Saturday, 26 December 2015

श्री राजेंद्र चोपडा जी को श्रध्धांजलि

नाम : श्री राजेंद्र मफतलाल चोपड़ा 
जन्म तारीख : २७/२/१९६८,      स्वर्ग वास : २२/१२/२०१५
वतनी : शाहीबाग , अहमदाबाद 
मूल वतनी : राजस्थानी 
              श्री राजेंद्र भाई चोपड़ा एक ऐसे व्यक्ति जिसके सिर्फ खड़े रहेने से दुसरोमे लोगो की सेवा करनेका जोश भर जाए , वेहे राजीव दीक्षित स्वदेशी संस्था (अहमदाबाद ) के संपर्क में ९ मार्च २०१३ को आये , और ऐसे आंधी की तरह आये की अहमदाबाद की निष्क्रिय संस्था में जान फूंकी , उनके २.५ साल के समय अंतराल में उन्होंने राजीव दीक्षित के विचारोको लोगो तक पहोचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी , उनका एकही मकसद था की आयुर्वेद के माध्यम से भारत के हर व्यक्ति को स्वस्थ करना , उसके लिए हमेशा तत्पर रहेते थे , उन्हिकी बदोलत अहमदाबाद में हम लोगोको शुध्ध घानी का मूंगफली का तेल ,सेंधा नमक, देशी गुड, और गाय का देशी घी पहोचाने में सफल हो पाए, उनके नेतृत्वमे सच्चाई माता भक्त मंडल द्वारा २५/२६/२७ सितम्बर २०१५ को अहमदाबाद में भव्य चिकित्सा शिबिर का आयोजन किया गया जो बहोत हि सफल रहा , राजेंद्र भाई के साथ में रहने मात्र से हमें एक अनोखी उर्जा मिलती थी और हम लगातार काम करते थे , वो एक बात हमें बार बार कहेते थे की 'ये कल युग है हम चाहे जितना भी भला करे कुछ होने वाला नहीं है मगर फिर भी हमें सेवा में लगे रहेना है ,कल युग में जो सेवा करेगा वही मुसीबतों का सामना भी करेगा , मगर हम डटे रहेंगे ,हमें सिर्फ राजीव भाई के विचारोको घर घर तक पहोचाना है बाकि ऊपर वालेकी मर्जी .....' राजेंद्र भाई ने मेरा मन स्वदेशी (संवाद )समूह को बाखूबी संचालित किया और देश के कोने कोने तक लोगो को मुफ्त चिकित्सा दी जाये उसका प्रयास किया .
                १०/१२/२०१५ को अहमदाबाद के बगोदर हाइवे पे उनका अकस्मात हुआ और वेहे और उनकी पत्नी श्री को काफी चोट आई , राजेन्द्र भाई को सिम्स हॉस्पिटल में आई सी यु में रखा गया और २२/१२/२०१५ को वेहे हम सब को छोड़ के परमात्मा के पास चले गए , उनकी इस अचानक हुई विदाय को हमारा दिल आज भी सच नहीं मान रहा , हमेशा ऐसा लगता है की अभी उनका फोन आयेगा और राजीव दीक्षित के कोई कार्यक्रम की योजना के लिए बात करेंगे .....उनकी ये विदाइ से अहमदाबाद की पूरी टीम सदमे में आ गयी है ,उन्होंने आखरीमे महेसाणा की शिबिर की पूरी योजना तैयार की थी जो ११/१२/१३ जनवरी २०१६ को होने वाली है , वेहे उसके लिए बहोत उत्साही थे ...हमें ऐसा लगता है की हमने अहमदाबाद के राजीव दीक्षित को खो दिया है ......
राजेंद्र भाई की पवित्र आत्मा हमेशा हमारा मनोबल बढाती रहे एसी हमारी प्रभु से प्रार्थना है ...वंदेमातरम  

Wednesday, 9 December 2015


राजीव दीक्षित जी की पांचवी पुण्य तिथिपर
हमने १८ रोगों के इलाज को एक पेम्फलेट में बनाके १००००० नंग बनाकर अहमदाबाद में कार्यकर्ता द्वारा वितरण करवाया गया , जिसमे निम्न बीमारियो का इलाज आयुर्वेद के अनुसार लिखा है और सम्पूर्ण भारत में जहाभी स्वदेशी चिकित्सा शिबिर लगती है वहा भी लोकल स्वदेशी संस्था द्वारा ये पेम्फलेट वितरण होता है ,
हमारा उदेश्य " रोगी स्वयं का सबसे अच्छा डॉक्टर बन सकता है "
१) सिरदर्द
२) गुर्दे की पथरी /पिताशय की पथरी
३) मोटापा
४) बवासीर /बगंदर
५) मासिक समशया / अति और अल्प रक्त स्त्राव
६) स्वेत/रक्त प्रदर
७) मधुमेह
८) अम्लपित
९) आँखों के रोग
१०) कब्ज
११) उच्च/ निम्न थाईराइड
१२) ह्रदय रोग
१३) निम्न रक्त चाप
१४) उच्च रक्त चाप
१५) घुटनों का दर्द /जोड़ो का दर्द
१६) दमा
१७) रक्त अल्पता
१८) पीलिया
सो आप अपने शहर में अपने परिवार में व समाज के लिए ये पेम्फलेट १००००-२०००० बनाकर वितरण जरुर कराये , सो आप अपना इ मेइल आईडी जरुर यहाँ कोमेंट में लिखे जिस से हम आपको मेइल कर सके , और आप स्वदेशी चिकित्सा के माध्यम से भार्तियोका स्वास्थ अच्छा करके स्वदेशी अपनानेकी राह पर ले जाकर राजीव दीक्षित जी का अधूरा सपना हम पूरा करनेकी कोशिश कर सके | ये हम सब लोगो द्वारा पांचवी पुण्य तिथि की सच्ची श्रध्धांजलि होगी .
वन्देमातरम
राजीव दीक्षित स्वदेशी संस्था अहमदाबाद

Tuesday, 8 December 2015

૨૦૧૬ માં થનાર કાર્યકાર્મો ની માહિતી

વન્દેમાતરમ ,  
   અમદાવાદ ના બધાજ રાજીવ દીક્ષિત સમર્થક ભાઈ બહેનો અને કાર્યકર્તા મિત્રોને નિવેદન છે કે જાન્યુઆરી મહિના માં થનાર કાર્યક્રમો માટે પોતાની કમર કસી લે , ૯/૧૦/૧૧- જાન્યુઆરી-૨૦૧૬ આઈ આઈ એમ અમદાવાદ માં(સાત્વિક ફૂડ ફેસ્ટીવલ માં ) સ્ટોલ અને મહેસાણા માં ૧૧/૧૨/૧૩- જાન્યુઆરી -૨૦૧૬ ની આસ પાસ સ્વસ્થ શીબીર નું આયોજન થઇ રહ્યું છે તો દરેક ભાઈ બહેનોને વિનંતી છે કે જે મિત્રો સ્વૈચ્છિક સેવા આપવા માંગતા હોય તેઓ પોતાનું નામ ૯૭૧૪૦૨૫૧૪૬ પર નોંધાવી દે , દરેક મિત્રોને નિવેદન છે કે પોતાનો યોગ્ય સહયોગ આપી આ બંને કાર્યક્રમોને સફળ બનાવવામાં મદદ રૂપ થાય .
                                                                                                     રાજીવ દીક્ષિત સ્વદેશી સંસ્થા અમદાવાદ

Saturday, 21 November 2015

अलसी का सेवन आपको बीमारियो से दूर रख सकता है

अलसी का सेवन आपको बीमारियो से दूर रख सकता है


सुरेश भट्ट : सुपर फुड अलसी में ओमेगा थ्री व सबसे अधिक फाइबर होता है। यह डब्लयू एच ओ ने इसे सुपर फुड माना है। यह रोगों के उपचार में लाभप्रद है। लेकिन इसका सेवन अलग-अलग बीमारी में अलग-अलग तरह से किया जाता है।
स्वस्थ व्यक्ति को रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच अलसी का पाउडर पानी के साथ ,सब्जी, दाल या सलाद मंे मिलाकर लेना चाहिए । अलसी के पाउडर को ज्यूस, दूध या दही में मिलाकर भी लिया जा सकता है। इसकी मात्रा 30 से 60 ग्राम प्रतिदिन तक ली जा सकती है। 100-500 ग्राम अलसी को मिक्सर में दरदरा पीस कर किसी एयर टाइट डिब्बे में भर कर रख लें। अलसी को अधिक मात्रा मंे पीस कर न रखें, यह पाउडर के रूप में खराब होने लगती है। सात दिन से ज्यादा पुराना पीसा हुआ पाउडर प्रयोग न करें। इसको एक साथ पीसने से तिलहन होने के कारण खराब हो जाता है।
खाँसी होेने पर अलसी की चाय पीएं। पानी को  उबालकर उसमें अलसी पाउडर मिलाकर चाय तैयार करें।एक चम्मच अलसी पावडर को दो कप (360 मिलीलीटर) पानी में तब तक धीमी आँच पर पकाएँ जब तक यह पानी एक कप न रह जाए। थोड़ा ठंडा होने पर शहद, गुड़ या शकर मिलाकर पीएँ। सर्दी, खाँसी, जुकाम, दमा आदि में यह चाय दिन में दो-तीन बार सेवन की जा सकती है। दमा रोगी एक चम्मच अलसी का पाउडर केा आधा गिलास पानी में 12 घंटे तक भिगो दे और उसका सुबह-शाम छानकर सेवन करे तो काफी लाभ होता है। गिलास काँच या चाँदी को होना चाहिए।
समान मात्रा में अलसी पाउडर, शहद, खोपराचूरा, मिल्क पाउडर व सूखे मेवे मिलाकर नील मधु तैयार करें।  कमजोरी में व बच्चों के स्वास्थ्य के लिए नील मधु उपयोगी है।
डायबीटिज के मरीज को आटा गुन्धते वक्त प्रति व्यक्ति 25 ग्राम अलसी काॅफी ग्राईन्डर में ताजा पीसकर आटे में मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए। अलसी मिलाकर रोटियाँ बनाकर खाई जा सकती हैं। अलसी एक जीरो-कार फूड है अर्थात् इसमें कार्बोहाइट्रेट अधिक होता है।शक्कर की मात्रा न्यूनतम है।
कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से निकला तीन चम्मच तेल, छः चम्मच पनीर में मिलाकर उसमें सूखे मेवे मिलाकर देने चाहिए। कैंसर की स्थिति मेें डाॅक्टर बुजविड के आहार-विहार की पालना श्रद्धा भाव से व पूर्णता से करनी  चाहिए। कैंसर रोगियों को ठंडी विधि से  निकले तेल की मालिश भी करनी चाहिए।
साफ बीनी हुई और पोंछी हुई अलसी  को धीमी आंच पर तिल की तरह भून लें।मुखवास की तरह इसका सेवन करें। इसमें संेधा नमक भी मिलाया जा सकता है। ज्यादा पुरानी भुनी हुई अलसी प्रयोग में न लें।
बेसन में 25 प्रतिशत मिलाकर अलसी मिलाकर व्यंजन बनाएं। बाटी बनाते वक्त भी उसमें भी अलसी पाउडर मिलाया जा सकता है। सब्जी की ग्रेवी में भी अलसी पाउडर का प्रयोग करें।
अलसी सेवन के दौरान खूब पानी पीना चाहिए। इसमें अधिक फाइबर होता है, जो खूब पानी माँगता है।

Bournvita,Horlicks, Complan,Boost जैसे हेल्थ हेल्थ टॉनिक के नाम पर धोखा

Bournvita,Horlicks, Complan,Boost जैसे हेल्थ हेल्थ टॉनिक के नाम पर धोखा


By Suresh Bhatt  :अगर आप भी अपने बच्चों को Bournvita,Horlicks, Complan,Boost जैसे हेल्थ टोनिक पिला रहे हैं तो कृपया एक बार इसे अवश्य पढ़ें lअखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान की एक रिपोर्ट के अनुसार जब Bournvita का प्रयोगशाला में परिक्षण किया गया तो पोषक तत्वों की मात्रा गुड-मूंगफली की पट्टी से भी कम पायी गयी तथा इसकी निर्माण सामग्री का आधार मूंगफली की खल को बताया गया l खल वह बचा कुचा कचरा है जो मूंगफली का तेल निकलने के बाद बचता है जिसे गांवों में जानवरों को खिलाया जाता है l
यदि आप दूध के साथ गुड-मूंगफली की एक पट्टी (गच्च्क) खाते हैं तो आपको उसमे इतना प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व मिलते हैं जितने 1 किलो Bournvita के डब्बे में नहीं मिल सकते और इस कचरे को यह विदेशी कंपनिया प्रचार के माध्यम से 250-300 प्रति किलो बेच रही हैं, जिनमें पोषक तत्वों की मात्रा नाम मात्र भी नहीं है l ऐसा ही एक दूसरा उत्पाद है Horlicks यह कोई आसमान उतरा नया उत्पाद नहीं बल्कि ज़ों और चने का सत्तू ही है जिसे अंग्रेजी नाम के साथ बेचा जा रहा है और पढ़े लिखे मूर्ख लोग 35 रुपये किलो में उपलब्ध ज़ों-चने का सत्तू नहीं खरीदते बल्कि 200-250 अंग्रेजी नाम से बिक रहा सत्तू खरीद लाते हैं सिर्फ इसलिए क्योंकि सत्तू का प्रचार नहीं होता l यह जितने भी हेल्थ टोनिक भारत में बिक रहे हैं, इन सबमें 1 केले के बराबर पोषक तत्व नहीं होते यह इस देश का दुर्भाग्य है की हर साल भारत में 2000 करोड़ रुपये के हेल्थ टोनिक बिक जाते हैं जिनमे 2 पैसे के भी पोषक तत्व नहीं होते हैं l

सूर्य नमस्कार से सम्पूर्ण शरीर को आरोग्य, शक्ति एवं ऊर्जा की प्राप्ति होती है .

सूर्य नमस्कार से सम्पूर्ण शरीर को आरोग्य, शक्ति एवं ऊर्जा की प्राप्ति होती है .

surya namaskar
सूर्य नमस्कार से सम्पूर्ण शरीर को आरोग्य, शक्ति एवं ऊर्जा की प्राप्ति होती है, इससे शरीर के सभी अंग-प्रत्यंगों में क्रियाशीलता आती है तथा समस्त आंतरिक ग्रंथियों के अन्तःस्राव (हार्मोन्स) की प्रक्रिया का नियमन होता है, यदि संभव हो तो सूर्योदय के समय करें, इसको 11 से 21 बार अपनी शक्ति के अनुसार प्रतिदिन कर सकते हैं

क्या आप हडि्डयों में खोखलापन होने कि बीमारी से परिचित हैं

क्या आप हडि्डयों में खोखलापन होने कि बीमारी से परिचित हैं


boneकुमार गिरीश : वैसे तो हडि्डयों में खोखलेपन का रोग किसी भी उम्र के स्त्री-पुरुष को हो सकता है लेकिन यह फिर भी ज्यादातर यह रोग 50 वर्ष के उम्र से ज्यादा वर्ष के लोगों में पाया जाता है। यह रोग उन स्त्रियों को भी अधिक होता है जो स्त्रियां रजोनिवृति (मासिकधर्म का आना बंद हो जाना) की अवस्था में होती है।
हडि्डयों में खोखलापन होने के लक्षण-
हडि्डयों में खोखलेपन के रोग से पीड़ित रोगी के पैरों तथा कमर में दर्द होने लगता है।रोगी व्यक्ति की कमर झुक जाती है और उसे चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है।रोगी के कूल्हे की हड्डी कमजोर हो जाती है।रोगी की मुड़ने या घूमने की शक्ति कम हो जाती है और कमर की मांसपेशियों में ऐंठन सी होने लगती है।इस रोग से पीड़ित रोगी की हड्डी जरा सा ही झटके लगने से टूट जाती है।
हडि्डयों का खोखलापन होने का कारण-
जो व्यक्ति असंतुलित भोजन का सेवन करता है उसकी हडि्डयों में खोखलापन होना शुरू हो जाता है।शरीर में कैल्शियम एवं विटामिन `डी´ की कमी हो जाने के कारण भी हडि्डयां खोखली हो जाती हैं।40 उम्र से ऊपर की स्त्रियों का जब मासिकस्राव बंद हो जाता है तो उनकी हडि्डयां खोखली हो जाती हैं।
हड्डियों का खोखला हो जाने का सबसे मुख्य कारण तेल ही है, जो की आजकल बिना चिकनाई का इस्तेमाल करते हैं, उन्हे यह रोग अवश्य होता है! इसलिए बिना चिकनाई का तेल, कैमिकल युक्त रिफाईनड बिल्कुल नहीं खाना चाहिए, इसकी जगह भारतीय परम्परा के द्वारा निकाला गया तेल (घाणी) का ही खाना चाहिए!
हडि्डयों में खोखलापन हो जाने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार-
इस रोग से पीड़ित रोगी को 1 सप्ताह तक फलों तथा सब्जियों का रस पीना चाहिए तथा भोजन में अधिक से अधिक फलों का सेवन करना चाहिए।रोगी व्यक्ति को संतुलित आहार (भोजन) का सेवन करना चाहिए! पांम आंयल और, सभी तरह के रिफाईनड तेल बन्द कर देना चाहिए ।रिफाईनड की जगह सिर्फ कच्ची घाणी का तेल ही इस्तेमाल करना चाहिए!  तिल का तेल या फिर सफेद तिलों का दूध रोगी व्यक्ति को प्रतिदिन पिलाने से कुछ ही दिनों में हडि्डयों में खोखलेपन का रोग ठीक हो जाता है।हडि्डयों में खोखलेपन से पीड़ित रोगी यदि प्रतिदिन काष्ठज फल का सेवन करता है तो उसका यह रोग ठीक हो जाता है।इस रोग से पीड़ित रोगी को तला-भुना, दूषित भोजन, चीनी, मिठाई तथा मैदा आदि नहीं खाने चाहिए।इस रोग से पीड़ित रोगी को सबसे पहले अपने पेट को साफ करने के लिए एनिमा क्रिया करनी चाहिए तथा नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। इससे कुछ ही दिनों में हडि्डयों में खोखलेपन का रोग ठीक हो जाता है।

क्या माहवारी (पीरिएड) के दौरान आपको दर्द रहता हे , तो यह उपचार अपनाये

क्या माहवारी (पीरिएड) के दौरान आपको दर्द रहता हे , तो यह उपचार अपनाये

 आयुर्वेदिक शौधाचार्या, कुमार गिरीश, जयपुर
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१ * दर्द से बचने के लिए आठ – दस बादाम रात में पानी में भिगोकर रख दें। सुबह छिलका उतारकर खाली पेट सेवन करें।
२ * मासिक के दौरान कमर में दर्द हो तो बरगद का दूध निकालकर कमर पर सुबह शाम मलें।
३ * तीन ग्राम कुटी हुई अदरक, ३ – ४ काली मिर्च का चूर्ण और एक बड़ी इलायची का चूर्णं, काली चाय, दूध व पानी एक साथ मिलाकर अच्छी तरह पकाएं। पानी आधा रह जाने पर उतार लें और कुनकुना ही पिएं। आपको माहवारी के दर्द में आराम मिलेगा।
४ * पीरिएड से संबधित कोई भी दिक्कत हो तो गरम पानी का सेवन अच्छा रहता है। माहवारी शुरू होने के दस दिन पहले से गरम पानी पीना शुरू कर दें।
अनियमित माहवारी
५* गर्म दूध के साथ ५ – ६ ग्राम अजवायन खाने से लाभ होता है।
६* दालचीनी का चूर्णं २ – ३ ग्राम पानी के साथ खाने से पीरिएड साफ होता है और शारीरिक पीड़ा भी दूर होती है।
७* खाना खाने के समय पहले निवाले में २ – ३ ग्राम राई पीसकर खाने से माहवारी की सभी परेशानियां दूर होती हैं।
८* यदि पीरिएड नियमित न हो तो दो सौ ग्राम गाजर का रस सुबह शाम पानी के साथ पीने से पीरिएड नियमित हो जाता है।
९* दस ग्राम तिल को २०० ग्राम पानी में उबालें। फिर एक चौथाई रह जाने पर उसे उतारकर, उसमें गुड़ मिलाकर पिएं। पीरिएड नियमित होगा और दर्द भी दूर हो जाएगा।
१० * गुड़ के साथ काले तिल को पानी में उबालकर दिन में २ – ३ बार पीने से मासिक धर्म खुल कर होता है।
११* तुलसी के १० – १५ बीजों को पानी मे उबालकर पीने से पीरिएड ठीक से होता है।
१२* गाजर का सूप पीने से भी माहवारी की अनियमितता दूर हो जाती है।
यदि माहवारी में अधिक रक्त स्राव हो
१३* बबूल की गोंद का चूर्णं आठ ग्राम सुबह शाम पानी के साथ पिएं। इससे अधिक मात्रा में हो रहा रक्त स्राव बंद हो जाता है।
१४ * मासिक धर्म की अधिकता में विदारीकंद के चूर्णं को घी और चीनी के साथ मिलाकर चाटने से अधिक रक्त स्राव सामान्य हो जाता है।
१५ * कुम्हड़े का साग घी में बनाकर खाने से या फिर उसका रस निकालकर चीनी मिलाकर सुबह शाम पीने से भी आराम मिलता है।
१६ * मासिक धर्म के अधिक रक्त स्राव में दूब को पीसकर उसका रस छानकर सुबह शाम पीना चाहिए। ध्यान रहे कि रस २० ग्राम से ज्यादा न पीएं।
१७ * धनिया और मिश्री बराबर मात्रा में लेकर महीन चूर्णं बनाएं और इसे १० ग्राम लेकर एक कप पानी में उबालें और ठंडा करके पीएं। रोज सुबह शाम पीने से मासिक धर्म की अधिकता दूर हो जाएगी।
१८ * महानीम की कोंपलों का रस निकालकर पीने से भी मासिक धर्म सामान्य हो जाता है।
यदि कम रक्त स्राव हो रहा हो तो…
१९* अमलतास का गूदा चार ग्राम, सोंठ ३ ग्राम, नीम की छाल ३ ग्राम लेकर कुचल लें और फिर इसे १० ग्राम गुड़ के साथ मिलाकर आठ गुना पानी में पकाएं। चौथाई भाग पानी रह जाने पर उतारकर छान लें। मासिक शुरू होते ही इसे दिन में एक बार प्रतिदिन पीने से मासिक धर्म खुल कर आता है।
२ ०* दिन में एक – दो कच्चे प्याज खाने से महिलाओं को मासिक ठीक आता है।
२१ * . २ – ३ ग्राम दालचीनी का चूर्णं पानी के साथ सेवन करने से मासिक स्राव ठीक होता है।
२२ * महुए के फलों की गुठली तोड़कर उसकी गिरी निकाल लें। फिर इसे पानी के साथ पीस कर गुंधे हुए आटे जैसा बना लें। फिर इसकी पतली गोलबत्तियां बनाकर सुखा लें और मासिक से १ – २ दिन पहले इसे अपने गुप्तांग में रखें। ऐसा करने से मासिक ठीक से आने लगेगा।
२३ * थोड़ी सी हींग पीसकर पानी में डालकर धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी एक तिहाई रह जाए तो उसे छानकर पिएं। इससे मासिक ठीक आएगा।
२४ * सर्दियों में बैंगन का साग, बाजरे की रोटी, तिल का तेल और गुड़ नियमित रूप से खाने से लाभ होता है
२६* सुपारी पाक, एक चम्मच दूध के साथ लेवे, साथ में अशोकारिषट दो चम्मच सुबह शाम भोजन के उपरांत पिये.
२७ * तिल का तेल भोजन में समलित करे.
गुड, अजवाइन का हलवा बनाकर खाने से होने वाले दर्द एवं एकएक कर आने वाली मासिक धर्म ठीक हो सकता है।
मासिक दर्द में होने वाली जांघों का दर्द हो तो इन दिनों नीम के पत्ते 5 ग्राम अदरक का रस 10 ग्राम इसमें इतना ही पानी मिलाकर पिये।
अगर मासिक धर्म न आता हो तो दो चम्मच गाजर का बीज एक चम्मच गुड एक गिलास पानी में उबालकर रोज सुबह शाम पिये। 50 ग्राम सोंठ, गुड 30 ग्राम 5 ग्राम कुटी जौ, वायविडंग, 1 गिलास पानी में उबाले काढ़ा बनाऐं। आधाआधा कप, तीनतीन घंटे बाद पियें। रूका हुआ मासिक स्त्राव शुरू हो जायेगा।
दो गिलास पानी में 4 चम्मच राई उबालकर पानी छान लें उससे कपड़ा भिगाकर पेट सेकें। इससे मासिक स्त्राव खुलकर होगा व दर्द भी कम होगा।
नारियल खाने से मासिक धर्म खुलकर होता है।
तुलसी की जड़ को छाया में सुखाकर पीसकर चुटकी पावडर पान में रखकर खाने से अनावश्यक रक्त स्त्राव बंद होता है।
लड़कियों को मासिक धर्म के दिनों में सुबह भूखे पेट नींबू तथा नारंगी का रस पियें कारण ये पोटेशियम की कमी पूरी करता है दर्द वाले स्थान पर सेंक करें।
भोजन में मांसाहार कम से कम करें।
इन दिनों में अधिक तेल खटाई, मिर्च मसाला न खायें। खाली पेट दूध न पिये ऐंठन होगी।
हल्दी की 23 गांठ सिल पर पीस लें। 1 गिलास गाय के दूध में गुड डालकर स्टील के बर्तन में 23 उबाल दें और ठंडा कर पी जायें। मासिक धर्म खुलकर आयेगा। इसे एक माह तक पियें।
गन्ने का सीरा दवा का काम करता है ।
महिलाओं के स्वभाव पर इसका असर बुरा पडता है वो चिडचिडी हो जाती है्। इसके लिये अपने आहार में उचित मात्रा में कैल्शियम लें ,तिल के तेल का अधिक से अधिक सेवन करें, आयरन युक्त भोजन लें हरी साग सब्जिया ,मौसमी फल ,यदि आप पहले से ही एनिमिक है तो पहले उसे दूर करें । सुपाच्य तथा पौष्टिक भोजन करें। अधिक मिर्च मसाला , खटाई तथा तली चीजों से परहेज करें।
पीड़ादायक माहवारी का आप घर पर बिना औषधि से भी  उपचार कर सकते हैं?
निम्नलिखित उपचार हो सकता है  (1) अपने उदर के निचले भाग (नाभि से नीचे) गर्म सेक करें। ध्यान रखें कि सेंकने वाले पैड को रखे-रखे सो मत जाएं। (2) गर्म जल से स्नान करें। (3) गर्म पेय ही पियें। (4) निचले उदर के आसपास अपनी अंगुलियों के पोरों से गोल गोल हल्की मालिश करें। (5) सैर करें या नियमित रूप से व्यायाम करें और उसमें श्रेणी को घुमाने वाले व्यायाम भी करें। (6) साबुत अनाज,तिल, फल और सब्जियों जैसे मिश्रित कार्बोहाइड्रेटस से भरपूर आहार लें पर उसमें नमक, चीनी, मदिरा एवं कैफीन की मात्रा कम हो। (7) हल्के परन्तु थोड़े-थोड़े अन्तराल पर भोजन करें। (8) ध्यान अथवा योग जैसी विश्राम परक तकनीकों का प्रयोग करें। (9) नीचे लेटने पर अपनी टांगे ऊंची करके रखें या घुटनों को मोड़कर किसी एक ओर सोयें।

Tuesday, 13 October 2015

स्वदेशी चिन्तन समारोह २८-२९-३० नवम्बर २०१५, स्वदेशी ग्राम सेवाग्राम, वर्धा

स्वदेशी चिन्तन समारोह २८-२९-३० नवम्बर २०१५, स्वदेशी ग्राम सेवाग्राम, वर्धा

आमंत्रण पत्र 


भाईयों/बहनों, 

प्रतिवर्ष की तरह इस वर्ष भी राजीव भाई की पांचवीं पुण्यतिथि का आयोजन २८-२९-३० नवम्बर को स्वदेशी ग्राम में आयोजित किया जा रहा है । स्वदेशी चिन्तन समारोह के रूप में मनाये जाने वाले इस त्रिदिवसीय आयोजन में पूरे देशभर के साथियों का सहभाग होता है । सभी साथी अपने-अपने अनुभवों एवं अपने-अपने कार्यक्रमों के बारे में बताते हैं और आगे की योजनाओं को क्रियान्वित करने की रणनीति के विषयों पर चर्चा करते हैं । राजीव भाई के विचारों को फैलाने में और उनके स्वदेशी भारत के सपनों को पूरा करने में हम किस तरह अपना योगदान दें, किस तरह संगठनबद्ध हों ; सभी मिल बैठकर तय करते हैं ।  
  २८/११/२०१५ - पिछ्ले वर्षों के क्रियाकलापों का समालोचनात्मक प्रस्तुतिकरण, गौशाला, पंचगव्य और सेन्द्रिय कृषि पर चर्चा एवं कार्यक्रम का निर्धारण । 

  २९/११/२०१५ - आगे के कार्यक्रमों की रूपरेखा, संगठनात्मक योजनाओं का प्रारम्भ, स्वास्थ्य प्रकल्प को आगे बढाने की रणनीति पर चर्चा और निर्धारण । 

  ३०/११/२०१५ - राजीव भाई की पुण्यतिथि की स्मृति में हवन, स्वदेशी चिन्तन समारोह । 

                                      प्रतिवर्ष आप सभी राजीव भाई की कर्मभूमि सेवाग्राम में आते हैं, समारोह में शामिल होते हैं  और ट्रस्ट द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों को अपना सहयोग देते हैं और हमारा मनोबल बढाते हैं । इस बार पुनः आपके आगमन की प्रतीक्षा है । 


कार्यक्रम स्थल - स्वदेशी ग्राम (सेवाग्राम-पवनार रोड), ग्राम - वरुड, पोस्ट - सेवाग्राम, वर्धा - ४४२१०२ (महाराष्ट्र) 
सम्पर्क - ८३८००२७०२१, ८३८००२७०१६/२२/२३/२४/२५
ईमेल -  swadeshidivas2015@gmail.com

सूचना - अपना रेल्वे टिकट अभी से बनवायें अन्यथा बाद में समस्या होगी । 


                                   धन्यवाद 

                                                                         ट्रस्टी मण्डल 

                                                      राजीव दीक्षित मेमोरियल स्वदेशी उत्थान संस्था 
                                                      राजीव दीक्षित मेमोरियल ट्रस्ट 

Tuesday, 6 October 2015

राजीव दीक्षित स्वदेशी संस्था अहमदाबाद फेसबुक पेज










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Thursday, 1 October 2015

SWADESHI CHIKITSA SHIBIR AHMEDABAD MP3








MP3 SUNANE KE LIYE UPAR CLIK KARE 


BY : SHRI SACHCHAY MATA BHAKT MANDAL
VENUE: OSHVAL BHAVAN ,SHAHIBAG , AHMEDABAD
DATE: 25/26/27-09-2015

Friday, 11 September 2015

स्वदेशी चिकित्सा शिबिर ,अहमदाबाद में आपको हार्दिक निमंत्रण


       श्री सचियाई माता भक्त मंडल की और से आयोजित स्वदेशी चिकित्सा शिबिर ,( राजीव दीक्षित मेमोरिअल स्वदेशी  उत्थान संस्था ,वर्धा द्वारा संचालित )का आयोजन हो रहा है , राजीव दीक्षित स्वदेशी संस्था (अहमदाबाद ) की और से आप सभी को २५/२६/२७ सप्टेम्बर को ओश्वाल भवन , शाहीबाग,अहमदाबाद में आमंत्रित किया जा रहा है , 
          संस्था द्वारा आयोजित शिबिरे सम्पूर्ण भारतीय चिकित्सा पद्धति के आधार पे निर्धारित होती है , इसमें आपके खाने पिने के बारेमे , उठने बैठने के बारेमे , कब क्या खाना चाहिए , क्या नहीं खाना चाहिए , किसके साथ क्या नहीं खाना चाहिए , क्या करे तो बीमार हि न पड़े , फिर भी अगर बीमार पड गए तो अपने रसोई घर में से हि अपनी दवाई खुद कर सके इसके लिए पूरी जानकारी दी जाती है ,
         हमारा देश १९४५ में आजाद हो गया पर हम अपनी खुद की चकित्सा पध्धति नहीं अपना पाए ये बड़ी दुःख की बात है , हम विदेशी चिकित्सा पद्धति ओ से काम चलाते रहे , नतीजा ये है की देश में अस्पतालों की संख्या ,डॉक्टरो की संख्या , दवाईओ की संख्या बहोत बढ़ गई मगर तकलीफ तब होती है जब पता चला की दर्दी ओ की संख्या और बीमारियो की संख्या  उससे कई गुना ज्यादा तेजी से बढ़ी , तब लगा की हम कही गलत दिशामे जा रहे है , देश में अगर डॉक्टर , हॉस्पिटल , और दवाइयाँ बढे तो दर्दी और बीमारियो की संख्या कम होनी चाहिए थी , मगर यहाँ तो बिलकुल उल्टा चित्र नजर आता है , तब जाके हमारा ध्यान भारतीय चिकित्सा पद्धति पे पड़ा और पता चला की हमारे पास दुनिया का सबसे बड़ा  घ्यान का भंडार आयुर्वेद होते हुए भी हम विदेशी ताकतों के ऊपर ध्यान केंद्रित करके बेठे है  ये हमारी मूर्खता नहीं तो और क्या है ?तब जाके हमने समाज को भारतीय चिकित्सा पध्धति जो अपनी है ,अपने पूर्वजो की देन है उसे बताना शुरू किया , और सबसे अछे परिणाम भी मिले , 
         आप भी एसी स्वदेशी चिकित्सा शिबिरो का आयोजन करे ,अपने समाज में , अपनी संस्थामे , कोलोनी में ,और देश और लोगो को स्वस्थ करने में योगदान दे ...आप इस शिबिर में जरुर आये और अपने समाज के प्रतिनिधियो को भी लाए ,इसका आयोजन दिखाए ,ताकि आपके मन में शिबिर के बारेमे कोई प्रश्न ना रहे , 
                                                                                           श्री राजीव दीक्षित स्वदेशी संस्था (अहमदाबाद)

Tuesday, 18 August 2015

स्नायु संस्थान की कमजोरी

स्नायु संस्थान की कमजोरी

               बनारसी आंवले का मुरब्बा एक नंग अथवा निचे लिखी विधि से बनाया गया बारह ग्राम ( बच्चों के लिए आधी मात्रा ) ले ! प्रातः खली पेट खूब चबा चबा कर खाने और उसके एक घंटे बाद तक कुछ भी न लेने से मस्तिष्क के  ज्ञान तंतुओ को बल मिलता है और स्नायु संस्थान ( Nervous system) शक्तिशाली बनता है |
                 विशेष - गर्मी के मोसम में इसका सेवन अधिक लाभ कारी है | 
                 निषेध - मधुमेह के रोगी इसे ना ले |
                 आंवला मुरब्बा बनाने की सर्वोत्तम विधि : ५०० ग्राम स्वच्छ हरे आंवले के गुदे को गुठली निकालके पिस के कांच के बर्तन में भर दे , उसमे उतना शहद मिलाए की गुदा शहद में तर हो जाये ( डूब जाये ), उस बर्तन को १० दीन तक रोज ४-५ घंटे धुप में रखे , इस प्रकार प्राकृतिक तरीकेसे मुरब्बा बन जायेगा , 
                  सेवन विधि : रोज प्रातः खाली पेट डॉ चम्मच बुराब्बा ३-४ सप्ताह तक नाश्ते के रूपमे ले विशेष कर गरमीयोमे ( मार्च, अप्रैल , और सप्टेम्बर, ओक्टोबर ) ले . 

Monday, 10 August 2015

स्मरण शक्ति की कमजोरी

स्मरण शक्ति की कमजोरी 

           सात दाने बादाम गिरी सायंकाल किसी कांच के बर्तन में जल में भिगो दे, प्रातः उनका लाल छिलका उतारकर बारीक़ पीस ले , यदि आंखे कमजोर हो तो साथ ही चार दाने काली मिर्च पीस ले ,इसे उबलते हुए २५० ग्राम दूधमे मिळाले , जब तिन उफान आजाये तो निचे उतारकर एक चम्मच देशी गाय का घी और दो चम्मच बुरा डाल कर ठंडा करे , पीने लायक गर्म रह जाने पर इसे आवश्यकता अनुसार १५ दिन से ४० दिन तक ले, यह दूध मस्तिष्क और स्मरण शक्ति की कमजोरी दूर करनेके लिए अति उत्तम होने के साथ वीर्य बलवर्धक है .
                       

भारतीय न्यायव्यवास्था (प्राचीन एवं वर्तमान)

भारतीय न्यायव्यवास्था (प्राचीन एवं वर्तमान)

राजीव भाई

विलीयम एडम के सर्वे के अनुसार १८३५-५० तक भारत में स्टील बनाने वाली १०००० फेक्ट्रीयां थी ।  भारत कि उन १०००० स्टील की फेक्ट्रीयांओं से कुल स्टील का उत्पादन ८० से ९० लाख टंन होता था सन १८३५-५० तक और आज भारत में इतने बडे - बडे स्टील पलान्ट, इतनी मशीनें , इतने विदेशी कम्पनियां और इतने सारे स्टील के फेक्ट्रीयां परन्तू कुल उत्पादन ७० से ७५ लाख टंन प्रति वर्ष था । उनमे जो स्टील बन रहा था उसकी गुणवता (कूवालीटी ) क्या थी ?  उस पर वर्षो -वर्ष जंग नहीं लगता था इतना बडीयां गुण्वत्ता का स्टील भारत में बनता रहा १८३५-५० तक । जिसका जीवांत उदाहरण हैं मेहरोली में लोहे का अशोक स्तम्भ । और आज का स्टील यदि वर्षा के पानी में छोड दें तो ३ महीने में ही लोहे पर जंग लग जायेंगा । और यह स्टील कि सबसे अधिक फेक्ट्रीयां सर्गूजा मध्य प्रदेश मे है क्यों की दूनियां का सबसे अच्छा आईरन ऑर सबसे अधिक मात्रा में भारत के सर्गूजा में पाया जाता हैं, और जो इस तकनिक को जानते है उन्हे हम आदिवासी कहते हैं उन के पास कोई डीग्री नहीं है परन्तू वह सबसे अच्छा स्टील बनाने की कला जानते हैं परन्तू हम मनते हैं कि जिसके पास कोई डीग्री नहीं हैं वो अशिक्षीत हैं ,मुर्ख हैं । जबकी उनके पास सबसे उत्तम तकनीक हैं जो आज धीरे -धीरे   लूप्त होती जा रही है हमरी गलती के कारण । अंग्रेजों ने इस कला को बर्बाद करने के लिये भी एक कानून ( ईण्डीयन फोरेस्ट एक्ट)  बनाया था जिसके अनूसार स्थानीयें आदीवासीओं को लोहे से अच्छी स्टील बनाना जानते थे उन्हे खादानो से कंचा माल नही लेने देते थे । यदि वह खदानों से कचा माल लें तो उनको ४० कोडे मारे जाते थे और उस पर भी यदि वह व्यक्ति नहीं मरे तो उसको गोली मार दी जाती थी इसना सख्त कानून बना दिया ।  तो बीना कचां माल के वह लोग भूखे मरने लगे । और उन्हीं  खदानों से अंग्रेज लोहा खोद - खोद कर ले जाते थे । और स्टील की विभिन्न वस्तूएं बनाकर हमरे बाजारो में बेचा करते थे । आज भी वोही कानून( ईण्डीयन फोरेस्ट एक्ट) चल रहा है भारत के मूल निवासी (आदिवासी) लोहा नही ले जा सकते । जबकी जापान कि काम्पनी निपन्डेरनू  (एसी ही और भी विदेशी कम्पनियां) । आज भी कचा माल कोडीयों केदाम खोद - खोद कर ले जा रही है और स्टील बनाकर हमे ही उंच्चे दामॉ पर बेच रही हैं ।  आज भी सर्गुजा मे कुछ आदिवासी लोग हैं जो उस तकनीक को जानते है परन्तू उनको आज भी उसी कानून के कारण स्टील नही लेने दिया जाता । तो हम कैसे अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारे जब हमे ही हमारा कचां माल नही लेने दिया जाता और विदेशी कम्पनियों को कोडीयों के दाम पर कचां माल खोद-खोद करे लें जा रही हैं । और क्यों कोई राजनितिक पार्टी , भारत देश के लोग इस पर विचार नही मरते । क्यों नहीं इस कानून को रद्द किया जाता हैं । कैसे में मानू के यह देश आजाद हो गया ?

भारत में बहुत अच्छा कपडा बनाने वाले बडीयां कारीगर होते था वो कपडा इतना बारीक बुनाई करते थे की कोई मशीन भी नहीं कर सकती । उस कपडे के थान के थान एक छोटी सी अंगूठी में से निकल जाते थे । पूरी दुनियां मे प्रसिध्द था भारत का कपडा १८३५-५० तक । भारत मे उस समय तक दो ही वस्तूएं सबसे जादा निर्यात होती थी कपडा और मसाले । अंग्रेजो का कपडा लंका शयर और मान्चेस्ट्र का कपडा बिक नही पाता था क्योंकी भारत का ही कपडा इतना बडीयां होता था । तो फ्री ट्रेड के नाम पर अंग्रेजों ने उन सब करीगरों के अंगूठें और हाथ कटवा दियें  । सुरत में १००००० बहतरीन कारीगरों के अंगूठें और हाथ कटवा दियें । बिहार मे एक इलाका हैं मधूबनी । मधूबनी मे २५०००० से ३००००० कारीगरों के हाथ कटवा दियें अंग्रेजों ने । इस पर अंग्रेज बडा गर्व करते है, कयोकी भारत का सबसे बडा उद्योग हैं कपडा मील्ले और कारीगर नही रहेंगे तो कपडा मील्ले नही चल सकती और जब कपडा मील्ले धराशाही होगी तो भारत की अर्थव्यवस्था भी धराशाही हो जाएगी । यह एक वार्ता हैं ब्रिटीश की संसाद मे चल रही हैं । और उसके बाद अंग्रेजों ने यह कर दिया हैं  ताकी अंग्रेजो का माल (लंका शयर और मान्चेस्ट्र का कपडा ) भारत मे बिक पायें । और अंग्रेजों ने अपने कपडों पर से सारे टेक्स हटा लियें और भारत की कपडा मील्लों पर अतीरीक्त टेक्स लगाया । सुरत की कपडा मील्लों पर १०००% अतीरिक्त टेक्स लगा दिया । 
ताकी यह उद्योग बन्द हो जायें । और लंका शयर और मान्चेस्ट्र का कपडा  बिकने लगे ।
अब कपडा बनाने के लियें कच्चा माल अंग्रेजों को चाहीयें तो भारत का कोटन ब्रिटेन मे जाने लगा । तो अंग्रेजों को बडा परीशाम करना पडता था तो अंग्रेजों ने जहां - जहा पर अच्छे कोटन (कच्चा माल) मिलता था वहां - वहां पर अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लियें रेलगाडी चलाई इस देश में । आपको लगता होगा कि अंग्रेज नही आते तो रेलगाडी नही होती इस देश में परन्तू आप यह नही जानते की अंग्रेजो ने रेल इस लियें चलाई ताकी अंग्रेजे भारत के गांव - गांव से कोटन को ईकाठा करके मुम्बाई ले जा सके और मुम्बाई के बन्द्रगाह से जहाजॐ के द्वारा कोटन को ब्रिटेन ले जा सके । और बाद में इसी रेल  का एक और प्रयोग होने लगा । अंदोलन को कुचलने के लियें जल्दी से जल्दी भारत के विभिन्न क्षेत्रो मे सेना को पहुंचाने के लिए रेल का प्रयोग भी किया जाने लगा ।  अंग्रेजों के सबसे पहले रेल जो चलाई है मुम्बाई से थाना के बीच में ट्राईल के रुप में । जब बाद मे प्रयोग सफल हो गया तो सबसे पहले अंग्रेजों ने रेल चलाई है मुम्बाई से अहमदाबाद मे बीच में जो कपास के लिये सबसे अच्छा उत्पादान करते हैं ।  अब अंग्रेजों के कपास को ईकाठा कर के मुम्बाई के बंद्र्गाह से कपास के जहाज तो भर कर भेजना शुरु कर दियें परन्तू इंग्लेंड से खाली जहाज आते थे तो खाली जहाज समून्द्र में डुब जाते थे । तो इसके लियें उन्हो ने समून्द्री जहाजों में नमक भर कर भेजना शुरु कर दिया । समून्द्री जहाजों में नमक भर कर ईंग्लेंड से आते थे और मुम्बाई के बन्द्रगाह पर नमक डाल देते थे । और यहां से कपास भर कर ले जाते थे । भारत में उस समय तक सभी लोग स्वादेशी नमक ही खाते थे । परन्तू अग्रेजों ने स्वदेशी नमक पर भी टेक्स लगा दियें और अपना नमक टेक्स फ्री बेचने लगें ताकी सभी उनका नमक खाएं । इस पर महात्मा गांधी जी ने डांडी सत्यग्रह किया । ६ अप्रेल १९३० में महात्मा गांघी जी ने एक मूठ्ठी हाथ मे लेकर कसम खाई थी के भारत में विदेशी नमक नहीं बिकने दूंगा । और आज भारत में कितने ही विदेशी नमक बिक रहे हैं पत्ता नहीं गांघी जी कि आत्मा को कितना दुःख होता होगा यह देख कर । हमारी सरकारो ने विदेशी कम्पनियों को नमक बनाने के लियें भी अनूमती दे दी । जरा आप बातायें कि नमक बनाने मे कॉन सी हाईटेक तकनीक हैं । समून्द्र का पानी एक जगह ईकाठा कर लेते हैं और धूप में  पानी भाप बन कर ऊड जाता हैं और नमक नीचे रह जाता हैं क्या भारत के लोग इतना भी नहीं कर सकते हैं । कि विदेशी कम्पनियाओं को नमक बनाने के लिये अनूमती दे दी । गांधीजी कि आत्मा कितने आंसू बाहाती होगी यह देख कर कि जिस देश मे मेने नमक सत्यग्रह किया वहां पर आजादी के बाद भी आज तक विदेशी नमक बिक रहा हैं जरा सोचीयें कि यह कितना बडा नेशनल क्राईम हैं । अंग्रेजों ने जो - जो व्यवस्थायें बनाई सभी इस देश मे आज भी चल रही हैं । तो मैं यह कैसे मानू की यह देश आजाद हो चूका हैं ।

अंग्रेजों ने १८६५ में एक कानून बना दिया । उसका नाम था " ईण्डीयां फोरेस्ट एक्द " । अंग्रेजों ने यह कानून क्यों बनाया था ? भारत मे जंगल जो होते थे । वो ग्रामसभा कि सम्पति होते थे । तो गांव के लोग उन जंगलों कि देखभाल करते थें तो गांव के लोग जो मानते थे कि वो उनकी सम्पति थी । तो जंगलो को सुरक्षीत रखने के लियें  गांव वालों ने पचासो तरीके अपनायें । और अंग्रेज जब पेड कटने आते थे तो गांव / आदिवासी लोगो का उनसे झगडा होता था तो अंग्रेजो ने एक कानून बना कर एक ही झटके मे उन सारी सम्पतियों को गांव से लेकर सरकार के पास हाथों मे दे दी । भारत मे आज भी एक जाति है राजस्थान में जिसका नाम है "विष्नोई" । में उस गांव मे गया हू और यह विष्नोई जाति के लोग जंगलो को बचाने के लियें आपनी जान भी देते थे । सन १८६५ में अंग्रेजों ने इस जाति के हजारो लोगों का कत्ल किया इस कानून कि मद्द से । पहले उन लोगो का गला कटता था उसके बाद पेड कटता था । इस प्रकार हाजारों लोगों ने पेडो को बचाने के लिए अपनी कूर्बानीयां दी । और आप को यह सुन कर अश्चरीये होगा कि वो ईण्डीयां फोरेस्ट एक्ट आज भी इस देश में वैसे का वैसा ही चल रहा हैं । जिन आदिवासीयों ने जंगल लगाएं हजारो वर्षो मे उन को ही कोई हक नहीं और जो जंगल कैसे लगाए जाते है नही पत्ता जिनको जंग्लों से कोई लगाव नहीं उनको जंगलों का मालीक बना दिया इस इण्डीयां फोरेस्ट एक्ट ने कानून के अनूसार । अंग्रेजों को जब किसी को मारना पीटना हो या बर्बाद करना हो तो अंग्रेज एक कानून बना देते थे । और कहते थे कि हम तो कानून का पालन कर रहे है अब आपकी जेब कट रही हैं तो हम क्या करें हम तो कानून का पालन कर रहें है । इसी कानून के कारण अंग्रेजों ने हजारों आदिवासीयों की हत्या की । और इसी कानून के अनूसार कोई भी भारतीयें जंगलों से पेड नहीं काट सकता चाहे तो अपने घर मे रोटी बनाने के लिए ही क्यों ना हो । और अंग्रेजो और उनके ठेके दारों को हजारों पेड एक ही दिन मे काट दे इसका लाईसेंस दे दिया । आज भी इस कानून का एक प्रोवीजान वैसे का वैसा ही है कि भारतीयें पेड नहीं काट सकते हैं  यदि कोई पेड आप के कम्पाऊंड में हैं और वो पेड आपकी दिवार गिरा सकता हैं तो भी आप उस पेड को काट नहीं सकते हैं यदि पेड काटा तो और किसी ने शिकायत कि तो आप के विरुध्द कोर्ट कैस हो गया । दुसरी और विदेशी कम्पनियों को लाइसेंस दिया जैसे ई.टी.सी. जो सिग्रेट बनाने के लियें एक वर्ष मे १४००,००,००,००,००० पेड काट देती हैं  और आपने एक पेड काट दिया तो आपको जेल हो जाएगी । 

अंग्रेजों ने १८९४ में एक कानून बनाया "लैण्ड अएकूजेशन एक्ट" मटलब जमीन हडपने का कानून । अंग्रेजों को जमीन हडपने में परेशानी होती थी कयोंकी लोग इसका विरोध करते थे तो अंग्रेजों ने एक कानून बना दिया "लैण्ड अएकूजेशन एक्ट"  इस कानून के अनूसार अंग्रेज भारतीयों से उनकी जमीने हडप कर अंग्रेजी कम्पनियों को देते थे । बडी बडी रियास्ते हडप लेते थे जैसे झांसी कि रानी कि जमीन अंग्रेजो ने हडप ली थी । गांव के गांव हडप लिया करते थे और इस काम को करने के लियें एक अंग्रेज अफ्सर डल्होजी ने सबसे अधीक कतल करें गांव के गाव खत्म कर डालटे थे । डल्होजी के कहा कि हमे जमीन हडपने के लिए की बहूत हिन्सा करनी पडती थी तो क्यों ना हम कोई कानून बना दे, तो अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था "लैण्ड अएकूजेशन एक्ट" । जो आज भी वैसे का कैसा ही चल रहा है आज भी जमीन किसानों से छीन कर विदेशी कम्पनियों को कोडीयों के दाम पर देते है  विकास के नाम पर । पहले भी हमारी जमीन हडप कर विदेशो को अंग्रेज देते थे और आज भी वही हो रहा है तो मैं कैसे यह मानू की यह देश आजाद हो गया हैं ? 

अंग्रेजों ने १८६० में एक कानून बनाया "ईण्डीयां पुलीस एक्ट "  और यह कानून अंग्रेजों ने इसलियें बनाया क्योंकी आप जानते होंगें कि १८५७ के विध्द्रोह को मंगल पांडे ने अंग्रेजी अफ्सर को गोळी मार दी थी क्योंकी वह जान गाया था कि जो कार्तूस उसे मूंह से खोलना पडता था उसमें गाय कि चर्भी इस्तमाल होती था उसका धर्म भ्रष्टकर दिया था तो उसने उस अंग्रेजी अफ्सर कि जान लेली जो उसे गोली चालने के लियें कहता था । और अंग्रेजों ने उसे फांसी पर चडा दिया । यह बात आग कि तरहा भारत मे फेल गाई और जगहा - जगहा पर भारतीयें लोगो व्दारा जो अंग्रेजों के लियें काम करते थे । विरोध होने लागा और उस विरोध को दबाने के लियें अंग्रेजों ने एक कानून बनाया "ईण्डीयां पुलीस एक्ट " इस के अनूसार पुलीस को हाक था कि वोह भारतीयों पर डंडा मार सकते हैं परन्तू भारतीयों को उसका विरोध करने का हक नही था । मतलाब यदि कोई पुलीस वाला आप को मार रहा है तो उसको आप को मारने का हक हैं परन्तू आप उसका डंडा भी नही पकड सकते नही तो आप पर केस होगा की आपने पुलीस वाले को उसकी डूटी करने से रोका रहें है। इस कानून के बाद तो भारत वासीयों पर जो पुलीस का डंडा बर्सा तो सारी कि सारी हदे ही पार कर दी । जगहा - जगहा पर भारत मे लाखों लोगो को डंडे से मार- मार कर जान से मार दिया ।  मरने वाले को राईट तो डीफेंस नही हैं पूलीस वाले को पीटने का राईट हैं इसी कानून के अधार पर १३ अप्रेल १९३० को जलियां वाला कांड हूआ था इस देश में जनरल डयर ने २० हजार लोगों जो शांति से सभा कर रहे थें पर बिना चेतावनी दियें गोलीयां चलाने का आदेश दे दिया था । और जब उस पर कोर्ट केस हुआ तो उस ने कहां कि मेरे पास गोलीयां समाप्त हो गई थी नहीं तो और आधा घंटा गोलीयां चलाता । और जज ने भी उसे बाईजत बरी किया था १८६० के उस कानून के आधार पर कि अंग्रेज पुलीस वालों को राईट टू ओफेंस हैं पर हमे राईट टू डीफेंस नहीं हैं । जो कानून अंग्रेजों ने बनायां था १८६० में वो कानून आज भी चल रहा हैं इस देश में ।

भारत में अंग्रेजों द्वारा इस प्रकार के ३४,७३५ कानून बनाए इस देश को बर्बाद करने के लियें जो आज भी चल रहें हैं ।  तो मैं कैसे यह मानू की यह देश आजाद हो गया हैं ?

सत्ता के हस्तांतरण की संधि

सत्ता के हस्तांतरण की संधि

"Transfer of Power Agreement" को जाने और दुसरो को बताएं ।

14 अगस्त 1947 कि रात को आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था इसको को अधिक से अधिक शेयर करें .....

सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) यानि भारत के आज़ादी की संधि | ये इतनी खतरनाक संधि है की अगर आप अंग्रेजों द्वारा सन 1615 से लेकर 1857 तक किये गए सभी 565 संधियों या कहें साजिस को जोड़ देंगे तो उस से भी ज्यादा खतरनाक संधि है ये | 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में | Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है | स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है | और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार है, वो चुनाव में हार जाये, दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है, तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है, आप लोगों में से बहुतों ने देखा होगा, तो जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है, उसी रजिस्टर को ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की बुक कहते है और उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है | और पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर चला जाता है | यही नाटक हुआ था 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे | लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी, और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया | कैसा स्वराज्य और काहे का स्वराज्य ? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? और हमारे लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? ये भी समझ लीजिये | अंग्रेज कहते थे क़ि हमने स्वराज्य दिया, माने अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौंपा है ताकि तुम लोग कुछ दिन इसे चला लो जब जरुरत पड़ेगी तो हम दुबारा आ जायेंगे | ये अंग्रेजो का interpretation (व्याख्या) था | और हिन्दुस्तानी लोगों की व्याख्या क्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया | और इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए और भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion States बनाये गए हैं | ये Dominion State का अर्थ हिंदी में होता है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य, ये शाब्दिक अर्थ है और भारत के सन्दर्भ में इसका असल अर्थ भी यही है | अंग्रेजी में इसका एक अर्थ है "One of the self-governing nations in the British Commonwealth" और दूसरा "Dominance or power through legal authority "| Dominion State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है | मतलब सीधा है क़ि हम (भारत और पाकिस्तान) आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | दुःख तो ये होता है की उस समय के सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे या आप कह सकते हैं क़ि पुरे होशो हवास में इस संधि को मान लिया या कहें जानबूझ कर ये सब स्वीकार कर लिया | और ये जो तथाकथित आज़ादी आयी, इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act यानि भारत के स्वतंत्रता का कानून | और ऐसे धोखाधड़ी से अगर इस देश की आजादी आई हो तो वो आजादी, आजादी है कहाँ ? और इसीलिए गाँधी जी (महात्मा गाँधी) 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे | वो नोआखाली में थे | और कोंग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थे कि बापू चलिए आप | गाँधी जी ने मना कर दिया था | क्यों ? गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं कि कोई आजादी आ रही है | और गाँधी जी ने स्पस्ट कह दिया था कि ये आजादी नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है | और गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी |

उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हु कि ये जो तथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया | ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है | मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है | और 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे नोआखाली में थे | माने भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पुरोधा जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में मौजूद नहीं था | क्यों ?

इसका अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे | (नोआखाली के दंगे तो एक बहाना था असल बात तो ये सत्ता का हस्तांतरण ही था) और 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई .... ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट लागू हुआ था पंडित नेहरु और अंग्रेजी सरकार के बीच में | अब शर्तों की बात करता हूँ , सब का जिक्र करना तो संभव नहीं है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण शर्तों की जिक्र जरूर करूंगा जिसे एक आम भारतीय जानता है और उनसे परिचित है इस संधि की शर्तों के मुताबिक हम आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | वो एक शब्द आप सब सुनते हैं न Commonwealth Nations | अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में Commonwealth Game हुए थे आप सब को याद होगा ही और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है | ये Commonwealth का मतलब होता है समान सम्पति | किसकी समान सम्पति ? ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति | आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो | Commonwealth में 71 देश है और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की जरूरत नहीं होती है क्योंकि वो अपने ही देश में जा रही है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है क्योंकि वो दुसरे देश में जा रहे हैं | मतलब इसका निकाले तो ये हुआ कि या तो ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है या फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं होती है अगर दोनों बाते सही है तो 15 अगस्त 1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झूठ है | और Commonwealth Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के रूप में है न क़ि Independent Nation के रूप में| इस देश में प्रोटोकोल है क़ि जब भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अलावा किसी को भी नहीं | लेकिन ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है, इसका क्या मतलब है? और पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था मतलब हमारे देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक नहीं है | ये है राजनितिक गुलामी, हम कैसे माने क़ि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं | एक शब्द आप सुनते होंगे High Commission ये अंग्रेजों का एक गुलाम देश दुसरे गुलाम देश के यहाँ खोलता है लेकिन इसे Embassy नहीं कहा जाता | एक मानसिक गुलामी का उदहारण भी देखिये ....... हमारे यहाँ के अख़बारों में आप देखते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स , (ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डैना (अब तो वो हैं नहीं), अब तो एक और प्रिन्स विलियम भी आ गए है |

भारत का नाम INDIA रहेगा और सारी दुनिया में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा और सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा | हमारे और आपके लिए ये भारत है लेकिन दस्तावेजों में ये इंडिया है | संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है "India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India " लेकिन दुर्भाग्य इस देश का क़ि ये भारत के जगह इंडिया हो गया | ये इसी संधि के शर्तों में से एक है | अब हम भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है | कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था अब किसका था याद नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस देश में आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा और ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस शख्स के बात में कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता, लेकिन भारत जब तक भारत था तब तक तो दुनिया में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे और पीछे ही होता जा रहा है |

भारत के संसद में वन्दे मातरम नहीं गया जायेगा अगले 50 वर्षों तक यानि 1997 तक | 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मुद्दे को संसद में उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित आजाद देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया | 50 वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है | और वन्देमातरम को ले के मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर ही हुआ था | इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के दिल को ठेस पहुचाये | आपत्तिजनक तो जन,गन,मन में है जिसमे एक शख्स को भारत भाग्यविधाता यानि भारत के हर व्यक्ति का भगवान बताया गया है या कहें भगवान से भी बढ़कर |

इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा अंग्रेजों के हवाले करना था | यही वजह रही क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को मालूम नहीं है | समय समय पर कई अफवाहें फैली लेकिन सुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और न ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई | मतलब भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी अपने ही देश के लिए बेगाना हो गया | सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी ये तो आप सब लोगों को मालूम होगा ही लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में बनाया गया था और उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से मदद ली थी जो कि अंग्रेजो के दुश्मन थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया था | और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों की वजह से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दुसरे के कट्टर दुश्मन थे | एक दुश्मन देश की मदद से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे | एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी तरफ उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था | इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के दुश्मन थे |

इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक | और अभी एक महीने पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने अदालत में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा था) |
आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक किताब की दुकान देखते होंगे "व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि की शर्तों के अनुसार है | ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था | इसने इस देश क़ि हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार किया था | इसने किसानों पर सबसे ज्यादा गोलियां चलवाई थी | 1857 की क्रांति के बाद कानपुर के नजदीक बिठुर में व्हीलर और नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को जान से मरवा दिया था चाहे वो गोदी का बच्चा हो या मरणासन्न हालत में पड़ा कोई बुड्ढा | इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी शुरू हुई थी और वही भारत में आ गयी | भारत आजाद हुआ तो ये ख़त्म होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम भी बदल देते | लेकिन वो नहीं बदला गया क्योंकि ये इस संधि में है |
इस संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेगे लेकिन इस देश में कोई भी कानून चाहे वो किसी क्षेत्र में हो नहीं बदला जायेगा | इसलिए आज भी इस देश में 34735 कानून वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था | Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act), Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वही भारत के IPC में "I" का मतलब Indian है बाकि सब के सब कंटेंट एक ही है, कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है) Indian Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income Tax Act, Indian Forest Act, Indian Agricultural Price Commission Act सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले हुए |
इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे | शहर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे | आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं | लार्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी शहर है , वास्को डी गामा नामक शहर है (हाला क़ि वो पुर्तगाली था ) रिपन रोड, कर्जन रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड, (पटना में) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों भवन और रोड हैं, सब के सब वैसे के वैसे ही हैं | आप भी अपने शहर में देखिएगा वहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे | हमारे गुजरात में एक शहर है सूरत, इस सूरत शहर में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला | अंग्रेजों को जब जहाँगीर ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो सूरत में आये थे और सूरत में उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था | ये गुलामी का पहला अध्याय आज तक सूरत शहर में खड़ा है |

हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और मजे क़ि बात ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग किस्म क़ि शिक्षा व्यवस्था रखी है | हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और उनके यहाँ ठीक उल्टा है | मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? अगर नहीं है तो मेरे अविष्कार और ज्ञान का कोई मतलब नहीं है | जबकि उनके यहाँ ऐसा बिलकुल नहीं है आप अगर कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है लेकिन कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा | नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की जरूरत नहीं होती है | हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है | ये जो 30 नंबर का पास मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था क़ि देन है, मतलब ये है क़ि आप भले ही 70 नंबर में फेल है लेकिन 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसा शिक्षा तंत्र से सिर्फ गदहे ही पैदा हो सकते हैं और यही अंग्रेज चाहते थे | आप देखते होंगे क़ि हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका नाम है Anthropology | जानते है इसमें क्या पढाया जाता है ? इसमें गुलाम लोगों क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है | और ये अंग्रेजों ने ही इस देश में शुरू किया था और आज आज़ादी
के 64 साल बाद भी ये इस देश के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि सिविल सर्विस की परीक्षा में भी ये चलता है |

इस संधि की शर्तों के हिसाब से हमारे देश में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा मतलब हमारे देश की विद्या हमारे ही देश में ख़त्म हो जाये ये साजिस की गयी | आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट करने का भरसक प्रयास किया था लेकिन ऐसा कर नहीं पाए | दुनिया में जितने भी पैथी हैं उनमे ये होता है क़ि पहले आप बीमार हों तो आपका इलाज होगा लेकिन आयुर्वेद एक ऐसी विद्या है जिसमे कहा जाता है क़ि आप बीमार ही मत पड़िए | आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ -जोर्ज वाशिंगटन जो क़ि अमेरिका का पहला राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में बीमार पड़ा और जब उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरों ने कहा क़ि इनके शरीर का खून गन्दा हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा और उसके दोनों हाथों क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और खून निकल जाने की वजह से जोर्ज वाशिंगटन मर गया | ये घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत आया था और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख के गया था | मतलब कहने का ये है क़ि हमारे देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय | और ये सब आयुर्वेद की वजह से था और उसी आयुर्वेद को आज हमारे सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है |

इस संधि के हिसाब से हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा | हमारे देश के समृद्धि और यहाँ मौजूद उच्च तकनीक की वजह ये गुरुकुल ही थे | और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था, मैं यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना चाहूँगा जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था ""I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation" |
गुरुकुल का मतलब हम लोग केवल वेद, पुराण,उपनिषद ही समझते हैं जो की हमारी मुर्खता है अगर आज की भाषा में कहूं तो ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning Institute हुआ करते थे |
इस संधि में एक और खास बात है | इसमें कहा गया है क़ि अगर हमारे देश के (भारत के) अदालत में कोई ऐसा मुक़दमा आ जाये जिसके फैसले के लिए कोई कानून न हो इस देश में या उसके फैसले को लेकर संबिधान में भी कोई जानकारी न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे मुकदमों का फैसला अंग्रेजों के न्याय पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श उसमे लागू नहीं होगा | कितनी शर्मनाक स्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का ही अनुसरण करना होगा |
भारत में आज़ादी की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ था और संधि के हिसाब से ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ के जाना था और वो चली भी गयी लेकिन इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत से लेकिन बाकि 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत सरकार उनको पूरा संरक्षण देगी | और उसी का नतीजा है क़ि ब्रुक बोंड, लिप्टन, बाटा, हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां आज़ादी के बाद इस देश में बची रह गयी और लुटती रही और आज भी वो सिलसिला जारी है |
अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहेगा भारत में जैसा क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का हिस्सा है | आप देखिये क़ि हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में हर कहीं अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है | और उन 1% लोगों क़ि हालत देखिये क़ि उन्हें मालूम ही नहीं रहता है क़ि उनको पढना क्या है और UNO में जा के भारत के जगह पुर्तगाल का भाषण पढ़ जाते हैं |
आप में से बहुत लोगों को याद होगा क़ि हमारे देश में आजादी के 50 साल बाद तक संसद में वार्षिक बजट शाम को 5:00 बजे पेश किया जाता था | जानते है क्यों ? क्योंकि जब हमारे देश में शाम के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर सके | इतनी गुलामी में रहा है ये देश | ये भी इसी संधि का हिस्सा है |
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम शुरू किया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज क़ि जरूरत थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे | इसीलिए उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड क़ि शुरुआत क़ि | वो प्रणाली आज भी लागू है इस देश में क्योंकि वो इस संधि में है | और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय शुरू किया गया और वो आज भी जारी है | जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था | आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचान पत्र है इस देश में |

अंग्रेजों के आने के पहले इस देश में गायों को काटने का कोई कत्लखाना नहीं था | मुगलों के समय तो ये कानून था क़ि कोई अगर गाय को काट दे तो उसका हाथ काट दिया जाता था | अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना शुरू किया, पहला शराबखाना शुरू किया, पहला वेश्यालय शुरू किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी वहां वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां शराबखाना खुला, वहां वहां गाय के काटने के लिए कत्लखाना खुला | ऐसे पुरे देश में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों के | अब ये सब क्यों बनाये गए थे ये आप सब आसानी से समझ सकते हैं | अंग्रेजों के जाने के बाद ये सब ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में है |
हमारे देश में जो संसदीय लोकतंत्र है वो दरअसल अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है | ये अंग्रेजो के इंग्लैंड क़ि संसदीय प्रणाली है | ये कहीं से भी न संसदीय है और न ही लोकतान्त्रिक है| लेकिन इस देश में वही सिस्टम है ।
आधिक जनकरी के लिये ओर पढें "Transfer of Power Agreement"