसानों की जमीनें छीनी जाती हैं। जिस तरीके से अंग्रेजों के जमाने में छीनी जाती थीं।


अंग्रेजों के जमाने में जमीन कैसे छीनी जाती थी। एक कलेक्टर नाम का आफीसर अंग्रेजों ने बनाया। सन 1860 में एक कानून बनाया अंग्रेजों ने 'इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट और इस 'इंडियन सिविल सर्विसेस एक्ट के नाम पर कलेक्टर नाम की पोस्ट बनवायी और उस कलेक्टर को यह अधिकार दिया गया कि वो गाँव-गाँव के किसानों को मार-पीट कर, उनके ऊपर अत्याचार करके, रेवेन्यू वसूले, लगान वसूले गाँव-गाँव में कलेक्टर क्या करता था कि जब किसान लगान नहीं दे पाता था तो उसकी जमीन सीज कर लेता था। उसकी संपत्ति सीज कर लेता था। उसके लिए एक नोटिस जाता था किसान को और उसकी संपत्ति जब्त कर ली जाती थी।


तो जिस तरह से संपत्ति जब्त कर ली जाती थी। किसान की और उनकी जमीन छीन ली जाती थी।   ठीक उसी तरह से आज भी इस देश में होता है। अब क्या होता है। कलेक्टर कभी नोटिस देता है। गाँव के किसान की जमीन छीन ली जाती है। वो किसान को यह अधिकार भी नहीं होता है कि वह अपनी जमीन के बारे में कहीं कोर्इ केस लड़ सके। जिरह कर सके। क्योंकि कानून ऐसा है अंग्रेजों के जमाने का बनाया हुआ कि सरकार इमरजेंसी बताकर किसी भी गाँव के किसी भी किसान की कोर्इ भी जमीन छीन सकती है। मान लीजीए सरकार को किसी भी जमीन पर कारखाना बनवाना है और गाँव का किसान वो जमीन देना नहीं चाहता तो सरकार जबरदस्ती नोटिस इश्यु करवाएगी कलेक्टर के माध्यम से तो गाँव किसान की वो जमीन छीन ली जाएगी। फिर गाँव के किसान को मजबूरी में कुछ औना-पौना दाम देकर जमीन सरकार के नाम लिखवा ली जायेगी। जिस तरह का अत्याचारी कानून अंग्रेज चलाते थे। वो ही आज भी चल रहा है और हिन्दुस्तान के किसानों की हजारों एकड़ जमीन हर साल छीनी जाती है।


पहले हिन्दुस्तान में किसानों की जमीन छीनी जाती थी अंग्रेजों के लिए, अंग्रेजीं कम्पनियों के लिए। अब इस देश के किसानों की जमीन छीनी जाती है बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के लिए, देशी कम्पनियों के लिए, विदेशी कम्पनियों के लिए। पिछले 7-8 वषो से हमारे देश में जो उदारीकरण की नीतियां चल रही हैं, जागतीकरण की नीतियां चल रही है। उन नीतियों के कारण हजारों एकड़ जमीन महाराष्ट्र के किसानों की छीनी गर्इ। हजारों एकड़ जमीन उत्तर प्रदेश के किसानो की छीनी गर्इ, हजारों एकड़ की जमीन तामिलनाडू, कर्नाटक, गुजरात, आन्ध्रप्रदेश, पंजाब, हरियाणा आदि के किसानो की छीनी गर्इ है। हर साल हजारों एकड़ जमीन गाँव के किसानो से छीन-छीन कर परदेशी कम्पनियों को बेच दी जाती है और उस जमीन पर परदेशी कम्पनियों के बड़े-बड़े कारखाने लगाये जाते हैं। जिस जमीन पर धान पैदा होता था, गेहूँ पैदा होता था। अब उस जमीन पर कारखाना चलता है। सरकार क्या बोलती है। वो कहती है - औधोगीकरण हो रहा है। इण्डस्ट्रीयलार्इजेशन हो रहा है। वो लोग बोलते हैं  कि यह फायदे का काम हो रहा है जो इंडस्ट्रीज बन रही है।


आप जानते हैं दुनिया में और हमारे देश में कोर्इ भी ऐसी इंडस्ट्रीज नहीं है। जिसमें सौ रुपया लागत के रुप में अगर लगाया जाए तो सौ ही रुपया का उत्पादन होगा। हर फक्टरी में लागत ज्यादा होती है उत्पादन कम होता है। और भारत सरकार और भारत सरकार के नीति बनाने वाले लोग किस तरह की बेवकुफ नीतियां बनाते है कि वो इंडस्ट्रीज को महत्वपूर्ण मानते हैं और खेती को उससे कम मानते हैं ।  मेरी मान्यता यह है कि खेती से बड़ी इंडस्ट्रीज पूरी दूनिया में कोर्इ नहीं है। खेती से बड़ा उधोग पूरी दूनिया में कोर्इ नहीं। आप पूँछेगें वो कैसे? किसान एक गेहूँ का बीज डालता है और उस एक गेहूँ के बीज डालने के बाद कम से कम 50-60 गेहूँ के दाने लगते हैं। तो एक गेहूँ का बीज डाला और उसमें से 50-60 गेहूँ के बीज पैदा हुए। यह बतार्इए, ऐसा कारखाना आपने दुनिया में कहीं देखा है। इतना जबरदस्त पूंजी का निर्माण जिस कारखाने में हो सके ऐसा कारखाना कहीं आपने देखा है। मैंने तो जितने कारखाने देखे जीवन में, वहाँ सौ रुपया डालते हैं तो सत्तर रुपये का उत्पादन मिलता है। सौ रुपया डालते हैं तो अस्सी रुपये का उत्पादन मिलता है। सौ रुपया डालते हैं तो पचास रुपये का उत्पादन मिलता है। माने जितनी लागत होती है। उससे 50 टक्का, 60 टक्का ही उत्पादन मिलता है। लेकिन खेती ऐसा उत्पादन है जिसमें आप एक रुपये का सामान डालिए सौ रुपये का सामान मिलता है।


तो इतना बड़ा उधोग है जिसका सत्यानाश अंग्रेजों ने किया था। अब वहीं सत्यानाश भारत की  सरकार कर रही है। और आज भी इस देश मे वैसी ही नीतियां चलार्इ जा रही हैं जो अंगे्रेजों के जमाने में चलार्इ जा रही थी। अंग्रेजों के जमाने में किसान अपने अनाजों का दाम तय नहीं कर पाता था। आज आजादी के पचास साल के बाद भी किसान अपने अनाज का दाम तय नहीं कर पाता  इस देश में। सिर्फ किसान ही एक ऐसा वर्ग है जो अपने द्वारा खेत में पैदा किए गए किसी भी सामान का दाम खुद नहीं तय कर पाता। जितने भी कारखाने चलते हैं इस देश में, जितने भी उधोग चलते हैं पूरे देश में। हर उधोग और हर कारखाना चलाने वाला आदमी अपने द्वारा पैदा की गर्इ हर वस्तु का दाम खुद तय करता है। लेकिन किसान ही एक वर्ग है इस देश में, कास्तकार ही एक ऐसा वर्ग है इस देश में जो अपने द्वारा पैदा किये गए गेहूँ का दाम तय नहीं कर पाता। अपने द्वारा पैदा किये गये बाजरे का दाम तय नहीं कर पाता। अपने द्वारा पैदा किये गये धान का दाम तय नहीं कर पाता। अपने द्वारा पैदा किये गये मक्के का दाम तय नहीं कर पाता। कुछ भी चीज पैदा करता है किसान, उसका दाम वो खुद तय नहीं कर पाता। सरकार तय करती है। जिस तरह से अंग्रेजों की सरकार करती थी वो काम आज भी हो रहा है।


इसी तरह से अंग्रेजों की सरकार ने भारत के किसानों पर पाबंदी लगा रखी थी कि किसान एक जिले का माल दूसरे जिले में नहीं ले जायेगा। वैसी ही पाबंदी आज भी है। एक प्रदेश का पैदा किया हुआ अनाज दूसरे प्रदेश में नहीं जाता। उस पर पाबंदी लाग रखी है सरकार ने। जिस तरह से अंग्रेजों की सरकार किसानों के ऊपर लगान वसूलती थी। टक्स वसूलती थी। अब उस तरह की चर्चा इस देश में फिर शुरु हो गर्इ है।
   
    आजादी के पचास साल के बाद खेती पर तो लगान कुछ कम कर दिए सरकार ने। लेकिन प्दकपतमबज  तरीके से, अप्रत्यक्ष तरीके से किसानों की जेब काटना शुरु कर दिया सरकार ने। और किसानो की जेब कैसे काटती है सरकार। अगर किसान कपास की खेती करता है और एक किवन्टल कपास पैदा करने में उसका दो हजार रुपया खर्च होता है तो एक किवन्टल कपास जब बेचने जाएगा किसान तो सरकार कहेगी 1800 रुपये दाम ले लो। 1900 रुपये दाम ले लो। बहुत अधिक आप सरकार के साथ झगड़ा करेंगे तो 2000 रुपये किवन्टल का दाम देने को तैयार हो जायेगी। माने जिस कीमत पर आपकी कपास की फसल लग रही है वो ही कीमत आपको मिलेगी। मुनाफा कुछ नहीं होने देगी आपको। तो आपकी जेब ही काट रहे हैं ना या तो टक्स लगाकर आपकी जेब काटे या तो लगान वसुल कर आपकी जेब काटे या फिर आपके ऊपर पाबंदी लगाकर आपके दाम तय करने की नीति सरकार अपने हाथ में ले ले और आपको मुनाफा नहीं होने दे।  तो यह एक तरह का टक्स ही है।


किसानों के लिए और दूसरा तरीका क्या अपनाया हुआ है सरकार ने कि किसान जो कुछ पैदा करता है और जब बाजार में बेचने जाता है तो उसकी कीमत नहीं मिलती उसका दाम उसको नहीं मिलता। और उसके विपरीत किसान जो कुछ बाजार से खरीदता है उसकी कीमतें लगातार बढ़़ती चली जाती हैं। अपनी खेती में डालने के लिए फर्टीलायजर लेता है खाद लेता है, अपनी खेती में डालने के लिए कीटनाशक लेता है। अपनी खेती में डालने के लिए बीज लेता है। अपनी खेती में डालने के लिए और कोर्इ चीज इस्तेमाल करनी हो किसान को जो बाजार से खरीदनी पडे़। तो उन सबके दाम तो बढ़़ते चले जाते हैं। सौ प्रतिशत दाम बढ़ जायेगा। दो सौ प्रतिशत दाम बढ़़ जायेगा। तीन सौ प्रतिशत दाम बढ़़ जायेगा। चार सौ प्रतिशत दाम बढ़ जायेगा। पाँच सौ प्रतिशत दाम बढ़ेगा। लेकिन जो किसान बाजार में बेचने के लिए जायेगा कोर्इ चीज तो उसका दाम नहीं बढ़़ता। तो हमेशा खेती घाटे का सौदा रहती है। खेती में जो लगाते हैं वो निकलता नहीं और खेती में जितना लगाते है जब निकलता नहीं है तो किसान की खेती घाटे में आ जाती है और जब घाटे की खेती करना किसान शुरु करता है तो कर्जदार होता है। कर्इ-कर्इ से कर्ज लेता है या साहूकार से या बैंको से ले और कर्जदार हो जाता है। तो उसकी हालत और भी दयनीय हो जाती है।


इस देश में ऐसे नियम और ऐसी व्यवस्थाएं चलार्इ गयी हैं। और कर्जा लेकर जब किसान खेती करता है तो उसके क्या नतीजे निकलते है। पिछले साल आंध्रप्रदेश के 100 किसानों ने आत्महत्या की थी वो सबसे बड़ा उदाहरण है इस देश के सामने। 100 किसानों ने बैंक से कर्जा लेकर कपास की फसल लगायी थी आंध्रप्रदेश में।  उस कपास की फसल पर कीड़ा लग गया और कपास की फसल पर जब कीड़ा लग गया तो कीड़े को मारने के लिए किसान दवा लेके आये और दवा अंग्रेजी कंपनी की थी। परदेशी कंपनी की थी। उस दवा को उन्होंने खेत में छिड़का। उस दवा पर जितने निर्देश लिखे हुए थे सब अंग्रेजी में थे। किसान अंग्रेजी पढ़ना जानते नहीं तो दवा उन्होंने छिड़क दी खेत में। तो जो कपास की फसल बची हुर्इ थी वो भी पूरी तरह से चौपट हो गर्इ। तो किसानों के पास कुछ नहीं बचा। वो बैंकों से कर्जे के रुप में लिया था उसे वापस कर सके। बैंक वाले आए अपना कर्जा मांगने के लिए। किसानों के पास कुछ नहीं था देने के लिए। तो किसानों ने क्या किया जो कपास की फसल पर कीड़ा मारने की दवा लेकर आये थे वहीं दवा उन्होंने खुद पी और सब के सब मर गए। ऐसे किसान आत्महत्या करते है।


हिन्दुस्तान में पैंतालीस करोड़ छोटे किसान हैं जिनके पास दो बीघा की जमीन है। तीन बीघा की जमीन है। पाच बीघा की जमीन है। एैसे पैंतालीस करोड़ किसान हैं। जरा उनकी आप कल्पना तो करिए कि पैतालीस करोड़ किसान आज की परिस्थितियों में किस तरह से खेती करते होगे और किस तरह से कर्जदार बनते होंगे। और इस देश में कभी-कभी क्या होता है। गाँव का किसान कोर्इ कर्ज ले लेता है। कर्ज चूकाने की स्थिति में नहीं होता और कभी-कभी वो कर्ज माफ कर दिया जाए तो पूरे देश में हंगामा हो जाता है। और हर साल हजारों करोड़ों रुपये का माफ किया जाता है पैसा बड़े-बड़े उधोगों पर, बड़ी-बड़ी इंडस्ट्रीज पर, इंडस्ट्रीज बैठ जाती हैं, उधोग बैठे जाते हैं। उनके पैसे डूब जाते हैं और  वाले कुछ नहीं कर पाते। और जब किसान के कर्जे की माफी की बात आती है तो हंगामा करते हैं।


पूरे देश में ऐसी व्यवस्था आज भी चल रही है। इस देश में किसानों की जमीनें छीनी जा रही हैं। उनकी पैदा की गर्इ फसल के दाम तय करने का अधिकार उनको नहीं मिल पाया है। जो कुछ खेत में लगाने के लिए बाजार से खरीदते है। उन सबके दाम बढ़ते चले जा रहे हैं। किसान जो कुछ पैदा करता है उसका उसको दाम नहीं मिल पा रहा है। बिजली का दाम बढ़़ा दिया। पानी का दाम बढ़़ा दिया। खाद का दाम बढ़़ा दिया। जो सब्सिडी मिल सकती थी थोडी बहुत किसानों को गैट करार के बाद वो भी पूरी तरह से खत्म होती चली जा रही है। इस तरह से लगातार बर्बादी के रास्ते पर ही है। जिस तरह से बर्बादी अंग्रेजों के जमाने में किसानों की आयी थी। वो ही बर्बादी आजादी के पचास साल के बाद भी है और इन बर्बादियों को बढ़ाने के लिए कुछ नये-नये कानून बनाए जा रहे है। जैसे अंग्रेजों की सरकार नये-नये कानून बनाती थी किसानों को बर्बाद करने के लिए। वैसे ही अब नये-नये कानून फिर किसानों को बर्बाद कराने के लिए बनाये जा रहे हैं।    

भारत मे खेती और किसानों की स्थिति 200 से 300 वर्ष पहले

 भारत मे खेती और किसानों की स्थिति 200 से 300 वर्ष पहले




खेतीदेश के सभी सम्मानित किसानों - आज के इस व्याख्यान में मैं खेती और किसानों के बारे में जो स्थिति है भारत की, उसके बारे में कुछ कहूँगा। भारत की खेती, भारत के किसान आज जिस स्थिति में है । आज से 150 साल पहले भारत के किसान, भारत की खेती किस हाल में थी। उन दोनों का तुलनात्मक विश्लेषण आज के इस व्याख्यान में मैं करने की कोशिश करुँगा और यह तुलनात्मक विश्लेषण इस दृषिट से होगा कि 200 साल पहले खेती और किसान की स्थिति बहुत अच्छी थी तो आज उसकी समस्या क्या हो गर्इ और उसको फिर सुधारने के लिए कौन सा रास्ता हो सकता है। वो रास्ता हम सारे देश के लोगों को ढुंढना होगा। उस दृषिट से आज के पूरे व्याख्यान में खेती और किसानों के विषय को मैंने शामिल करने की कोशिश की है।


आप सब जानते हैं कि भारत में खेती और कृषि कर्म बहुत ही उच्च दर्जे का व्यवसाय माना गया है और भारतीय समाज में कृषि कर्म और किसानों के लिए खेती करना केन्द्र बिन्दु रहा है। ऐसा कहा जाए कि भारतीय समाज कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर टिका हुआ है तो यह ठीक ही है। और जो समाज कृषि आधारित अर्थव्यवस्था पर टिका हुआ होता है। उस समाज की अपनी कुछ खास तरह की प्राथमिकताएं होती हैं। खास तरह की जरुरतें होती हैं।

   
भारत का समाज पिछले हजारों सालो से कृषि कर्म को केन्द्र में मानकर चलता रहा, तो इसलिए भारत का समाज कुछ विशिष्ट तरह का समाज है। हमारे यहाँ कृषि की जो प्रधानता रही है। उसके पीछे एक तथ्य यह भी है कि भारतीय मौसम और जलवायु कृषि के काफी अनुकूल है। खेती के बहुत अनुकूल है। यहाँ जो मौसम है बहुत सातत्य वाला है जैसे उदाहरण के लिए आज सूरज निकला है तो कल भी निकलेगा, परसों भी निकलेगा, तीन महीने बाद भी निकलेगा, तीन साल बाद भी निकलेगा, बीस साल बाद भी निकलेगा, तीन सौ साल बाद भी निकलेगा, तीन हजार साल भी हो जायेगें तो भी निकलेगा। माने सूरज के निकलने में कही कोर्इ कमी नहीं आने वाली भारतीय जलवायु में, लेकिन युरोप में यह बात सच नहीं है। युरोप में आज सूरज निकला है। कल नहीं भी निकलेगा। युरोप में कल सूरज निकला है,  हो सकता है नौ महीने तक लगातार सूरज नहीं निकलेगा। क्योंकि युरोप के देशों में सामान्य रुप से साल में सिर्फ तीन महीने ही धूप निकलती है। बाकी नौ महीने तो वहाँ धूप निकलती ही नहीं है। सूर्य के दर्शन ही नहीं होते। तो जितना सातत्य भारत की जलवायू में है। भारत के मौसम में है। उतना सातत्य युरोप में नहीं है। उसी के साथ-साथ भारत की जो भूमि है, भारत की जो मिट्टी है खेत की वो बहुत नरम है। युरोप के खेतों की मिट्टी नरम नहीं है बहुत कठोर है। तो जिन देशों के खेत की मिट्टी बहुत कठोर होती है। वहाँ कृषि प्रधान व्यवस्था संभव नहीं होती है। और आप जानते हैं कि खेती के लिए मिट्टी का नरम होना बहुत जरुरी है। इसलिए भारत में कृषि कर्म बहुत प्रधान  रहा। भारत का कृषि कर्म केन्द्र बिन्दू रहा पूरे समाज का। तो उसका सबसे बड़ा कारण है कि यहाँ की जलवायू बहुत अच्छी है। यहाँ की खेती की मिट्टी बहुत अच्छी है।
   

दूसरा, यहाँ के लोगों को मौसम, जलवायू और मिट्टी से जुडे़ हुए जितने कारक हैं। उनका बहुत अच्छा ज्ञान है। अगर यह कहा जाए कि भारत के किसान बहुत विद्वान आदमी हैं तो इसमें कोर्इ शक नहीं है। वो जानता है कि बारिश कब आने वाली है। किसान को मालूम होता है गर्मी कब पडने वाली है। किसान को यह भी मालूम होता है कि सर्दी का समय जो आने वाला है वो कब आने वाला है और किसान उसके हिसाब से अपनी खेती की चर्या को बदल लेता है। बारिश में क्या करना है। गर्मी में क्या करना है। सर्दीयों में क्या करना है। यह सब बातें सामान्य रुप से इस देश का हर किसान जानता है और इसलिए मैं उसको कहता हूँ कि उसको अपने जीवन को चलाए रखने के लिए जो जरुरी कारक हैं उनका बहुत अच्छा ज्ञान है।
   

तो एक तो जीवन का ज्ञान है। दूसरा, मौसम और जलवायू का ज्ञान है। तीसरा, मिट्टी बहुत अच्छी है। चौथा,  यहाँ की जो जलवायु है समसीतोष्ण है। ना तो बहुत गर्मी है ना तो बहुत बारिश है। युरोप के देशों में कभी-कभी तो बहुत सर्दी पडती है। माइनस 40 डिग्री सेंटिग्रेट तापमान हो जाता है। माइनस 20 डिग्री सेंटिग्रेट तापमान हो जाता है। भारत में इस तरह से कभी तापमान बहुत नीचे भी नहीं जाता और कभी ऊपर भी नहीं जाता। तो भारत की जलवायू समसीतोष्ण है। जो खेती के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है और पानी की व्यवस्था इस देश में बहुत प्रचुरता में है। हजारों सालों से इस देश में पानी की मात्रा काफी रही है। बारिश का होने वाला पानी, बारिश से मिलने वाला पानी, जमीन के अंदर मिलने वाला पानी और जमीन के ऊपर तालाबों के माध्यम से मिलने वाला पानी। इन सभी की प्रचुरता भारतीय समाज में काफी लम्बे समय से रही है। इसलिए भारत की खेती बहुत उन्नत रही है और भारत का किसान बहुत उन्नत रहा।
   

तो भारत की खेती और भारत के किसान के उन्नत होने के पीछे जो सबसे प्रमुख कारणों में से एक कारण है। एक तो जलवायू का सातत्य। मौसम का सातत्य। मौसम का लगातार निरन्तर रुप से प्रवाहित होना, पानी की उपलब्ध्ता बहुत अच्छी मात्रा में होना और खेती की जमीन बहुत अच्छी नरम होना, यह तीन बड़े कारक हैं। जिसके लिए भारतीय खेती और भारतीय कृषि कर्म बहुत उन्नत रहा और इतने उन्नत कृषि कर्म के बारे में अगर कभी अंदाजा लगाना हो कि किस तरह की खेती हमारे यहाँ होती रही है 200 साल पहले, 300 साल पहले के मेरे पास कुछ दस्तावेज है। हमारे यहाँ एक बहुत बड़े इतिहासकार हैं प्रोफेसर धर्मपाल उनकी मदद से हम लोगों ने कुछ दस्तावेज देखें  है। वो दस्तावेज यह बताते हैं कि करीब आज से 300 साल पहले भारत की खेती युरोप के किसी भी देश की खेती से बहुत अच्छी मानी जाती थी। उदाहरण ले-ले इंग्लैंड का।   आज से 300 साल पहले इंग्लैंड के एक एकड़ खेत में जितना अनाज पैदा होता था उसकी तुलना में आज से 300 साल पहले भारत के एक एकड़ खेत में उसका तीन गुना ज्यादा अनाज पैदा होता था। उदाहरण से अगर समझना चाहें तो ऐसे समझो कि भारत के एक एकड़ खेत में अगर 50 किवन्टल अनाज पैदा होता था। तो इंग्लैंड के एक एकड़ खेत में मुशिकल से 15-16 किवन्टल अनाज पैदा होता था। तो इंग्लैंड से तीन गुणा ज्यादा उत्पादन भारत के खेतों का रहा है  आज से 300 साल पहले और भारत की उन्नत जिस तरह से खेती रही है ठीक उसी तरह की उन्नत खेती चीन की भी रही। चीन की खेती का उत्पादन भी लगभग इसी तरह का रहा है। जो भारत की खेती में रहा है। दुनिया में दो ही ऐसे देश माने जाते हैं जिनकी खेती पिछले हजारों साल से बहुत उन्नत रही है। जिनके किसान पिछले हजारों साल से उन्नत रहें हैं। चीन और भारत की खेती के उन्नत होने का एक दस्तावेज है और एक प्रमाण है। जो यह बताता है कि लगभग 1750 ।क् के करीब भारत और चीन का दोनों देशों का मिलाकर कुल उत्पादन सारी दुनिया के कुल उत्पादन का सत्तर प्रतिशत होता था। माने पूरी दुनिया में जितना अनाज पैदा हो रहा हैं। पूरी दुनिया में जितना अनाज के साथ-साथ दुसरे सामान पैदा हो रहे है। उधोगों की मदद से जो सामान पैदा हो रहे है  खेती की मदद से जो सामान पैदा हो रहे हैं। उनका कुल उत्पादन पूरी दुनिया में जितना था उसका कुल सत्तर प्रतिशत उत्पादन सिर्फ भारत और चीन का होता था। तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पूरी दुनिया के सकल उत्पादन का सत्तर प्रतिशत उत्पादन आज से करीब ढार्इ सौ तीन सौ साल पहले भारत और चीन का होता था। तो इन दोनों की खेती और खेती से जुडे हुए उधोगों की  कितनी उन्नती रही होगी।

   
1760 से अंग्रेजों का शासन भारत में शुरु माना जाता है।   तो 1760 के बाद लगातार अंग्रेजों ने भारत की खेती पर ऐसे कानून लगाये, ऐसे अंकुश लगाए कि लगातार भारत की खेती बरबाद होती चली गर्इ। 1760 के बाद 1820 के साल तक अंग्रेजों ने भारत की खेती को काफी नुकसान की स्थिति में पहुँचा दिया अपने कानूनों की मदद से। तो भी पूरी दुनिया में भारत और चीन की खेती का कुल उत्पादन और खेती से जुडे हुए उधोगों का उत्पादन  लगभग 60 प्रतिशत के आस-पास रहा। तो इस बात से अंदाजा लगता है कि कितनी उन्नत खेती और खेती से जुडे हुए उधोग रहे होंगे इस देश में। इसके अलावा खेती और किसानों से जुडे हुए लोगों की समृध्दहि बहुत रही है इस देश में। आज से 200-300 साल पहले तक सबसे ज्यादा समृध्दहिशाली वर्ग इस देश का किसान ही माना जाता रहा। आज से 200-300 साल पहले तक की स्थिति यह है कि समाज का सबसे ज्यादा पैसे वाला वर्ग किसान ही माना जाता रहा और समाज में सबसे अच्छा कर्म खेती का माना जाता रहा।
   
   
एक कहावत इस देश में कही जाती है 'उत्तम खेती, मध्यम वान करे चाकरी कुकर निदान। उत्तम खेती माने खेती सबसे महत्वपूर्ण व्यवसाय है। मध्यम वान माने बिजनेस है जो व्यापार है वो दूसरे नम्बर पर है। और करे चाकरी कुकर निदान माने नोकरी करना तो कुत्ते के जीवन बिताने जैसा माना जाता है। भारतीय समाज में तो खेती सबसे उन्नत व्यवसाय रहा। दूसरे नम्बर पर व्यापार और तीसरे नम्बर पर नौकरी-चाकरी मानी जाती है। यह स्थिति इस देश में आज से 200, 250, 300 साल पहले तक की है।
   

जब अंग्रेज भारत में आए है और सरकार बनाकर उन्होंने भारत में राज्य करना शुरु किया है। तब तक इस देश में खेती की उन्नति और खेती की स्थिति बहुत अच्छी है। भारत के किसानों के और खेती की स्थिति अच्छी होने के कुछ प्रमाण हैं दस्तावेज में ।  जो यह बताते हैं  कि हमारे देश में करीब-करीब 1750 के आस-पास मैसूर नाम के राज्य में एक लाख से ज्यादा तालाब हुआ करते थे। हिन्दुस्तान में आजादी के पहले करीब साड़े सात लाख गाँव होते थे और आश्चर्य इस बात का निकलता है कि दस्तावेजों के आंकड़ो के अनुसार कि इस देश का कोर्इ भी गाँव ऐसा नहीं कि जिसमें तालाब न बना होता और आँकडे़ तो यह बताते हैं  कि बहुत सारे गाँव इस देश में ऐसे रहे है जहाँ एक से ज्यादा तालाब एक ही गाँव में रहे हैं। तो साड़े सात लाख गाँव का देश था भारत आजादी के पहले और करीब-करीब हर गाँव में एक तालाब की व्यवस्था थी तो लगभग साडे़ सात लाख तालाब पूरे देश में रहे होंगे। इससे ज्यादा भी हो सकते हैं क्योंकि कुछ गाँव में एक से ज्यादा तालाब होने की व्यवस्था थी। 
   

तो तालाब बहुत बड़ी संख्या में रहे है। कुएं बहुत बड़ी संख्या में रहे हैं। बावडियां बहुत बड़ी संख्या में रही है। बारिश की होने वाली एक-एक बूँद को हिन्दुस्तान में पूँजी की तरह से बचाने की परंपरा रही है। जिस राजस्थान को आज हम जानते हैं और हम राजस्थान के बारे में ऐसा मानते हैं कि बहुत मरु भूमि है राजस्थान की जहाँ पानी की बहुत कमी है। जहाँ पानी की बहुत किल्लत है। उस राजस्थान में ऐसी परम्परा पिछले हजारों साल से है कि बारिश की गिरने वाली एक-एक बूँद को संचित रखने की सबसे बड़ी परम्परा अगर इस देश में कहीं है तो राजस्थान में। आप राजस्थान में जार्इए जैसलमैर के इलाके में जहाँ पर यह माना जाता है कि सबसे ज्यादा सुखा पडता है। उस जैसलमैर के इलाके में आप आजू-बाजू के गाँव में घूमिए, हर गाँव में आपको तालाब मिल जायेगा और  जैसलमैर शहर के नजदीक ही सबसे बड़ा तालाब मौजूद है। जो करीब चार-पाँच सौ साल पुराना है और आज भी उसमें  पानी है। कभी वहाँ लहराते तालाब हुआ करते थे। बड़े-बड़े तालाब हुआ करते थे। यह तो अंग्रेजों के कुछ कानून थे और अंग्रेजों की कुछ व्यवस्थायें थी। जिन्होंने  भारत के तालाबों को सुखा दिया और भारत के तालाबों को बर्बाद कर दिया।
    

तालाबों की बड़ी गहरी परम्परा रही है इस देश में और कृषि का उत्पादन उसी के आधार पर है। पानी जितनी प्रचुर मात्रा में है उतना ही उत्पादन अधिक होता रहा है इस देश में इसलिए खेती का उत्पादन इस देश में बहुत रहा है और खेती के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण कारक और है। भारत में खेती के साथ-साथ पशुधन भी बहुत बड़ी मात्रा में रहा है। पशु की संख्या भी इस देश में बहुत बड़ी मात्रा में रही है और कृषि कर्म को टिकाए रखने के लिए पशुओं की संख्या इस देश में बड़ी जबरदस्त मात्रा में रही है। करोड़ों-करोड़ों की संख्या में जानवरों को पालने की परम्परा इस देश के लोगों में बहुत गहरे से बैठी हुर्इ है। तो कृषि है। कृषि के लिए केन्द्र जो बन सकती है। वो गाय इस देश में रही है। बैल रहे  है इस देश में, उनका गोबर है। गोबर से होने वाली खाद है। गाय का मूत्र है। उससे बनने वाले जो कीटनाशक बन सकते हैं इस देश में उनकी परम्परा रही है।
   

तो भारतीय कृषि इस तरीके से बहुत उन्नति के रास्ते पर जाती रही है। क्योंकि पशुओं की संख्या बहुत, तालाबों की संख्या बहुत, जमीन की अच्छार्इ बहुत है। मिट्टी बहुत नरम है। किसानों को जल वायू का बहुत अच्छा ज्ञान है। यहाँ पर बीजों की संख्या भी बहुत अच्छी रही है। हमारे देश में आज से 150-200 साल पहले तक चावल की, धान की, एक लाख से ज्यादा प्रजातियां होती थी। जो दस्तावेज उपलब्ध हैं वो बताते है कि भारत के किसानों के पास एक लाख से ज्यादा चावलों की किस्में होती थी। इस देश में सैकड़ों किस्म के बाजरे के बीज थे। सैकड़ों किस्म के मक्के के बीज थे। सैकड़ों किस्म के ज्वारी के बीज थे। सैकड़ों किस्म की प्रजातियाँ इस देश में रही हैं अनाजों की और यहाँ की सम्पन्नता बहुत ज्यादा रही है। बायोडायवर सिटी यहाँ की बहुत ऊँची रही है। तो इसलिए कृषि कर्म भी ऊँचा रहा है इस देश का।
    

आज करीब हमारे देश में 300 साल पहले के आँकड़े है जो बताते हैं कि बि्रटेन से तीन गुणा ज्यादा उत्पादन हमारे खेतों का है। आँकड़े यह बताते हैं कि कृषि कर्म इस देश का बहुत उन्नत रहा है। पशुओं के पालन के काम भी बहुत उन्नत रहे है।

तो अचानक से क्या हो गया इस देश में जो आज इस देश का किसान सब से गरीब दिखार्इ देता है ? अचानक से क्या हो गया इस देश में कि आज इस देश की खेती ही सबसे ज्यादा बर्बादी के रास्ते पे जाती हुर्इ दिखार्इ देती है ?अचानक से क्या हो गया इस देश में जो आज इस देश के खेती और किसानों की बर्बादी की स्थिति हमको चारों तरफ दिखार्इ देती है ?

Sunday, 26 July 2015

राजीव दीक्षित अहमदाबाद समिति द्वारा किये गए IIM-AHMEDABAD , और बंसी गीर गौ शाला में राजीव भाई के विचारों के प्रचार प्रसार के कार्यक्रम

राजीव दीक्षित अहमदाबाद समिति द्वारा किये गए IIM-AHMEDABAD , और बंसी गीर गौ शाला में राजीव भाई के विचारों के प्रचार प्रसार के कार्यक्रम 




ડાબે થી : ધવલ પટેલ , હરદીપ ભાઈ , અરવિંદ ભાઈ નાયક , રમેશ ભાઈ સુથાર , યોગેશ ઠાકરે 


ડાબેથી : રાજેન્દ્રભાઈ ચોપરા , જીગ્નેશ પટેલ , જતીન ભાઈ પંચાલ 
રમેશ ભાઈ સુથાર એક શાળા મા વક્તવ્ય આપે છે 
ડાબેથી : પ્રિન્સીપાલ , ચંદ્રકાંત ગજ્જર , રમેશ ભાઈ સુથાર , નયન ભાઈ પ્રજાપતી 






વનરાજ સિંહ જાડેજા 



ચુનીલાલ , ગૌ સેવા ,પ્રકાશક 
રોહિતભાઈ પટેલ , રાજીવ દીક્ષિત મેમોરીયલ સ્વદેશી ઉત્થાન સંસ્થા નાં ગુજરાત સમીતીના પ્રભારી 

દિલીપભાઈ દેવમુરારી 
પ્રદીપ દીક્ષિત , રાજીવભાઈ દીક્ષિત જી નાં ભાઈ 




ચંદ્રકાંત ગજ્જર 









ડાબેથી : પ્રકાશભાઈ શાહ , જીગ્નેશ પટેલ , જીતેન્દ્ર રામચંદાની, વિજયસિંહ રાજપૂત 










ગુરુકુળ ના વિદ્યાર્થી 







પ્રદીપ ભાઈ અને સંત શ્રી કાલીદાસ જી મહારાજ 


જીગ્નેશ પટેલ અને પ્રદ્યુમન જી 







કાલીદાસ જી મહારાજ અને નયન પ્રજાપતી 






















































राजीव दीक्षित जी को शत: शत: नमन 
भगवान करे हम ऐसेही काम करते रहे और राजीव भाई के सप्नोका भारत बनानेमे सफल होए ,,,