Monday, 31 August 2015
Saturday, 22 August 2015
Hand Oil Press, Manual oil expeller
Tuesday, 18 August 2015
स्नायु संस्थान की कमजोरी
स्नायु संस्थान की कमजोरी
बनारसी आंवले का मुरब्बा एक नंग अथवा निचे लिखी विधि से बनाया गया बारह ग्राम ( बच्चों के लिए आधी मात्रा ) ले ! प्रातः खली पेट खूब चबा चबा कर खाने और उसके एक घंटे बाद तक कुछ भी न लेने से मस्तिष्क के ज्ञान तंतुओ को बल मिलता है और स्नायु संस्थान ( Nervous system) शक्तिशाली बनता है |
विशेष - गर्मी के मोसम में इसका सेवन अधिक लाभ कारी है |
निषेध - मधुमेह के रोगी इसे ना ले |
आंवला मुरब्बा बनाने की सर्वोत्तम विधि : ५०० ग्राम स्वच्छ हरे आंवले के गुदे को गुठली निकालके पिस के कांच के बर्तन में भर दे , उसमे उतना शहद मिलाए की गुदा शहद में तर हो जाये ( डूब जाये ), उस बर्तन को १० दीन तक रोज ४-५ घंटे धुप में रखे , इस प्रकार प्राकृतिक तरीकेसे मुरब्बा बन जायेगा ,
सेवन विधि : रोज प्रातः खाली पेट डॉ चम्मच बुराब्बा ३-४ सप्ताह तक नाश्ते के रूपमे ले विशेष कर गरमीयोमे ( मार्च, अप्रैल , और सप्टेम्बर, ओक्टोबर ) ले .
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स्वदेशी चिकित्सा के उपाय
Monday, 10 August 2015
स्मरण शक्ति की कमजोरी
स्मरण शक्ति की कमजोरी
सात दाने बादाम गिरी सायंकाल किसी कांच के बर्तन में जल में भिगो दे, प्रातः उनका लाल छिलका उतारकर बारीक़ पीस ले , यदि आंखे कमजोर हो तो साथ ही चार दाने काली मिर्च पीस ले ,इसे उबलते हुए २५० ग्राम दूधमे मिळाले , जब तिन उफान आजाये तो निचे उतारकर एक चम्मच देशी गाय का घी और दो चम्मच बुरा डाल कर ठंडा करे , पीने लायक गर्म रह जाने पर इसे आवश्यकता अनुसार १५ दिन से ४० दिन तक ले, यह दूध मस्तिष्क और स्मरण शक्ति की कमजोरी दूर करनेके लिए अति उत्तम होने के साथ वीर्य बलवर्धक है .
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स्वदेशी चिकित्सा के उपाय
भारतीय न्यायव्यवास्था (प्राचीन एवं वर्तमान)
भारतीय न्यायव्यवास्था (प्राचीन एवं वर्तमान)

विलीयम एडम के सर्वे के अनुसार १८३५-५० तक भारत में स्टील बनाने वाली १०००० फेक्ट्रीयां थी । भारत कि उन १०००० स्टील की फेक्ट्रीयांओं से कुल स्टील का उत्पादन ८० से ९० लाख टंन होता था सन १८३५-५० तक और आज भारत में इतने बडे - बडे स्टील पलान्ट, इतनी मशीनें , इतने विदेशी कम्पनियां और इतने सारे स्टील के फेक्ट्रीयां परन्तू कुल उत्पादन ७० से ७५ लाख टंन प्रति वर्ष था । उनमे जो स्टील बन रहा था उसकी गुणवता (कूवालीटी ) क्या थी ? उस पर वर्षो -वर्ष जंग नहीं लगता था इतना बडीयां गुण्वत्ता का स्टील भारत में बनता रहा १८३५-५० तक । जिसका जीवांत उदाहरण हैं मेहरोली में लोहे का अशोक स्तम्भ । और आज का स्टील यदि वर्षा के पानी में छोड दें तो ३ महीने में ही लोहे पर जंग लग जायेंगा । और यह स्टील कि सबसे अधिक फेक्ट्रीयां सर्गूजा मध्य प्रदेश मे है क्यों की दूनियां का सबसे अच्छा आईरन ऑर सबसे अधिक मात्रा में भारत के सर्गूजा में पाया जाता हैं, और जो इस तकनिक को जानते है उन्हे हम आदिवासी कहते हैं उन के पास कोई डीग्री नहीं है परन्तू वह सबसे अच्छा स्टील बनाने की कला जानते हैं परन्तू हम मनते हैं कि जिसके पास कोई डीग्री नहीं हैं वो अशिक्षीत हैं ,मुर्ख हैं । जबकी उनके पास सबसे उत्तम तकनीक हैं जो आज धीरे -धीरे लूप्त होती जा रही है हमरी गलती के कारण । अंग्रेजों ने इस कला को बर्बाद करने के लिये भी एक कानून ( ईण्डीयन फोरेस्ट एक्ट) बनाया था जिसके अनूसार स्थानीयें आदीवासीओं को लोहे से अच्छी स्टील बनाना जानते थे उन्हे खादानो से कंचा माल नही लेने देते थे । यदि वह खदानों से कचा माल लें तो उनको ४० कोडे मारे जाते थे और उस पर भी यदि वह व्यक्ति नहीं मरे तो उसको गोली मार दी जाती थी इसना सख्त कानून बना दिया । तो बीना कचां माल के वह लोग भूखे मरने लगे । और उन्हीं खदानों से अंग्रेज लोहा खोद - खोद कर ले जाते थे । और स्टील की विभिन्न वस्तूएं बनाकर हमरे बाजारो में बेचा करते थे । आज भी वोही कानून( ईण्डीयन फोरेस्ट एक्ट) चल रहा है भारत के मूल निवासी (आदिवासी) लोहा नही ले जा सकते । जबकी जापान कि काम्पनी निपन्डेरनू (एसी ही और भी विदेशी कम्पनियां) । आज भी कचा माल कोडीयों केदाम खोद - खोद कर ले जा रही है और स्टील बनाकर हमे ही उंच्चे दामॉ पर बेच रही हैं । आज भी सर्गुजा मे कुछ आदिवासी लोग हैं जो उस तकनीक को जानते है परन्तू उनको आज भी उसी कानून के कारण स्टील नही लेने दिया जाता । तो हम कैसे अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारे जब हमे ही हमारा कचां माल नही लेने दिया जाता और विदेशी कम्पनियों को कोडीयों के दाम पर कचां माल खोद-खोद करे लें जा रही हैं । और क्यों कोई राजनितिक पार्टी , भारत देश के लोग इस पर विचार नही मरते । क्यों नहीं इस कानून को रद्द किया जाता हैं । कैसे में मानू के यह देश आजाद हो गया ?
भारत में बहुत अच्छा कपडा बनाने वाले बडीयां कारीगर होते था वो कपडा इतना बारीक बुनाई करते थे की कोई मशीन भी नहीं कर सकती । उस कपडे के थान के थान एक छोटी सी अंगूठी में से निकल जाते थे । पूरी दुनियां मे प्रसिध्द था भारत का कपडा १८३५-५० तक । भारत मे उस समय तक दो ही वस्तूएं सबसे जादा निर्यात होती थी कपडा और मसाले । अंग्रेजो का कपडा लंका शयर और मान्चेस्ट्र का कपडा बिक नही पाता था क्योंकी भारत का ही कपडा इतना बडीयां होता था । तो फ्री ट्रेड के नाम पर अंग्रेजों ने उन सब करीगरों के अंगूठें और हाथ कटवा दियें । सुरत में १००००० बहतरीन कारीगरों के अंगूठें और हाथ कटवा दियें । बिहार मे एक इलाका हैं मधूबनी । मधूबनी मे २५०००० से ३००००० कारीगरों के हाथ कटवा दियें अंग्रेजों ने । इस पर अंग्रेज बडा गर्व करते है, कयोकी भारत का सबसे बडा उद्योग हैं कपडा मील्ले और कारीगर नही रहेंगे तो कपडा मील्ले नही चल सकती और जब कपडा मील्ले धराशाही होगी तो भारत की अर्थव्यवस्था भी धराशाही हो जाएगी । यह एक वार्ता हैं ब्रिटीश की संसाद मे चल रही हैं । और उसके बाद अंग्रेजों ने यह कर दिया हैं ताकी अंग्रेजो का माल (लंका शयर और मान्चेस्ट्र का कपडा ) भारत मे बिक पायें । और अंग्रेजों ने अपने कपडों पर से सारे टेक्स हटा लियें और भारत की कपडा मील्लों पर अतीरीक्त टेक्स लगाया । सुरत की कपडा मील्लों पर १०००% अतीरिक्त टेक्स लगा दिया ।
ताकी यह उद्योग बन्द हो जायें । और लंका शयर और मान्चेस्ट्र का कपडा बिकने लगे ।
अब कपडा बनाने के लियें कच्चा माल अंग्रेजों को चाहीयें तो भारत का कोटन ब्रिटेन मे जाने लगा । तो अंग्रेजों को बडा परीशाम करना पडता था तो अंग्रेजों ने जहां - जहा पर अच्छे कोटन (कच्चा माल) मिलता था वहां - वहां पर अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लियें रेलगाडी चलाई इस देश में । आपको लगता होगा कि अंग्रेज नही आते तो रेलगाडी नही होती इस देश में परन्तू आप यह नही जानते की अंग्रेजो ने रेल इस लियें चलाई ताकी अंग्रेजे भारत के गांव - गांव से कोटन को ईकाठा करके मुम्बाई ले जा सके और मुम्बाई के बन्द्रगाह से जहाजॐ के द्वारा कोटन को ब्रिटेन ले जा सके । और बाद में इसी रेल का एक और प्रयोग होने लगा । अंदोलन को कुचलने के लियें जल्दी से जल्दी भारत के विभिन्न क्षेत्रो मे सेना को पहुंचाने के लिए रेल का प्रयोग भी किया जाने लगा । अंग्रेजों के सबसे पहले रेल जो चलाई है मुम्बाई से थाना के बीच में ट्राईल के रुप में । जब बाद मे प्रयोग सफल हो गया तो सबसे पहले अंग्रेजों ने रेल चलाई है मुम्बाई से अहमदाबाद मे बीच में जो कपास के लिये सबसे अच्छा उत्पादान करते हैं । अब अंग्रेजों के कपास को ईकाठा कर के मुम्बाई के बंद्र्गाह से कपास के जहाज तो भर कर भेजना शुरु कर दियें परन्तू इंग्लेंड से खाली जहाज आते थे तो खाली जहाज समून्द्र में डुब जाते थे । तो इसके लियें उन्हो ने समून्द्री जहाजों में नमक भर कर भेजना शुरु कर दिया । समून्द्री जहाजों में नमक भर कर ईंग्लेंड से आते थे और मुम्बाई के बन्द्रगाह पर नमक डाल देते थे । और यहां से कपास भर कर ले जाते थे । भारत में उस समय तक सभी लोग स्वादेशी नमक ही खाते थे । परन्तू अग्रेजों ने स्वदेशी नमक पर भी टेक्स लगा दियें और अपना नमक टेक्स फ्री बेचने लगें ताकी सभी उनका नमक खाएं । इस पर महात्मा गांधी जी ने डांडी सत्यग्रह किया । ६ अप्रेल १९३० में महात्मा गांघी जी ने एक मूठ्ठी हाथ मे लेकर कसम खाई थी के भारत में विदेशी नमक नहीं बिकने दूंगा । और आज भारत में कितने ही विदेशी नमक बिक रहे हैं पत्ता नहीं गांघी जी कि आत्मा को कितना दुःख होता होगा यह देख कर । हमारी सरकारो ने विदेशी कम्पनियों को नमक बनाने के लियें भी अनूमती दे दी । जरा आप बातायें कि नमक बनाने मे कॉन सी हाईटेक तकनीक हैं । समून्द्र का पानी एक जगह ईकाठा कर लेते हैं और धूप में पानी भाप बन कर ऊड जाता हैं और नमक नीचे रह जाता हैं क्या भारत के लोग इतना भी नहीं कर सकते हैं । कि विदेशी कम्पनियाओं को नमक बनाने के लिये अनूमती दे दी । गांधीजी कि आत्मा कितने आंसू बाहाती होगी यह देख कर कि जिस देश मे मेने नमक सत्यग्रह किया वहां पर आजादी के बाद भी आज तक विदेशी नमक बिक रहा हैं जरा सोचीयें कि यह कितना बडा नेशनल क्राईम हैं । अंग्रेजों ने जो - जो व्यवस्थायें बनाई सभी इस देश मे आज भी चल रही हैं । तो मैं यह कैसे मानू की यह देश आजाद हो चूका हैं ।
अंग्रेजों ने १८६५ में एक कानून बना दिया । उसका नाम था " ईण्डीयां फोरेस्ट एक्द " । अंग्रेजों ने यह कानून क्यों बनाया था ? भारत मे जंगल जो होते थे । वो ग्रामसभा कि सम्पति होते थे । तो गांव के लोग उन जंगलों कि देखभाल करते थें तो गांव के लोग जो मानते थे कि वो उनकी सम्पति थी । तो जंगलो को सुरक्षीत रखने के लियें गांव वालों ने पचासो तरीके अपनायें । और अंग्रेज जब पेड कटने आते थे तो गांव / आदिवासी लोगो का उनसे झगडा होता था तो अंग्रेजो ने एक कानून बना कर एक ही झटके मे उन सारी सम्पतियों को गांव से लेकर सरकार के पास हाथों मे दे दी । भारत मे आज भी एक जाति है राजस्थान में जिसका नाम है "विष्नोई" । में उस गांव मे गया हू और यह विष्नोई जाति के लोग जंगलो को बचाने के लियें आपनी जान भी देते थे । सन १८६५ में अंग्रेजों ने इस जाति के हजारो लोगों का कत्ल किया इस कानून कि मद्द से । पहले उन लोगो का गला कटता था उसके बाद पेड कटता था । इस प्रकार हाजारों लोगों ने पेडो को बचाने के लिए अपनी कूर्बानीयां दी । और आप को यह सुन कर अश्चरीये होगा कि वो ईण्डीयां फोरेस्ट एक्ट आज भी इस देश में वैसे का वैसा ही चल रहा हैं । जिन आदिवासीयों ने जंगल लगाएं हजारो वर्षो मे उन को ही कोई हक नहीं और जो जंगल कैसे लगाए जाते है नही पत्ता जिनको जंग्लों से कोई लगाव नहीं उनको जंगलों का मालीक बना दिया इस इण्डीयां फोरेस्ट एक्ट ने कानून के अनूसार । अंग्रेजों को जब किसी को मारना पीटना हो या बर्बाद करना हो तो अंग्रेज एक कानून बना देते थे । और कहते थे कि हम तो कानून का पालन कर रहे है अब आपकी जेब कट रही हैं तो हम क्या करें हम तो कानून का पालन कर रहें है । इसी कानून के कारण अंग्रेजों ने हजारों आदिवासीयों की हत्या की । और इसी कानून के अनूसार कोई भी भारतीयें जंगलों से पेड नहीं काट सकता चाहे तो अपने घर मे रोटी बनाने के लिए ही क्यों ना हो । और अंग्रेजो और उनके ठेके दारों को हजारों पेड एक ही दिन मे काट दे इसका लाईसेंस दे दिया । आज भी इस कानून का एक प्रोवीजान वैसे का वैसा ही है कि भारतीयें पेड नहीं काट सकते हैं यदि कोई पेड आप के कम्पाऊंड में हैं और वो पेड आपकी दिवार गिरा सकता हैं तो भी आप उस पेड को काट नहीं सकते हैं यदि पेड काटा तो और किसी ने शिकायत कि तो आप के विरुध्द कोर्ट कैस हो गया । दुसरी और विदेशी कम्पनियों को लाइसेंस दिया जैसे ई.टी.सी. जो सिग्रेट बनाने के लियें एक वर्ष मे १४००,००,००,००,००० पेड काट देती हैं और आपने एक पेड काट दिया तो आपको जेल हो जाएगी ।
अंग्रेजों ने १८९४ में एक कानून बनाया "लैण्ड अएकूजेशन एक्ट" मटलब जमीन हडपने का कानून । अंग्रेजों को जमीन हडपने में परेशानी होती थी कयोंकी लोग इसका विरोध करते थे तो अंग्रेजों ने एक कानून बना दिया "लैण्ड अएकूजेशन एक्ट" इस कानून के अनूसार अंग्रेज भारतीयों से उनकी जमीने हडप कर अंग्रेजी कम्पनियों को देते थे । बडी बडी रियास्ते हडप लेते थे जैसे झांसी कि रानी कि जमीन अंग्रेजो ने हडप ली थी । गांव के गांव हडप लिया करते थे और इस काम को करने के लियें एक अंग्रेज अफ्सर डल्होजी ने सबसे अधीक कतल करें गांव के गाव खत्म कर डालटे थे । डल्होजी के कहा कि हमे जमीन हडपने के लिए की बहूत हिन्सा करनी पडती थी तो क्यों ना हम कोई कानून बना दे, तो अंग्रेजों ने एक कानून बनाया था "लैण्ड अएकूजेशन एक्ट" । जो आज भी वैसे का कैसा ही चल रहा है आज भी जमीन किसानों से छीन कर विदेशी कम्पनियों को कोडीयों के दाम पर देते है विकास के नाम पर । पहले भी हमारी जमीन हडप कर विदेशो को अंग्रेज देते थे और आज भी वही हो रहा है तो मैं कैसे यह मानू की यह देश आजाद हो गया हैं ?
अंग्रेजों ने १८६० में एक कानून बनाया "ईण्डीयां पुलीस एक्ट " और यह कानून अंग्रेजों ने इसलियें बनाया क्योंकी आप जानते होंगें कि १८५७ के विध्द्रोह को मंगल पांडे ने अंग्रेजी अफ्सर को गोळी मार दी थी क्योंकी वह जान गाया था कि जो कार्तूस उसे मूंह से खोलना पडता था उसमें गाय कि चर्भी इस्तमाल होती था उसका धर्म भ्रष्टकर दिया था तो उसने उस अंग्रेजी अफ्सर कि जान लेली जो उसे गोली चालने के लियें कहता था । और अंग्रेजों ने उसे फांसी पर चडा दिया । यह बात आग कि तरहा भारत मे फेल गाई और जगहा - जगहा पर भारतीयें लोगो व्दारा जो अंग्रेजों के लियें काम करते थे । विरोध होने लागा और उस विरोध को दबाने के लियें अंग्रेजों ने एक कानून बनाया "ईण्डीयां पुलीस एक्ट " इस के अनूसार पुलीस को हाक था कि वोह भारतीयों पर डंडा मार सकते हैं परन्तू भारतीयों को उसका विरोध करने का हक नही था । मतलाब यदि कोई पुलीस वाला आप को मार रहा है तो उसको आप को मारने का हक हैं परन्तू आप उसका डंडा भी नही पकड सकते नही तो आप पर केस होगा की आपने पुलीस वाले को उसकी डूटी करने से रोका रहें है। इस कानून के बाद तो भारत वासीयों पर जो पुलीस का डंडा बर्सा तो सारी कि सारी हदे ही पार कर दी । जगहा - जगहा पर भारत मे लाखों लोगो को डंडे से मार- मार कर जान से मार दिया । मरने वाले को राईट तो डीफेंस नही हैं पूलीस वाले को पीटने का राईट हैं इसी कानून के अधार पर १३ अप्रेल १९३० को जलियां वाला कांड हूआ था इस देश में जनरल डयर ने २० हजार लोगों जो शांति से सभा कर रहे थें पर बिना चेतावनी दियें गोलीयां चलाने का आदेश दे दिया था । और जब उस पर कोर्ट केस हुआ तो उस ने कहां कि मेरे पास गोलीयां समाप्त हो गई थी नहीं तो और आधा घंटा गोलीयां चलाता । और जज ने भी उसे बाईजत बरी किया था १८६० के उस कानून के आधार पर कि अंग्रेज पुलीस वालों को राईट टू ओफेंस हैं पर हमे राईट टू डीफेंस नहीं हैं । जो कानून अंग्रेजों ने बनायां था १८६० में वो कानून आज भी चल रहा हैं इस देश में ।
भारत में अंग्रेजों द्वारा इस प्रकार के ३४,७३५ कानून बनाए इस देश को बर्बाद करने के लियें जो आज भी चल रहें हैं । तो मैं कैसे यह मानू की यह देश आजाद हो गया हैं ?
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भारतीय न्यायव्यवस्था
सत्ता के हस्तांतरण की संधि
सत्ता के हस्तांतरण की संधि
"Transfer of Power Agreement" को जाने और दुसरो को बताएं ।
14 अगस्त 1947 कि रात को आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था इसको को अधिक से अधिक शेयर करें .....
सत्ता के हस्तांतरण की संधि ( Transfer of Power Agreement ) यानि भारत के आज़ादी की संधि | ये इतनी खतरनाक संधि है की अगर आप अंग्रेजों द्वारा सन 1615 से लेकर 1857 तक किये गए सभी 565 संधियों या कहें साजिस को जोड़ देंगे तो उस से भी ज्यादा खतरनाक संधि है ये | 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई बल्कि ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट हुआ था पंडित नेहरु और लोर्ड माउन्ट बेटन के बीच में | Transfer of Power और Independence ये दो अलग चीजे है | स्वतंत्रता और सत्ता का हस्तांतरण ये दो अलग चीजे है | और सत्ता का हस्तांतरण कैसे होता है ? आप देखते होंगे क़ि एक पार्टी की सरकार है, वो चुनाव में हार जाये, दूसरी पार्टी की सरकार आती है तो दूसरी पार्टी का प्रधानमन्त्री जब शपथ ग्रहण करता है, तो वो शपथ ग्रहण करने के तुरंत बाद एक रजिस्टर पर हस्ताक्षर करता है, आप लोगों में से बहुतों ने देखा होगा, तो जिस रजिस्टर पर आने वाला प्रधानमन्त्री हस्ताक्षर करता है, उसी रजिस्टर को ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर की बुक कहते है और उस पर हस्ताक्षर के बाद पुराना प्रधानमन्त्री नए प्रधानमन्त्री को सत्ता सौंप देता है | और पुराना प्रधानमंत्री निकल कर बाहर चला जाता है | यही नाटक हुआ था 14 अगस्त 1947 की रात को 12 बजे | लार्ड माउन्ट बेटन ने अपनी सत्ता पंडित नेहरु के हाथ में सौंपी थी, और हमने कह दिया कि स्वराज्य आ गया | कैसा स्वराज्य और काहे का स्वराज्य ? अंग्रेजो के लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? और हमारे लिए स्वराज्य का मतलब क्या था ? ये भी समझ लीजिये | अंग्रेज कहते थे क़ि हमने स्वराज्य दिया, माने अंग्रेजों ने अपना राज तुमको सौंपा है ताकि तुम लोग कुछ दिन इसे चला लो जब जरुरत पड़ेगी तो हम दुबारा आ जायेंगे | ये अंग्रेजो का interpretation (व्याख्या) था | और हिन्दुस्तानी लोगों की व्याख्या क्या थी कि हमने स्वराज्य ले लिया | और इस संधि के अनुसार ही भारत के दो टुकड़े किये गए और भारत और पाकिस्तान नामक दो Dominion States बनाये गए हैं | ये Dominion State का अर्थ हिंदी में होता है एक बड़े राज्य के अधीन एक छोटा राज्य, ये शाब्दिक अर्थ है और भारत के सन्दर्भ में इसका असल अर्थ भी यही है | अंग्रेजी में इसका एक अर्थ है "One of the self-governing nations in the British Commonwealth" और दूसरा "Dominance or power through legal authority "| Dominion State और Independent Nation में जमीन आसमान का अंतर होता है | मतलब सीधा है क़ि हम (भारत और पाकिस्तान) आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | दुःख तो ये होता है की उस समय के सत्ता के लालची लोगों ने बिना सोचे समझे या आप कह सकते हैं क़ि पुरे होशो हवास में इस संधि को मान लिया या कहें जानबूझ कर ये सब स्वीकार कर लिया | और ये जो तथाकथित आज़ादी आयी, इसका कानून अंग्रेजों के संसद में बनाया गया और इसका नाम रखा गया Indian Independence Act यानि भारत के स्वतंत्रता का कानून | और ऐसे धोखाधड़ी से अगर इस देश की आजादी आई हो तो वो आजादी, आजादी है कहाँ ? और इसीलिए गाँधी जी (महात्मा गाँधी) 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में नहीं आये थे | वो नोआखाली में थे | और कोंग्रेस के बड़े नेता गाँधी जी को बुलाने के लिए गए थे कि बापू चलिए आप | गाँधी जी ने मना कर दिया था | क्यों ? गाँधी जी कहते थे कि मै मानता नहीं कि कोई आजादी आ रही है | और गाँधी जी ने स्पस्ट कह दिया था कि ये आजादी नहीं आ रही है सत्ता के हस्तांतरण का समझौता हो रहा है | और गाँधी जी ने नोआखाली से प्रेस विज्ञप्ति जारी की थी |
उस प्रेस स्टेटमेंट के पहले ही वाक्य में गाँधी जी ने ये कहा कि मै हिन्दुस्तान के उन करोडो लोगों को ये सन्देश देना चाहता हु कि ये जो तथाकथित आजादी (So Called Freedom) आ रही है ये मै नहीं लाया | ये सत्ता के लालची लोग सत्ता के हस्तांतरण के चक्कर में फंस कर लाये है | मै मानता नहीं कि इस देश में कोई आजादी आई है | और 14 अगस्त 1947 की रात को गाँधी जी दिल्ली में नहीं थे नोआखाली में थे | माने भारत की राजनीति का सबसे बड़ा पुरोधा जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी की लड़ाई की नीव रखी हो वो आदमी 14 अगस्त 1947 की रात को दिल्ली में मौजूद नहीं था | क्यों ?
इसका अर्थ है कि गाँधी जी इससे सहमत नहीं थे | (नोआखाली के दंगे तो एक बहाना था असल बात तो ये सत्ता का हस्तांतरण ही था) और 14 अगस्त 1947 की रात को जो कुछ हुआ है वो आजादी नहीं आई .... ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर का एग्रीमेंट लागू हुआ था पंडित नेहरु और अंग्रेजी सरकार के बीच में | अब शर्तों की बात करता हूँ , सब का जिक्र करना तो संभव नहीं है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण शर्तों की जिक्र जरूर करूंगा जिसे एक आम भारतीय जानता है और उनसे परिचित है इस संधि की शर्तों के मुताबिक हम आज भी अंग्रेजों के अधीन/मातहत ही हैं | वो एक शब्द आप सब सुनते हैं न Commonwealth Nations | अभी कुछ दिन पहले दिल्ली में Commonwealth Game हुए थे आप सब को याद होगा ही और उसी में बहुत बड़ा घोटाला भी हुआ है | ये Commonwealth का मतलब होता है समान सम्पति | किसकी समान सम्पति ? ब्रिटेन की रानी की समान सम्पति | आप जानते हैं ब्रिटेन की महारानी हमारे भारत की भी महारानी है और वो आज भी भारत की नागरिक है और हमारे जैसे 71 देशों की महारानी है वो | Commonwealth में 71 देश है और इन सभी 71 देशों में जाने के लिए ब्रिटेन की महारानी को वीजा की जरूरत नहीं होती है क्योंकि वो अपने ही देश में जा रही है लेकिन भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ब्रिटेन में जाने के लिए वीजा की जरूरत होती है क्योंकि वो दुसरे देश में जा रहे हैं | मतलब इसका निकाले तो ये हुआ कि या तो ब्रिटेन की महारानी भारत की नागरिक है या फिर भारत आज भी ब्रिटेन का उपनिवेश है इसलिए ब्रिटेन की रानी को पासपोर्ट और वीजा की जरूरत नहीं होती है अगर दोनों बाते सही है तो 15 अगस्त 1947 को हमारी आज़ादी की बात कही जाती है वो झूठ है | और Commonwealth Nations में हमारी एंट्री जो है वो एक Dominion State के रूप में है न क़ि Independent Nation के रूप में| इस देश में प्रोटोकोल है क़ि जब भी नए राष्ट्रपति बनेंगे तो 21 तोपों की सलामी दी जाएगी उसके अलावा किसी को भी नहीं | लेकिन ब्रिटेन की महारानी आती है तो उनको भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है, इसका क्या मतलब है? और पिछली बार ब्रिटेन की महारानी यहाँ आयी थी तो एक निमंत्रण पत्र छपा था और उस निमंत्रण पत्र में ऊपर जो नाम था वो ब्रिटेन की महारानी का था और उसके नीचे भारत के राष्ट्रपति का नाम था मतलब हमारे देश का राष्ट्रपति देश का प्रथम नागरिक नहीं है | ये है राजनितिक गुलामी, हम कैसे माने क़ि हम एक स्वतंत्र देश में रह रहे हैं | एक शब्द आप सुनते होंगे High Commission ये अंग्रेजों का एक गुलाम देश दुसरे गुलाम देश के यहाँ खोलता है लेकिन इसे Embassy नहीं कहा जाता | एक मानसिक गुलामी का उदहारण भी देखिये ....... हमारे यहाँ के अख़बारों में आप देखते होंगे क़ि कैसे शब्द प्रयोग होते हैं - (ब्रिटेन की महारानी नहीं) महारानी एलिज़ाबेथ, (ब्रिटेन के प्रिन्स चार्ल्स नहीं) प्रिन्स चार्ल्स , (ब्रिटेन की प्रिंसेस नहीं) प्रिंसेस डैना (अब तो वो हैं नहीं), अब तो एक और प्रिन्स विलियम भी आ गए है |
भारत का नाम INDIA रहेगा और सारी दुनिया में भारत का नाम इंडिया प्रचारित किया जायेगा और सारे सरकारी दस्तावेजों में इसे इंडिया के ही नाम से संबोधित किया जायेगा | हमारे और आपके लिए ये भारत है लेकिन दस्तावेजों में ये इंडिया है | संविधान के प्रस्तावना में ये लिखा गया है "India that is Bharat " जब क़ि होना ये चाहिए था "Bharat that was India " लेकिन दुर्भाग्य इस देश का क़ि ये भारत के जगह इंडिया हो गया | ये इसी संधि के शर्तों में से एक है | अब हम भारत के लोग जो इंडिया कहते हैं वो कहीं से भी भारत नहीं है | कुछ दिन पहले मैं एक लेख पढ़ रहा था अब किसका था याद नहीं आ रहा है उसमे उस व्यक्ति ने बताया था कि इंडिया का नाम बदल के भारत कर दिया जाये तो इस देश में आश्चर्यजनक बदलाव आ जायेगा और ये विश्व की बड़ी शक्ति बन जायेगा अब उस शख्स के बात में कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता, लेकिन भारत जब तक भारत था तब तक तो दुनिया में सबसे आगे था और ये जब से इंडिया हुआ है तब से पीछे, पीछे और पीछे ही होता जा रहा है |
भारत के संसद में वन्दे मातरम नहीं गया जायेगा अगले 50 वर्षों तक यानि 1997 तक | 1997 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने इस मुद्दे को संसद में उठाया तब जाकर पहली बार इस तथाकथित आजाद देश की संसद में वन्देमातरम गाया गया | 50 वर्षों तक नहीं गाया गया क्योंकि ये भी इसी संधि की शर्तों में से एक है | और वन्देमातरम को ले के मुसलमानों में जो भ्रम फैलाया गया वो अंग्रेजों के दिशानिर्देश पर ही हुआ था | इस गीत में कुछ भी ऐसा आपत्तिजनक नहीं है जो मुसलमानों के दिल को ठेस पहुचाये | आपत्तिजनक तो जन,गन,मन में है जिसमे एक शख्स को भारत भाग्यविधाता यानि भारत के हर व्यक्ति का भगवान बताया गया है या कहें भगवान से भी बढ़कर |
इस संधि की शर्तों के अनुसार सुभाष चन्द्र बोस को जिन्दा या मुर्दा अंग्रेजों के हवाले करना था | यही वजह रही क़ि सुभाष चन्द्र बोस अपने देश के लिए लापता रहे और कहाँ मर खप गए ये आज तक किसी को मालूम नहीं है | समय समय पर कई अफवाहें फैली लेकिन सुभाष चन्द्र बोस का पता नहीं लगा और न ही किसी ने उनको ढूँढने में रूचि दिखाई | मतलब भारत का एक महान स्वतंत्रता सेनानी अपने ही देश के लिए बेगाना हो गया | सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिंद फौज बनाई थी ये तो आप सब लोगों को मालूम होगा ही लेकिन महत्वपूर्ण बात ये है क़ि ये 1942 में बनाया गया था और उसी समय द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था और सुभाष चन्द्र बोस ने इस काम में जर्मन और जापानी लोगों से मदद ली थी जो कि अंग्रेजो के दुश्मन थे और इस आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया था | और जर्मनी के हिटलर और इंग्लैंड के एटली और चर्चिल के व्यक्तिगत विवादों की वजह से ये द्वितीय विश्वयुद्ध हुआ था और दोनों देश एक दुसरे के कट्टर दुश्मन थे | एक दुश्मन देश की मदद से सुभाष चन्द्र बोस ने अंग्रेजों के नाकों चने चबवा दिए थे | एक तो अंग्रेज उधर विश्वयुद्ध में लगे थे दूसरी तरफ उन्हें भारत में भी सुभाष चन्द्र बोस की वजह से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा था | इसलिए वे सुभाष चन्द्र बोस के दुश्मन थे |
इस संधि की शर्तों के अनुसार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, अशफाकुल्लाह, रामप्रसाद विस्मिल जैसे लोग आतंकवादी थे और यही हमारे syllabus में पढाया जाता था बहुत दिनों तक | और अभी एक महीने पहले तक ICSE बोर्ड के किताबों में भगत सिंह को आतंकवादी ही बताया जा रहा था, वो तो भला हो कुछ लोगों का जिन्होंने अदालत में एक केस किया और अदालत ने इसे हटाने का आदेश दिया है (ये समाचार मैंने इन्टरनेट पर ही अभी कुछ दिन पहले देखा था) |
आप भारत के सभी बड़े रेलवे स्टेशन पर एक किताब की दुकान देखते होंगे "व्हीलर बुक स्टोर" वो इसी संधि की शर्तों के अनुसार है | ये व्हीलर कौन था ? ये व्हीलर सबसे बड़ा अत्याचारी था | इसने इस देश क़ि हजारों माँ, बहन और बेटियों के साथ बलात्कार किया था | इसने किसानों पर सबसे ज्यादा गोलियां चलवाई थी | 1857 की क्रांति के बाद कानपुर के नजदीक बिठुर में व्हीलर और नील नामक दो अंग्रजों ने यहाँ के सभी 24 हजार लोगों को जान से मरवा दिया था चाहे वो गोदी का बच्चा हो या मरणासन्न हालत में पड़ा कोई बुड्ढा | इस व्हीलर के नाम से इंग्लैंड में एक एजेंसी शुरू हुई थी और वही भारत में आ गयी | भारत आजाद हुआ तो ये ख़त्म होना चाहिए था, नहीं तो कम से कम नाम भी बदल देते | लेकिन वो नहीं बदला गया क्योंकि ये इस संधि में है |
इस संधि की शर्तों के अनुसार अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेगे लेकिन इस देश में कोई भी कानून चाहे वो किसी क्षेत्र में हो नहीं बदला जायेगा | इसलिए आज भी इस देश में 34735 कानून वैसे के वैसे चल रहे हैं जैसे अंग्रेजों के समय चलता था | Indian Police Act, Indian Civil Services Act (अब इसका नाम है Indian Civil Administrative Act), Indian Penal Code (Ireland में भी IPC चलता है और Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वही भारत के IPC में "I" का मतलब Indian है बाकि सब के सब कंटेंट एक ही है, कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है) Indian Citizenship Act, Indian Advocates Act, Indian Education Act, Land Acquisition Act, Criminal Procedure Act, Indian Evidence Act, Indian Income Tax Act, Indian Forest Act, Indian Agricultural Price Commission Act सब के सब आज भी वैसे ही चल रहे हैं बिना फुल स्टॉप और कौमा बदले हुए |
इस संधि के अनुसार अंग्रेजों द्वारा बनाये गए भवन जैसे के तैसे रखे जायेंगे | शहर का नाम, सड़क का नाम सब के सब वैसे ही रखे जायेंगे | आज देश का संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट, राष्ट्रपति भवन कितने नाम गिनाऊँ सब के सब वैसे ही खड़े हैं और हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं | लार्ड डलहौजी के नाम पर डलहौजी शहर है , वास्को डी गामा नामक शहर है (हाला क़ि वो पुर्तगाली था ) रिपन रोड, कर्जन रोड, मेयो रोड, बेंटिक रोड, (पटना में) फ्रेजर रोड, बेली रोड, ऐसे हजारों भवन और रोड हैं, सब के सब वैसे के वैसे ही हैं | आप भी अपने शहर में देखिएगा वहां भी कोई न कोई भवन, सड़क उन लोगों के नाम से होंगे | हमारे गुजरात में एक शहर है सूरत, इस सूरत शहर में एक बिल्डिंग है उसका नाम है कूपर विला | अंग्रेजों को जब जहाँगीर ने व्यापार का लाइसेंस दिया था तो सबसे पहले वो सूरत में आये थे और सूरत में उन्होंने इस बिल्डिंग का निर्माण किया था | ये गुलामी का पहला अध्याय आज तक सूरत शहर में खड़ा है |
हमारे यहाँ शिक्षा व्यवस्था अंग्रेजों की है क्योंकि ये इस संधि में लिखा है और मजे क़ि बात ये है क़ि अंग्रेजों ने हमारे यहाँ एक शिक्षा व्यवस्था दी और अपने यहाँ अलग किस्म क़ि शिक्षा व्यवस्था रखी है | हमारे यहाँ शिक्षा में डिग्री का महत्व है और उनके यहाँ ठीक उल्टा है | मेरे पास ज्ञान है और मैं कोई अविष्कार करता हूँ तो भारत में पूछा जायेगा क़ि तुम्हारे पास कौन सी डिग्री है ? अगर नहीं है तो मेरे अविष्कार और ज्ञान का कोई मतलब नहीं है | जबकि उनके यहाँ ऐसा बिलकुल नहीं है आप अगर कोई अविष्कार करते हैं और आपके पास ज्ञान है लेकिन कोई डिग्री नहीं हैं तो कोई बात नहीं आपको प्रोत्साहित किया जायेगा | नोबेल पुरस्कार पाने के लिए आपको डिग्री की जरूरत नहीं होती है | हमारे शिक्षा तंत्र को अंग्रेजों ने डिग्री में बांध दिया था जो आज भी वैसे के वैसा ही चल रहा है | ये जो 30 नंबर का पास मार्क्स आप देखते हैं वो उसी शिक्षा व्यवस्था क़ि देन है, मतलब ये है क़ि आप भले ही 70 नंबर में फेल है लेकिन 30 नंबर लाये है तो पास हैं, ऐसा शिक्षा तंत्र से सिर्फ गदहे ही पैदा हो सकते हैं और यही अंग्रेज चाहते थे | आप देखते होंगे क़ि हमारे देश में एक विषय चलता है जिसका नाम है Anthropology | जानते है इसमें क्या पढाया जाता है ? इसमें गुलाम लोगों क़ि मानसिक अवस्था के बारे में पढाया जाता है | और ये अंग्रेजों ने ही इस देश में शुरू किया था और आज आज़ादी
के 64 साल बाद भी ये इस देश के विश्वविद्यालयों में पढाया जाता है और यहाँ तक क़ि सिविल सर्विस की परीक्षा में भी ये चलता है |
इस संधि की शर्तों के हिसाब से हमारे देश में आयुर्वेद को कोई सहयोग नहीं दिया जायेगा मतलब हमारे देश की विद्या हमारे ही देश में ख़त्म हो जाये ये साजिस की गयी | आयुर्वेद को अंग्रेजों ने नष्ट करने का भरसक प्रयास किया था लेकिन ऐसा कर नहीं पाए | दुनिया में जितने भी पैथी हैं उनमे ये होता है क़ि पहले आप बीमार हों तो आपका इलाज होगा लेकिन आयुर्वेद एक ऐसी विद्या है जिसमे कहा जाता है क़ि आप बीमार ही मत पड़िए | आपको मैं एक सच्ची घटना बताता हूँ -जोर्ज वाशिंगटन जो क़ि अमेरिका का पहला राष्ट्रपति था वो दिसम्बर 1799 में बीमार पड़ा और जब उसका बुखार ठीक नहीं हो रहा था तो उसके डाक्टरों ने कहा क़ि इनके शरीर का खून गन्दा हो गया है जब इसको निकाला जायेगा तो ये बुखार ठीक होगा और उसके दोनों हाथों क़ि नसें डाक्टरों ने काट दी और खून निकल जाने की वजह से जोर्ज वाशिंगटन मर गया | ये घटना 1799 की है और 1780 में एक अंग्रेज भारत आया था और यहाँ से प्लास्टिक सर्जरी सीख के गया था | मतलब कहने का ये है क़ि हमारे देश का चिकित्सा विज्ञान कितना विकसित था उस समय | और ये सब आयुर्वेद की वजह से था और उसी आयुर्वेद को आज हमारे सरकार ने हाशिये पर पंहुचा दिया है |
इस संधि के हिसाब से हमारे देश में गुरुकुल संस्कृति को कोई प्रोत्साहन नहीं दिया जायेगा | हमारे देश के समृद्धि और यहाँ मौजूद उच्च तकनीक की वजह ये गुरुकुल ही थे | और अंग्रेजों ने सबसे पहले इस देश की गुरुकुल परंपरा को ही तोडा था, मैं यहाँ लार्ड मेकॉले की एक उक्ति को यहाँ बताना चाहूँगा जो उसने 2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटिश संसद में दिया था, उसने कहा था ""I have traveled across the length and breadth of India and have not seen one person who is a beggar, who is a thief, such wealth I have seen in this country, such high moral values, people of such caliber, that I do not think we would ever conquer this country, unless we break the very backbone of this nation, which is her spiritual and cultural heritage, and, therefore, I propose that we replace her old and ancient education system, her culture, for if the Indians think that all that is foreign and English is good and greater than their own, they will lose their self esteem, their native culture and they will become what we want them, a truly dominated nation" |
गुरुकुल का मतलब हम लोग केवल वेद, पुराण,उपनिषद ही समझते हैं जो की हमारी मुर्खता है अगर आज की भाषा में कहूं तो ये गुरुकुल जो होते थे वो सब के सब Higher Learning Institute हुआ करते थे |
इस संधि में एक और खास बात है | इसमें कहा गया है क़ि अगर हमारे देश के (भारत के) अदालत में कोई ऐसा मुक़दमा आ जाये जिसके फैसले के लिए कोई कानून न हो इस देश में या उसके फैसले को लेकर संबिधान में भी कोई जानकारी न हो तो साफ़ साफ़ संधि में लिखा गया है क़ि वो सारे मुकदमों का फैसला अंग्रेजों के न्याय पद्धति के आदर्शों के आधार पर ही होगा, भारतीय न्याय पद्धति का आदर्श उसमे लागू नहीं होगा | कितनी शर्मनाक स्थिति है ये क़ि हमें अभी भी अंग्रेजों का ही अनुसरण करना होगा |
भारत में आज़ादी की लड़ाई हुई तो वो ईस्ट इंडिया कम्पनी के खिलाफ था और संधि के हिसाब से ईस्ट इंडिया कम्पनी को भारत छोड़ के जाना था और वो चली भी गयी लेकिन इस संधि में ये भी है क़ि ईस्ट इंडिया कम्पनी तो जाएगी भारत से लेकिन बाकि 126 विदेशी कंपनियां भारत में रहेंगी और भारत सरकार उनको पूरा संरक्षण देगी | और उसी का नतीजा है क़ि ब्रुक बोंड, लिप्टन, बाटा, हिंदुस्तान लीवर (अब हिंदुस्तान यूनिलीवर) जैसी 126 कंपनियां आज़ादी के बाद इस देश में बची रह गयी और लुटती रही और आज भी वो सिलसिला जारी है |
अंग्रेजी का स्थान अंग्रेजों के जाने के बाद वैसे ही रहेगा भारत में जैसा क़ि अभी (1946 में) है और ये भी इसी संधि का हिस्सा है | आप देखिये क़ि हमारे देश में, संसद में, न्यायपालिका में, कार्यालयों में हर कहीं अंग्रेजी, अंग्रेजी और अंग्रेजी है जब क़ि इस देश में 99% लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है | और उन 1% लोगों क़ि हालत देखिये क़ि उन्हें मालूम ही नहीं रहता है क़ि उनको पढना क्या है और UNO में जा के भारत के जगह पुर्तगाल का भाषण पढ़ जाते हैं |
आप में से बहुत लोगों को याद होगा क़ि हमारे देश में आजादी के 50 साल बाद तक संसद में वार्षिक बजट शाम को 5:00 बजे पेश किया जाता था | जानते है क्यों ? क्योंकि जब हमारे देश में शाम के 5:00 बजते हैं तो लन्दन में सुबह के 11:30 बजते हैं और अंग्रेज अपनी सुविधा से उनको सुन सके और उस बजट की समीक्षा कर सके | इतनी गुलामी में रहा है ये देश | ये भी इसी संधि का हिस्सा है |
1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो अंग्रेजों ने भारत में राशन कार्ड का सिस्टम शुरू किया क्योंकि द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों को अनाज क़ि जरूरत थी और वे ये अनाज भारत से चाहते थे | इसीलिए उन्होंने यहाँ जनवितरण प्रणाली और राशन कार्ड क़ि शुरुआत क़ि | वो प्रणाली आज भी लागू है इस देश में क्योंकि वो इस संधि में है | और इस राशन कार्ड को पहचान पत्र के रूप में इस्तेमाल उसी समय शुरू किया गया और वो आज भी जारी है | जिनके पास राशन कार्ड होता था उन्हें ही वोट देने का अधिकार होता था | आज भी देखिये राशन कार्ड ही मुख्य पहचान पत्र है इस देश में |
अंग्रेजों के आने के पहले इस देश में गायों को काटने का कोई कत्लखाना नहीं था | मुगलों के समय तो ये कानून था क़ि कोई अगर गाय को काट दे तो उसका हाथ काट दिया जाता था | अंग्रेज यहाँ आये तो उन्होंने पहली बार कलकत्ता में गाय काटने का कत्लखाना शुरू किया, पहला शराबखाना शुरू किया, पहला वेश्यालय शुरू किया और इस देश में जहाँ जहाँ अंग्रेजों की छावनी हुआ करती थी वहां वहां वेश्याघर बनाये गए, वहां वहां शराबखाना खुला, वहां वहां गाय के काटने के लिए कत्लखाना खुला | ऐसे पुरे देश में 355 छावनियां थी उन अंग्रेजों के | अब ये सब क्यों बनाये गए थे ये आप सब आसानी से समझ सकते हैं | अंग्रेजों के जाने के बाद ये सब ख़त्म हो जाना चाहिए था लेकिन नहीं हुआ क्योंक़ि ये भी इसी संधि में है |
हमारे देश में जो संसदीय लोकतंत्र है वो दरअसल अंग्रेजों का वेस्टमिन्स्टर सिस्टम है | ये अंग्रेजो के इंग्लैंड क़ि संसदीय प्रणाली है | ये कहीं से भी न संसदीय है और न ही लोकतान्त्रिक है| लेकिन इस देश में वही सिस्टम है ।
आधिक जनकरी के लिये ओर पढें "Transfer of Power Agreement"
લેબલ્સ:
भारतीय न्यायव्यवस्था
Sunday, 9 August 2015
ग्लोबलाईजेशन और लिब्रलाईजेशन के नाम पर भारतीय बाजार विदेशियों के
ग्लोबलाईजेशन और लिब्रलाईजेशन के नाम पर भारतीय बाजार विदेशियों के नियंत्रण में

भूमण्डलीकरण(ग्लोबलाईजेशन)और लिब्रलाईजेशन के नाम प्रतियोगिता हुई है या एकाधिकार स्थापित हुआ है भारतीय बाजार में ?
ऐसे ही एक दूसरा उदाहरण मैं आपको देना चाहता हूँ कि ढेर सारी Cosmetics की कंपनियाँ भारतीय बाजार में आई हैं अमेरिका की, उसमें से सबसे बड़ी कंपनी है Revlon अमेरिका की Cosmetics की सबसे बड़ी कंपनी है उसे हमारे बाजार में खुली छूट मिली है तो क्या प्रतियोगिता थी जब Revlon भारत में आया तो Hindustan lever भी था बाजार में जो आधा स्वदेशी आधा विदेशी मानता था अब तो उनकी Majority हो गई है बाजार में, हमारे देश में सबसे बड़ा प्रतियोगी था बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये तो वो Lakme, TATA घराने का और Lakme का बाजार का जो नियंत्रण था उसकी कल्पना हम कर नहीं सकते अब तो चला गया, एक जमाने में भारतीय बाजार में 80% अपना अधिकार रखता था।
तो बाजार में आपने विदेशियों को आने की खुली छूट दी और झूठ ये बोला सारे देश के लोगों के साथ कि हम प्रतियोगिता करवाना चाहते हैं बाजार में, और वो प्रतियोगिता करते-करते एक दिन हमने समाचार पत्र में सवेरे ही सवेरे पढ़ा कि Lakme भी चला गया विदेशी कंपनी के कब्जे में, Hindustan lever ने उसको भी Takeover कर लिया। तो फिर प्रश्न मन में यही आता है कि जब Hindustan lever बाजार में था, Revlon बाजार में था और हमारे देश का Lakme था तब प्रतियोगिता अधिक थी या अब प्रतियोगिता अधिक है जब Lakme पूरी तरह से विदेशी हो गया। ठीक यही प्रयास हुआ Asian paints के साथ, ये प्रयास लेकिन सफल नहीं हो पाया। ICI Company ने Asian paints को Takeover करने का पूरा प्रयास किया उसमें वो सफल नहीं हो पाये उसमें एक भारतीय Holder में थोड़ी भारतीयता पैदा हो गई तो उन्होंने मना कर दिया कि नहीं बेचूँगा, ऐसे यधपि कम लोग मिलते हैं इस देश में। तो प्रयास उनका असफल हो गया Otherwise इस देश की Private sector की सबसे बड़ी जो घरेलू कंपनी जो Paint बनाती है । Asian paints वो चली गई ICI के नियंत्रण में, तो प्रतियोगिता हो कहाँ रही है बाजार में तो एकाधिकार होता चला जा रहा है हम देख रहे हैं हमारी आँखों के सामने एकाधिकार हो रहा है। प्रतियोगिता देने वाला कभी टामको हुआ करता था बाजार में तो वो टामको चला गया Hindustan lever के पेट में तो प्रतियोगिता देने वाले जो 36 बड़े Empire इस देश में थे वो तो जा चुके हैं पिछले 7 वर्षो में विदेशी कंपनियों के पेट में, प्रतियोगिता हुई है या एकाधिकार स्थापित हुआ है बाजार में ?
और मैं एक सूचना के लिये आपको कह दूँ कि विदेशी कंपनियाँ बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ कभी भी प्रतियोगिता में विश्वास नहीं रखती है ये आप जान लीजिये, हमेशा Cartelization में विश्वास रखते हैं वो Cartel बनाते हैं और ये जो चक्कर हमारे देश में चल रहा है प्रतियोगिता के नाम पर नियंत्रित करने का पूरी अर्थ-व्यवस्था को, बाजार में एकाधिकार का ये चक्कर अमेरिका में भी चल रहा है अमेरिका की बड़ी-बड़ी कंपनियाँ आपस में Merge कर रही हैं। IBM और ICL दोनो के Merge होने की तैयारी चल रही है। इस समय Boeing और General Motors आपस में Merge करने को तैयार बैठे हैं, राजयोन कार्पोरेशन और जनरल इलेक्ट्रानिक्स Merge करना चाहते हैं तो सारी की सारी अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था में हम देख रहे हैं कि सिवाय Cartelization के कुछ हो नहीं रहा है।
वहाँ क्या हो रहा है जो भी कंपनी बाजार में प्रतिस्पर्धा कर सकती है या तो अपने मे मिला लो या बाजार से उसको बाहर कर दो। "Either Co-operate or Corrupt" यही Principle है । लोकतंत्र का वही Principle बाजार में है, बहुराष्ट्रीय के माध्यम से या तो भारतीय कंपनियों को Takeover कर लो या तो उनको बाजार से बाहर कर दो किसी भी तरीके से, तो प्रतियोगिता हुई कहाँ है पिछले 7 वर्ष में इस बाजार में ? और फिर आपको दूसरी बात ये कहना चाहता हूँ कि प्रतियोगिता किसके बीच हो सकती है? प्रतियोगिता शब्द की Defination है यदि उसको हम समझने का प्रयास करें तो जो 19-20 का पार्टनर हो तो उसमें प्रतियोगिता हुआ करती है लेकिन ऐसा नहीं हो सकता कि एक तरफ वेन जानसन खड़ा है दूसरी ओर एक टाँग वाला कोई नवजवान खड़ा है और कहो कि 100 मीटर स्पीड दौड़ो वहाँ प्रतियोगिता नहीं हुआ करती कभी, मैं आपको कहना ये चाहता हूँ कि एक तरफ तो दुनिया के 60-70-75 देशों में व्यापार करने वाले बहुराष्ट्रीय हैं जिनका एक-एक वर्ष का Turnover भारत सरकार के राष्ट्रीय बजट से की गई है से कई-कई गुना अधिक है और दूसरी तरफ हमारे देश केSmall scale उधोग हैं जो 50 हजार में, 10 हजार में, 1 लाख में, 1 करोड़ में, 2 करोड़ में काम करती हैं।
1 करोड़ 2 करोड़ में काम करने वाला व्यकित 500 करोड़ वाले के व्यापार करने वाले के साथ प्रतियोगिता करेगा या उसके पेट में समा जायेगा कैसे संभव है ? ये तो आप प्रतियोगिता शब्द का अपमान कर रहे हैं ये कहकर कि हमारे Small scale को उनके साथ प्रतियोगिता करना चाहिये कभी संभव नहीं हो सकता है। संभव हो सकता है हमारे देश के जो Joint सार्वजनिक क्षेत्र हैं वो कर सकते हैं प्रतियोगिता बहुराष्ट्रीय के साथ उनमें वो शकित है और हमारे देश के जो सार्वजनिक क्षेत्र बहुराष्ट्रीय के साथ प्रतियोगिता करने की शकित रखते हैं उनकी ये क्षमता है उन्हीं सार्वजनिक क्षेत्र को जानबूझकर भारतीय बाजार से बाहर करने की चाल चली जा रही है।
मैं आपको दावे के साथ कहता हूँ कि अमेरिका की एण्ड्रोन कंपनी को यदि कोई टक्कर दे सकता है तो वो BHEL दे सकता है BHEL में वो शकित है कि वो एण्ड्रोन को टक्कर दे सके और BHELवालों का ये दावा है कि हमसे आप बिजली तैयार करवाओ तो हम 1 रुपये 70 पैसे प्रति यूनिट बिजली देने को तैयार हैं, लेकिन BHEL का आप प्रपोज़ल नहीं लेंगे एण्ड्रोन का लेंगे क्योंकि वह 4.5 रुपये प्रति यूनिट बिजली देने वाला है। और आप कहोगे कि BHEL प्रतियोगिता करे एण्ड्रोन के साथ ये कैसे संभव है। छोड़ दो ना बाजार में यदि आप ये विश्वास करते हो कि प्रतियोगिता होना चाहिये बाजार में, तो आपने Tender आमंत्रित क्यों नहीं किये भारत के सार्वजनिक क्षेत्र से? क्यों आपने एण्ड्रोन के साथ सनिध होने दिया? इस देश में हो जाने देते जिसका सबसे कम बिजली बिल निकलता उसको प्रोजेक्ट दे दिया जाता वो तो हुआ नहीं इस देश में, प्रतियोगिता हो कहाँ रही है इस देश में ? प्रतियोगिता के नाम पर आपके बाजार में एकाधिकार स्थापित करने का प्रयास हो रहा है और हमको जितनी विलम्ब से समझ में आयेगा उतनी ही हानि हो चुकी होगी इस देश कि अब तक 36 बड़े Empire जा चुके हैं विदेशियों के नियंत्रण में और अगले 2-3 वर्ष यही चलता रहा तो बचे-खुचे जो हैं वो भी चले जायेंगे विदेशियों के कब्जे में ।
લેબલ્સ:
भारतीय न्यायव्यवस्था
दक्षिण कोरिया बर्बाद हुआ वार्ल्ड बैंक और ई.एम.एफ.संस्थों की शर्ते पर चल कर
दक्षिण कोरिया बर्बाद हुआ वार्ल्ड बैंक और ई.एम.एफ.संस्थों की शर्ते पर चल कर

दक्षिण कोरिया की सरकार ने ईमानदारी के साथ IMF और विश्व बैंक की शर्तो को 1991से पालन किया ।
दूसरी बात दक्षिण कोरिया सरकार से कही IMF के अधिकारियों ने कि आपके देश का जो पब्लिक सेक्टर जो है उसको भी खुला छोड़ दीजिये और आप इनका निजीकरण शुरु कर दीजिये क्योंकि पब्लिक सेक्टर को खामखाँ आप बोझे की तरह ढोते रहेंगे आप अपनी छाती पर तो ये आपके लिये नुकसान देगा। तो दक्षिण कोरिया सरकार ने वो भी कर दिया कुछ निर्यात भी उनका 1-2 वर्ष काफी गति से होने लगा। फिर चौथी बात उन्होंने कहना ये शुरु किया आपके अपने बाजार में जो घरेलू उद्योग हैं दक्षिण कोरिया की उनके ऊपर जो अपने प्रोटेक्शन दे रखे हैं उन सुरक्षा को वापस कर लीजिये ताकि दक्षिण कोरियन उद्योग अमरीकी उद्योग के साथ प्रतिस्पर्धा में आ सके और प्रतिस्पर्धा जब आयेगी दक्षिण कोरिया इंडस्ट्री में, तो अमरीकी कंपनियों से शकितशाली प्रतिस्पर्धा हो पायेगी तो गुणवत्ता में सुधार होगी इत्यादि-इत्यादि, उन्होंने वो भी कर दिया। फिर उन्होंने ये कहा कि आप अपने फाईनेंशियल मार्केट को खोल दीजिये तो दक्षिण कोरिया ने सिओल का जो स्टॉक एक्सचेंज है उसे पूरी तरह खोल कर अमरीकी लोगों के हाथ में दे दिया कि ले लीजिये इतना खोल दिया अपने बाजार में।
फिर उन्होंने इसके बाद एक और बात कही कि दक्षिण कोरिया में बहुत पहले से घरेलू उधोग को प्रोटेक्ट करने के लिये एक Anti dumping law चला करता था तो दक्षिण कोरिया सरकार को कहा IMF के अधिकारियों ने कि Anti dumping law भी वापस कर लीजिये, तो दक्षिण कोरिया सरकार ने वो भी कर लिया और उसके बाद उन्होंने कहा कि अब ऐसा कीजिये अपने देश की अर्थ-व्यवस्था को अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था के साथ पूरी तरह जोड़ने के लिये आप अमेरिका के साथ पूरी तरह घुल-मिलकर अब ग्लोबलाईज हो जाइये माने हमारे साथ शामिल हो जाइये, विश्व बाजार में उसके लिये हम जैसे-जैसे कहें वैसे-वैसे चलते जाइये।
भारतीय संसद में दक्षिण कोरिया को एशियन टाईगर कहाँ गया है
बेचारी दक्षिण कोरिया की सरकार उस मार्ग पर भी चलने लगी और मैं आपको इसी समय एक दूसरी बात कहना चाहता हूँ कि जिस समय ये सब कुछ दक्षिण कोरिया में हो रहा था उसी समय हमारे देश के संसद में हमारे पूर्व वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने बहुत लंबा भाषण दिया है डेढ़ घण्टे का, वो भाषण की कॉपी मेरे पास है वो संसद की Proceeding में छपा हुआ भाषण है, भारतीय संसद को संबोधित कर रहे हैं कि हमको रिफार्म से डरने की कोई आवश्यकता नहीं है और हमारे देश में कुछ लोग हैं वो नाम तो नहीं लूँगा उसमें शायद हमारे जैसे लोग शामिल होंगे तो वो कह रहे हैं कि हमारे देश में कुछ लोग हैं जो भूमण्डलीकरण (ग्लोबलाईजेशन) के बारे में गलत प्रचार कर रहे हैं हमारे देश में, भूमण्डलीकरण से तो बहुत लाभ होने जा रहा है इस देश में, और ये भूमण्डलीकरण (ग्लोबलाईजेशन) यदि दो-तीन वर्ष हमारे देश में चालू रहा तो हम बहुत प्रगति कर लेंगे जो प्रगति शायद पिछले 40 वर्षो में नहीं हो पाई अगले 5 वर्षो में हम करने जा रहे हैं और उन्होंने अपने भाषण में नाम लेकर दक्षिण कोरिया का जिक्र किया और वो करीब 20 मिनट दक्षिण कोरिया की अर्थ-व्यवस्था पर वो बोले हैं। मनमोहन सिंह तो दक्षिण कोरिया की अर्थ-व्यवस्था पर बोलते हुये वो कह रहे हैं कि देखो दक्षिण कोरिया भी पूरी तरह से खुल गया है पूरी तरह से भूमण्डलीकरण हो गया है और वहाँ पर अब घरेलू उद्योग का प्रोटेक्शन भी समाप्त कर दिया गया है वगैरह-वगैरह।
उनका फाईनेंशियल मार्केट खुल गया है उनके घरेलू बाजार में भी विदेशी कंपनियों को खुली छूट मिल गई है और अंत में बोलते-बोलते क्या कह रहे हैं वो, अब तो दक्षिण कोरिया 'एशियन टाईगर' हो गया है ये जो उन्होंने कह दिया भारतीय संसद में कि दक्षिण कोरिया एशियन टाईगर हो गया है तो हमारे देश के अंग्रेजी समाचार पत्रों ने इसे लपक लिया और भारत के सारे बड़े अंग्रेजी समाचार पत्रों नें उन्हीं समाचार में कुछ थे जिनमें ये छपना शुरु हो गया कि दक्षिण कोरिया तो एशियन टाईगर, जब भी दक्षिण कोरिया के बारे में कोई बात आये तो दक्षिण कोरिया का विशेषण हमेशा एशियन टाईगर । तो एशियन टाईगर वो क्यों है ? क्योंकि जो कुछ भी IMF ने कहा विश्व बैंक ने कहा अमेरिका की सरकार की ओर से जो भी बातें उनके यहाँ आई वो सब के सब उन्होंने लागू कर दी हैं।
दक्षिण कोरिया की अर्थ-व्यवस्था 7 वर्ष में भूमण्डलीकरण परिणाम क्या निकले ?
तो दक्षिण कोरिया बेचारा चलता गया चलता गया चलता गया 7 वर्ष बीत गये, दक्षिण कोरिया को एक दिन लगा कि जो कुछ हमने 7 वर्ष पहले चालू किया था उसके परिणाम तो दिखते नहीं कभी भी और उल्टी स्थिति अवश्य दिखाई दे रही है, दक्षिण कोरिया में क्या उल्टी स्थिति दिखाई दे रही है ? कि पिछले वर्ष नवम्बर के महीने में दक्षिण कोरिया की संसद में वहाँ के वित्त मंत्री ने भाषण देते हुये कहा कि हमको ये उम्मीद थी कि 7 वर्षों में भूमण्डलीकरण के सारे परिणाम हमारे पास आ जायेंगे लेकिन 7 वर्ष तक प्रतीक्षा करने के पश्चात परिणाम आना तो दूर किसी उल्टी दिशा में जा रहे हैं ऐसा अनुभव हो रहा है। ये नवम्बर प्रथम सप्ताह में भाषण दे रहे हैं वित्त मंत्री, फिर एक दिन दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति 'किन इल सुंग का भाषण हुआ संसद में तो वहाँ के राष्ट्रपति ने कहना शुरु कर दिया कि हमको अब ग्लोबलाईजेशन और लिब्रलाईजेशन पर एक श्वेत पत्र तैयार करना चाहिये और दक्षिण कोरिया की संसद में उसको पेश करना चाहिये ताकि पता तो चले कि पिछले 7 वर्षो में लाभ कितना हुआ है हानि कितनी हुई है और अभी ये बात चल ही रही थी हम जो है श्वेत पत्र तैयार करेंगे और संसद में पेश करेंगे कि तीसरे कि चौथे दिन समाचार पत्र में समाचार आया कि सिओल का पूरा का पूरा स्टॉक एक्सचेंज का मार्केट धराशायी हो गया कोलेप्स हो गया और जिन दक्षिण कोरियन शेयर के दाम सामान्य रूप से कभी गिरे नहीं, धरती पर औंधे मुँह पड़े हैं ये अचानक से समाचार पत्र में यह समाचार आई और उसी समाचार के एक सप्ताह के अंदर दक्षिण कोरियन राष्ट्रपति 'किन इल सुंग का एक दूसरा वक्तव्य आ गया जिसमें उन्होंने कह दिया कि हम तो पूरी तरह से बर्बाद हो गये और दोनो हाथ उठाकर उन्होंने सरेण्डर कर दिया ? उसी समय वर्ल्ड इकोनामिक फोरम की एक बैठक चल रही थी तो वर्ल्ड इकोनामिक फोरम में दक्षिण कोरिया का एक प्रतिवेदन भेजा गया प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की ओर से दक्षिण कोरिया के एक मंत्री ने उसको पढ़ा और वर्ल्ड इकोनामिक फोरम में दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का प्रतिवेदन जो एक मंत्री द्वारा पढ़ा गया उसके जो शब्द थे वो क्या कि हम पूरी तरह से डूब गये हैं ये ग्लोबलाईजेशन और लिब्रलाईजेशन ने हमको कहीं का नहीं छोड़ा और अब हम दुनिया के लोगों से और दुनिया के तमाम वित्तीय संस्थानों से अपील करना चाहते हैं कि वो हमारे ऊपर जितना ऋण है उसको क्षमा कर दें क्योंकि हम उस ऋण को चुकाने की भी सिथति में नहीं है और वो मैं भूलता नहीं उस राष्ट्रपति का जो शब्द है वो ये कि हम पूरी तरह से दिवालिया (Bankrupt) हो गये हैं और उसके बाद एक दूसरी चिठ्ठी गई है उसकी, और उस दूसरी चिठ्ठी में IMF और विश्व बैंक के अधिकारियों से कहा कि हमने तो आपके कहे हुये दिशा निर्देशों का ही पालन किया पूरी तरह से, पूरी ईमानदारी के साथ ग्लोबलाईजेशन को लागू किया अपने देश में, लेकिन परिणाम ये है कि हम दिवालिया हो चुके हैं अब हम आपका एक भी पैसे का ऋण वापस नहीं चुका सकते लिहाजा IMF हमारे सारे के सारे ऋण को क्षमा कर दे या फिर हमको नया ऋण दिया जाये कि हम पुराने कर्जे का ब्याज चुका सकें और IMF ने उनकी इस बात को स्वीकार करते हुये कह दिया कि हम आपको ऋण देने को तैयार हैं तो कितना ऋण चाहिये तो दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ने कहा 60 बिलियन डालरतो IMF ने कहा बिल्कुल ठीक हम आपको 60 बिलियन डालर का लोन दे देंगे तो हमारी छोटी सी हमारी अंतिम शर्त है कि आप दक्षिण कोरिया की देश की सारी की सारी राष्ट्रीय सम्पति (National Assests) हमारे पास गिरवी रख दीजिये। अब दक्षिण कोरिया के सरकार की स्थिति ये है वो जो होती है ना साँप-छुछुन्दर वाली वो ये है मरता क्या ना करता, तो देख लिया कि डूबने वाले हैं मर गये तो क्या ना करें तो उस पर भी हस्ताक्षर कर दिया और आज उनकी स्थिति ये है कि दक्षिण कोरिया की जो राष्ट्रीय सम्पति (National Assests) हैं राष्ट्रीय संपत्ति हैं वो गिरवी रखे जा चुके हैं और दक्षिण कोरिया में इतना जबरजस्त प्रतियोगिता हुआ है पिछले 7 वर्षो में कि दक्षिण कोरिया के सारे के सारे सार्वजनिक क्षेत्र के कारखाने अमरीकी कंपनियों के कंट्रोल में चले गये हैं। प्रतियोगिता के नाम पर वहाँ पर सिवाय एकाधिकार (मोनोपाली) के कुछ हुआ नहीं है।
दक्षिण कोरिया की कंपनीयों का क्या हाल हुआ ?
एक उदाहरण से समझिये कि आज से 7-8 वर्ष पहले तक दक्षिण कोरिया की कार बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी जिसका नाम है ^Haundai Motors* उसके ऊपर वहाँ के लोगों को भी गर्व था वहाँ के सरकार को भी गर्व था तो Haundai Motors पूरी तरह से अब अमेरिकी कंट्रोल में है इस समय, और Haundai Motors पर पूरी तरह से अमेरिकन कंपनी का कंट्रोल स्थापित हुआ है, तो अमेरिकी कंपनी जनरल मोटर्स उसे टेक ओवर करने के बाद सबसे पहला काम जो किया वो ये कि हुण्डाई मोटर में जितने भी काम करने वाले कर्मचारी हैं उनको निकाल दिया और सड़क पर खड़ा कर दिया, दक्षिण कोरिया में इस समय करीब-करीब 70 लाख कर्मचारी अब बेरोजगार हो गये हैं। ये Haundai Motors तो उसका एक उदाहरण है ऐसी 100 से अधिक कंपनियाँ दक्षिण कोरिया की अमेरिका के कंट्रोल में जा चुकी हैं। तो ये हुआ 7 वर्ष के ग्लोबलाईजेशन में उनका व्यापार घाटा इतना अधिक बढ़ गया है कि मुद्रा के अवमूल्यन का जो काम शुरु किया था उसके परिणाम बहुत भयंकर निकले हैं। अंत में परिणाम ये निकला है कि उनके राष्ट्रपति ने ये कह दिया है कि ये ग्लोबलाईजेशन नहीं हुआ है Economic recolonization हुआ है
भारत भी उसी रास्ते पर क्यों चल रहा है ?
दक्षिण कोरिया की मेरे मन में पीड़ा क्या है, मेरे मन में पीड़ा ये है कि मेरे संसद में दक्षिण कोरिया के बारे में 'एशियन टाईगर कहा गया था जिस दक्षिण कोरिया के बारे में पिछले 7 वर्ष से पानी पी-पीकर कसीदे पढ़े जा रहे थे दक्षिण कोरिया के बारे में, आज दक्षिण कोरिया जब धराशायी हो गया है तो ना तो डॉ. मनमोहन सिंह का कोई वक्तव्य आया है ना पी.चिदम्बरम का कोई वक्तव्य आया है, क्यों ? इनको डर लग रहा है कि दक्षिण कोरिया जिस मार्ग पर डूबा है यदि हमने कुछ कहना शुरु किया तो इस देश में हमारी भी पोल-पट्टी खुल जायेगी क्योंकि हमने भी रास्ता तो वही पकड़ा है जो दक्षिण कोरियन सरकार ने पकड़ा था 1991 में, और मैं प्रतीक्षा कर रहा हूँ दक्षिण कोरिया जब धराशायी हुआ तो उसके बाद हर दिन मैने समाचार पत्र पढ़ा कि देखें भारत के वित्त मंत्री क्या कहते हैं देखें भारत के पूर्व वित्त मंत्री क्या कहते हैं देखें भारत के वो तमाम अर्थशास्त्री क्या कहते हैं जिन्होंने भारत में ढोल पीट-पीटकर ग्लोबलाईजेशन का समर्थन किया था और देखें भारत के वो बड़े संस्थान क्या कहते हैं दक्षिण कोरिया के बारे में, आज तक किसी ने मुँह नहीं खोला है। 'Assocham' में मैं गया मैने पूछा क्यों नहीं मुँह खोलते हो? कहने लगे राजीव भाई किस मुँह से बोलें, Ficci के लोगों से कहा कि आप क्यों नहीं बोलते हो? तो बोले किस मुँह से बोलें। हम ही तो ये ढोल पीट-पीट कर कह रहे थे कि ग्लोबलाईजेशन भारत में स्वर्ग लायेगा, अब हम कैसे कहें इस बात को? अब मैं दक्षिण कोरिया के वित्त मंत्री के एक वक्तव्य को मैं कोट करना चाहता हूँ उनका ये कहना है कि पिछले 7 वर्ष में जो बर्बादी हो गई है हमारे देश में अर्थ-व्यवस्था की, इस बर्बादी को दूर करें और अपने को फिर से खड़ा करें या प्रयास करें तो हमको कम से कम 20 वर्ष लग जायेंगे।
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भारतीय न्यायव्यवस्था
दूसरा उदाहरण इण्डोनेशिया किस प्रकार बर्बाद हुआ वार्ल्ड बैंक और आई.एम.एफ जेसी संस्थाओं से
दूसरा उदाहरण इण्डोनेशिया किस प्रकार बर्बाद हुआ वार्ल्ड बैंक और आई.एम.एफ जेसी संस्थाओं से

इण्डोनेशिया में स्थिर्ता है और पिछले 35 वर्ष से एक ही राष्ट्रपति बनता चला आ रहा है, तो क्यों डूबा इण्डोनेशिया ?
ऐसे ही मैं दूसरा उदाहरण आपसे शेयर करना चाहता हूँ इण्डोनेशिया का, इण्डोनेशिया वो देश है जहाँ स्थायी सरकार है। पिछले 40-45 वर्षो से बहुत लोगों को बहुत गलतफहमी है इस देश में कि हमारे यहाँ चूँकि राजनीतिक अस्थिर्ता अधिक है इसलिये इस देश में समस्यायें अधिक हैं। मैं इस गलतफहमी को दूर करना चाहता हूँ। इण्डोनेशिया में पिछले 45 वर्ष से भयंकर स्थिर्ता है और पिछले 35 वर्ष से एक ही राष्ट्रपति बनता चला आ रहा है 'सुकर्णो ' 7 बार वो राष्ट्रपति बन चुका है और 5 वर्ष का एक कार्यकाल होता है और 35 वर्ष से वो राष्ट्रपति है अभी 8 वीं बार फिर चुन लिया गया है अभी हफ्ते भर पहले । तो दक्षिण कोरिया के बारे में तो हम कह सकते हैं कि वहाँ अस्थिर्ता थी सरकार बदलती रही है ये बात सही है। पिछले 7 वर्ष में दक्षिण कोरिया में 4-5 सरकार बदली लेकिन इण्डोनेशिया में तो पिछले 35 वर्ष से एक ही व्यकित राष्ट्रपति बनता रहा है और उसी की सरकार पिछले 35 वर्ष से चल रही है और 8 वीं बार वो फिर राष्ट्रपति बन गया है। तो भयंकर स्थिर्ता थी तो क्यों डूबा इण्डोनेशिया? इण्डोनेशिया की सरकार को भी यही प्रिसिक्रप्शन मिला था IMF की ओर से कि आप एक काम करिये अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करना शुरू कर दीजिये आपका निर्यात बहुत बढ़ जायेगा और जब निर्यात बहुत बढ़ जायेगा तो डालर्स बहुत आयेंगे आपके पास, आपके पास विदेशी मुद्रा भण्डार बहुत अच्छे हो जायेंगे वगैरह-वगैरह, और आप Export oriented के मार्ग पर चलना शुरु कर देंगे।
इण्डोनेशिया की सरकार ने पूरी ईमानदारी से इसे पालन करना शुरु कर दिया, तो इण्डोनेशिया में जब ग्लोबलाईजेशन शुरु हुआ था उस समय उनकी जो मुद्रा थी इण्डोनेशिया की मुद्रा है रुपइया, हमारी मुद्रा है रुपया, तो इण्डोनेशिया की जो मुद्रा है रुपइया वो एक डालर में 40 रुपइया होता था जब ग्लोबलाईजेशन शुरु हुआ था फिर उसके बाद क्या हुआ दना-दन मुद्रा का अवमूल्यन करना शुरु कर दिया, IMF का यह प्रिसिक्रप्शन था कि जितना अधिक आप अवमूल्यन करेंगे उतना निर्यात सस्ता हो जायेगा और माल आपका बिकता चला जायेगा। तो अवमूल्यन करते-करते कहाँ तक ले आये आप कल्पना कर सकते हैं इस समय इण्डोनेशिया में 1 डालर में 17000 रुपइया मिलता है उन्होंने रिकार्ड तोड़ अवमूल्यन किया अपनी मुद्रा का और इस आशा में कि चला इस वर्ष हमारा निर्यात बढ़ेगा इस वर्ष नहीं तो अगले वर्ष बढ़ेगा फिर अगले वर्ष बढ़ेगा फिर अगले वर्ष बढ़ेगा, तो 7 वर्ष से वो सपना देखते आये हैं कि अब देखो निर्यात बढ़ गया अब देखो निर्यात बढ़ गया और इस समय स्थिति ये हैइण्डोनेशिया की का निर्यात पूरी तरह से ठप्प है और अब इण्डोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो साहब ने कह दिया कि हमने अपने जीवन में भयंकर भूल की जो IMF के कहने पर ग्लोबलाईजेशन चालू किया अपने देश में, ये इण्डोनेशिया के राष्ट्रपति का वक्तव्य है।
इण्डोनेशिया के राष्ट्रपति ने शपथ लेने के बाद क्या भाषण दिया है ?
राष्ट्रपति ने शपथ लेने के बाद जो भाषण दिया है इण्डोनेशिया के संसद में वो शब्द ये हैं कि हमने भयंकर भूल की हैं जो IMF के कहने पर ग्लोबलाईजेशन अपने देश में चालू किया है। परिणाम क्या निकले हैं इण्डोनेशिया भी पूरी तरह से डूब चुका है और वहाँ की सरकार भी कह रही है कि अब इस देश को वापस खड़ा करने में कम से कम 15 से 20 वर्ष लग जायेंगे। इण्डोनेशिया की समाचारें भारत में करीब-करीब रुकी हुई हैं क्योंकि हमारे देश के समाचार पत्रों अभी इतनी चेतना का स्तर नहीं उठ पाया है कि जिन देशों में ये दुर्घटनायें हो रही हैं उनका कवरेज ठीक से करें कभी एकाध घटनायें आ जाती हैं छिटपुट।
जैसे अभी परसों मैं देख रहा था एक फोटोग्राफ है इण्डोनेशिया का, पुलिस लाठी चार्ज कर रही है और किसानो का भयंकर प्रदर्शन हो रहा है संसद के बाहर, तो सेना खड़ी है तोप लेकर, वो फोटोग्राफ मैने देखा एक समाचार पत्र में समाचार क्या है समाचार नहीं है समाचार का बस ब्लाक आउट किया गया है और लिख दिया गया है कि आर्थिक लिब्रलाईजेशनई के बाद वहाँ जो गरीबी बढ़ी है, बेरोजगारी हुई है और लोगों में जो निर्धनता उत्पन्न हुई है उसके कारण मारा-मारी हो रही है संसद के सामने प्रदर्शन होते हैं पुलिस का लाठी चार्ज होता है प्रतिदिन आर्मी अपने डण्डे बरसाती है बंदूकें चलती हैं और लोग प्रतिदिन मरते हैं उसका एक नमूना है।
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भारतीय न्यायव्यवस्था
तीसरा उदाहरण थाईलैण्ड किस प्रकार बर्बाद हुआ वार्ल्ड बैंक और ई.एम.एफ
तीसरा उदाहरण थाईलैण्ड किस प्रकार बर्बाद हुआ वार्ल्ड बैंक और ई.एम.एफ संस्थो के साथ चलते

तीसरा उदाहरण थाईलैण्ड किस प्रकार बर्बाद हुआ वार्ल्ड बैंक और ई.एम.एफ संस्थो के साथ चलते
एक और देश है 'थाईलैण्ड उसकी तो अजब ही कहानी है ग्लोबलाईजेशन की, थाईलैण्ड ने 1990 में शुरु किया था ग्लोबलाईजेशन और थाईलैण्ड की अर्थ-व्यवस्था तो इण्डोनेशिया और दक्षिण कोरिया की तुलना में सिटी कंट्री जैसा है हमारी तुलना में भी दो जिला के बराबर है थाईलैण्ड की अर्थ-व्यवस्था, लेकिन इन्होंने भी इसी दौड़ में शामिल होकर कि अब देखिये ग्लोबलाईजेशन शुरु हो रहा है हम पीछे थोड़े ही रह सकते हैं किसी से, यदि हम नहीं दौड़ेंगे सब के साथ तो हम तो पीछे रह जायेंगे तो इसी डर में इण्डोनेशिया की सरकार के साथ थाईलैण्ड की सरकार नें कदम से मिलाकर चलना शुरु कर दिया ।
हमारे देश में भी कई ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि हम पीछे थोड़े ही रह सकते हैं किसी से, अमेरिका दौड़ रहा है यूरोप दौड़ रहा है तो हमको भी तो दौड़ना है 18 वीं शताब्दी में थोड़े ही जी सकते हैं। तो ऐसे ही थाईलैण्ड में भी सरकार ने कहना शुरु किया कि हम पीछे थोड़े ही रह सकते किसी से, पड़ोसी जो कर रहा है वो हम भी करेंगे तो पड़ोसी के घर में ये हो रहा है तो हम भी करेंगे तो थाईलैण्ड की सरकार भी चालू हो गई ग्लोबलाईजेशन और लिब्रलाईजेशन करना। अब उन्होंने भी मुद्रा का अवमूल्यन करना शुरु कर दिया, उनके यहाँ क्या एक शाक लगा कि हमारे आजू-बाजू की सरकारें बहुत शार्ट टर्म लोन ले रही हैं तो चलो हम भी ले लें तो उन्होंने भी चालू कर दिया है लोन लेना और अब ऐसा लगा कि पिछले 3-4 वर्षो में जो जितना लोन ले रहा है वही सबसे बड़ा वित्त मंत्री है।
हमारे देश में भी ऐसा है कि जो वित्त मंत्री हमारे देश में सबसे अधिक विदेशी कर्जे के गढ्डे में पहुँचा दे वही सर्वश्रेष्ठ वित्त मंत्री है हमारे देश में, तो थाईलैण्ड में भी हो गया तो उन्होंने भी लोन लेना चालू कर दिया देखा देखी पड़ोसी के चक्कर में, अब वहाँ क्या हुआ? अब वो भी बेचारे डूब गये हैं कहते हैं लोन इतना ले लिया है वहाँ की सरकार ने जितनी उनकी राष्ट्रीय आय नहीं है विदेशी ऋण का ब्याज नहीं चुका सकते वहाँ के प्रधानमंत्री ने तो अदभुत काम किया है जिसको मैं एकदम संसार में Extreme मानता हूँ क्या किया है उस प्रधानमंत्री ने एक दिन उसने संसद में घोषणा की चूँकि हमने ग्लोबलाईजेशन लिब्रलाईजेशन कर दिया उसमें तो अब देश डूब ही गया है विदेशी ऋण बहुत चढ़ गया है उसका ब्याज भी चुकाना है हमको, और अब हमारे पास ऐसा कुछ नहीं है जिसको बेचकर हम हमारे देश का ऋण चुका सकें। अब हम नई नीति ला रहे हैं यह प्रधानमंत्री कह रहा है संसद में कि हम नई नीति ला रहे हैं संसद में कि वेश्यावृत्ति को वैधानिक व्यापार बना दिया जाये तो प्रधानमंत्री कह क्या रहा है सुनिये उसके शब्दों को कि हमारे पास कुछ भी ऐसा नहीं है जिसको बेचकर हम विदेशी ऋण का ब्याज चुका सकें तो अब हम हमारी माताओं और बहनों के शरीरों को बेचेंगे उससे कुछ डालर्स आयेंगे उससे विदेशी कर्जे का ब्याज चुकायेंगे।
थाईलैण्ड का प्रधानमंत्री भारत सरकार को चेतावनी देना चाहता हूँ ।
अंत में उसने एक बहुत बुध्दिमानी की बात कही उसने कहा कि मैं भारत सरकार को चेतावनी देना चाहता हूँ ये थाईलैण्ड का प्रधानमंत्री कह रहा है कि मैं भारत सरकार को चेतावनी देना चाहता हूँ कि वो इस ग्लोबलाईजेशन के रास्ते पर जितनी शीघ्र हो चलना बंद कर दें नहीं तो भारत को जो हानि होगी उसकी कल्पना हम नहीं कर सकते, हमारा देश तो भारत की तुलना में सिटी कंट्री है और सही बात है हमारे देश के दो जिलों के बराबर है थाईलैण्ड वो कह रहा है हमारा देश तो भारत की तुलना में सिटी कंट्री है हम डूबे हैं तो इतनी भयंकर हानि हुई है और यदि भारत डूबेगा तो कल्पना नहीं कर सकते कि कितनी क्षति होगी ।
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